लेकिन इस हार ने भी कांग्रेस के सोचने के ढंग को बदला है और न ही उसके काम करने के ढंग को। महाराष्ट्र में तैयार चार रिपोर्ट से यह साफ हो जाता है। उनमें से एक में तो अजित पवार पर आरोप लगाए गए हैं। अजित पवार एनसीपी के नेता हैं और महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस के साथ हैं। इसके अलावा मराठा को दिया गया कोटा है। डांस बार व हिंदू राष्ट्र सेना से संबंधित रिपोर्ट भी आई है।

अपनी हार की इस तरह व्याख्या करने से पता चलता है कि कांग्रेस में किस तरह के लोग रह गए हैं और उनके सोचने का ढंग क्या है। वे इस बात को भूल गए हैं कि मतदाता अब पहले की तरह भोले भाले नहीं हैं। संचार क्रांति के कारण सूचनाओं तक उनकी पहुंच हो गई है और उन्हें अब यह पता हो गया है कि क्या सही है और क्या गलत।

पार्टी यह समझने को तैयार नहीं है कि उसकी हार का सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार से उसका संबंध जुड़े जाना है। 2011 के बाद से आ रही भ्रष्टाचार की खबरों ने कांग्रेस की छवि को बहुत की खराब कर दिया है। उसकी छवि खराब करने में पहले तो अन्ना और अरविंद केजरीवाल के आंदोलन ने भूमिका निभाई और उसके बाद नरेन्द्र मोदी ने उसकी छवि को और भी धूमिल कर दिया। अजित पवार के प्रकरण से पता चलता है कि कांग्रेस को अब भी समझ नहीं आई है और वह वैसा कुछ भी करने को तैयार नहीं है, जिसके कारण वह फिर से लोगों का विश्वास प्राप्त कर सके।

उसी तरह कांग्रेस यह भी मानने को तैयार नहीं है कि आरक्षण का फार्मूला चुनावों में फायदा नहीं पहुंचा पाता है। लोकसभा चुनाव के पहले उसने ओबीसी की केन्द्रीय सूची में जाटों को शामिल किया था, लेकिन उससे उसे कोई फायदा नहीं मिला। यदि उसने इससे सीख ली होती, तो फिर मराठों को महाराष्ट्र में ओबीसी में शामिल करने की हिम्मत नहीं की होती।

पार्टी यह मानने को तैयार नहीं है कि युवा पीढ़ी उस तरह के आरक्षण के पीछे अब नहीं भागती। वे अब एक तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था चाहते हैं, जिसमें काम करने के वे बेहतर अवसर पा सकें और ज्यादा से ज्यादा सुविधाओं का उपभोग कर सकें।

आजादी के तुरत बाद आरक्षण पाने की प्रवृति थी, क्योंकि उस समय विकास की दर 2 से 3 फीसदी के बीच घिसट रही थी। लेकिन 1991 के बाद स्थिति बदल गई है। विकास की दर अब तेज हो गई है। भारत तो बदल गया, लेकिन कांग्रेस अब अपने आपको बदलने को तैयार नहीं है। वह वहीं पुराना फार्मूला अपनाती है और उस फार्मूले की विफलता को भी देखती है, पर उसे स्वीकार नहीं कर पाती। बार बार निराश होने के बाद भी उसे लगता है कि कोटा या कोटे का वायदा उसे वोट दिलाएगा और वह चुनाव जीत जाएगी।

मुंबई के डांस बार को बंद किए जाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सही सवाल किया कि सरकार मध्यवर्ग के लोगों की पसंद वाले डांस बार को तो बंद कर रही है, फाइव स्टार डांस बार को बंद करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं। इसका कोई संतोषजनक जवाब महाराष्ट्र सरकार के पास नहीं था। (संवाद)