लोकसभा में कांग्रेस की हालत बहुत ही दयनीय हो गई है। उसे इस बार मात्र 44 सीटें ही हासिल हो पाई हैं, जो कैबिनेट रैंक के साथ विपक्ष के नेता का पद पाने की 55 की संख्या से बहुत कम है। कांग्रेस ने लोकसभा में अपना नेता राहुल गांधी को नहीं बल्कि मल्लिकार्जुन खड़के को बनाया है। उन्हें विपक्ष के नेता का रुतबा मिल भी पाता है या नहीं, यह बिल्कुल स्पीकर पर निर्भर करता है। इतना तो तय है कि यदि विपक्ष के नेता का रुतबा उन्हें मिल भी गया, तो कैबिनेट का रैैक उन्हें नहीं मिल पाएगा, हालांकि विपक्ष के नेता का पद उन्हें मिलेगा, इसमें भी शक की गुंजायश है।

इसका एक कारण यह है कि गत चुनाव में सफलता पाने वाले तीन क्षेत्रीय दल आपस में हाथ मिलाकर एक काॅनम नेता चुन सकते हैं। ये दल हैं- जयललिता का अन्ना डीएमके, नवीन पटनायक का बीजू जनता दल और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस। ममता का इस मोर्चे में शामिल होना पक्का नहीं है, लेकिन यदि जयललिता और नवीन पटनायक ने भी हाथ मिला लिया, तो लोकसभा में उनके दलों के सांसदों की संख्या कांग्रेसी सांसदों की संख्या से ज्यादा होती है और दोनों मिलाकर 55 से ऊपर का आंकड़ा हो जाता है। वैसी हालत में स्पीकर इस मोर्चे के सांसदों के नेता को लोकसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा दे सकती हैं और तब कांग्रेस लोकसभा में विपक्ष का नेतृत्व करने की स्थिति में भी नहीं रह जाएगी।

लोकसभा में तो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली नरेन्द्र मोदी सरकार को पूर्ण बहुत ही नहीं, बल्कि आरामदायक बहुमत हासिल है, पर राज्य सभा में उसकी स्थिति वैसी नहीं है। इस समय राज्य सभा में कुल सदस्यों की संख्या 237 और बहुमत के लिए 119 सांसदों की जरूरत पड़ेगी। फिलहाल भाजपा के पास मात्र 44 राज्यसभा सांसद हैं और उसके राजग सहयोगियों के पास 14 सांसद। यानी कुल मिलाकर राजग के साथ मात्र 58 सांसद ही हैं। केन्द्र सरकार जरूरत पड़ने पर डीएमके, इंडियन नेशनल लोकदल व कुछ अन्य दलों की सहायता भी ले सकती है। वह जयललिता और नवीन पटनायक के सांसदों की सहायता भी ले सकती है।

वित्त विधेयक का राज्यसभा द्वारा पारित किया जाना कोई आवश्यक नहीं होता है, लेकिन अन्य विधेयकों को वहां से पारित करवाना आवश्यक होता है। यदि वैसा करने में सरकार विफल होती है, तो फिर संयुक्त सत्र बुलाकर उस विधेयक को पास करवाना पड सकता है। लोकसभा में प्रचंड बहुमत होने के कारण मोदी सरकार को संयुक्त सत्र से किसी भी विधेयक को पारित कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी। यही कारण है कि राज्य सभा मंे सिर्फ दिखावा के लिए किसी विकास संबंधित विधेयक को पराजित करने की कोशिश विपक्ष नहीं करेगा और इस तरह सरकार वहां भी आरामदायक स्थिति में ही दिखाई पड़ेगी। (संवाद)