लेकिन सवाल उठता है कि क्या रामगोपाल के साथ अमर सिंह के रिश्ते में तनाव कोई नई बात है? सच तो यह है कि यह तनाव बहुत पुराना है और अमर सिंह के सपा छोड़ने का असली कारण रामगोपाल नहीं, बल्कि खुद मुलायम सिंह यादव ही हैं, जिन्होंने श्री सिंह की उपेक्षा शुरू कर दी।
अमर सिंह का स्वास्थ्य वाकई उन्हें पहले की तरह सक्रिय सार्वजनिक जीवन जीने की इजाजत नहीं देता, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से कोई सत्ता की राजनीति नहीं छोड़ता। लेकिन सच यह भी है कि खराब स्वास्थ्य के साथ संघर्ष की राजनीति बहुत कम लोग ही करते हैं। समाजवादी पार्टी में अमर सिंह सत्ता ही नहीं संघर्ष की राजनीति भी कर रहे थे। पिछले 15 सालों में पार्टी में यदि अमर सिंह को मुलायम ने सबसे ज्यादा महत्व दे रखा था, तो इसका कारण भी यही था कि पार्टी के लिए अमर सिंह का योगदान भी किसी अन्य सपा नेता की तुलना में ज्यादा था।
मुलायम सिंह यादव की राजनीति शुरू से ही अपने परिवार को बढ़ावा देने की रही है। उनके परिवार के सदस्यों के सामने पार्टी के अन्य नेता पूरी तरह कब के अप्रासंगिक हो चुके हैं। एकमात्र अमर सिंह ही ऐसे नेता थे, जो परिवार के बाहर के होते हुए भी पार्टी में महत्व रखते थे। लेकिन परिवार के सदस्यो को उन्हें दिया जा रहा महत्व भी रास नहीं आ रहा था। परिवार को पार्टी के ऊपर पूर्ण नियंत्रण चाहिए था, इसलिए वह अमर सिंह उनकी आंखों मंे खटक रहे थे। मुलायम सिंह यादव पार्टी के लिए अमर सिंह के महत्व को समझते थे, इसलिए उन्होंने अपने परिवार और अमर सिंह के बीच संतुलन बनाए रखा।
लेकिन लगातार मिल रही हारों से मुलायत सिंह हताश हो गए। विधानसभा आमचुनाव में मायावती के हाथांे उनकी शिकस्त हुई। लोकसभा चुनाव मे स्थिति विधानसभा चुनाव से बेहतर हुई, फिर भी वे सत्ता से दूर रहे, क्योंकि कांग्रेस को केन्द्र सरकार के गठन में उनकी कोई जरूरत ही नहीं रही। फिरोजाबाद के उपचुनाव में उनकी पुत्रवधु डिंपल यादव भी हार गई। उसके बाद उनकी बौखलाहठ और भी बढ़ गई। उस बौखलाहट में उन्होंने उस कल्याण सिंह को नाराज कर दिया, जिसके समर्थन से उन्होंने अपनी स्थिति विधानसभा चुनाव से बेहतर करते हुए राज्य में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने का गौरव प्राप्त किया था। इस बीच अमर सिंह को लेकर अपने परिवार के दबाव में आ गए और श्री सिंह की पार्टी में खुद भी उपेक्षा शुरू कर दी।
परिवारवाद भारत के राजनैतिक दलों पर काबिज हो गया है और सिर्फ वामपंथी पार्टियां ही इस रोग से बची हुई हैं। लेकिन परिवारवाद में कोई भी अन्य दल मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी का मुकाबला कर नहीं सकता। मुलायम सिंह यादव खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे पार्टी के लोकसभा में नेता भी हैं। उनका चचेरा भाई रामगोपाल यादव राज्य सभा में पार्टी के नेता हैं। सपा का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश है। और उत्तर प्रदेश की राज्य इकाई का अध्यक्ष उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को बना रखा है। अखिलेश लोकसभा के सदस्य भी हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में सपा मुख्य विपक्षी पार्टी है। इसके नाते सपा विधायक दल का नेता विपक्ष का नेता होता है और विपक्ष के नेता को वहां मंत्री का दर्जा प्राप्त है। उस पद पर मुलायम सिंह ने अपने भाई शिवपाल यादव को बैठा रखा है। इस तरह पाटीै के सभी महत्वपूर्ण पदों पर मुलायम के परिवार का ही कब्जा है। मुलायम ने अपने एक भतीजे शैलेन्द्र यादव को भी लोकसभा का सदस्य बनवा रखा है। यदि उनकी पुत्रवधु लोकसभा का चुनाव जीततीं, तो वह सांवैधानिक पद पर बैठने वाली मुलायम परिवार की छठी सदस्य होतीं।
जाहिर है पार्टी पर मुलायम का परिवार पूरी तरह हावी है। अमर सिंह एक अपवाद थे। लेकिन परिवार के सदस्यों को वह एक अपवाद भी पसंद नहीं था, हालांकि अमर सिंह का पार्टी के लिए जो योगदान था, उसका एक चैथाई योगदान भी मुलायम के परिवार के अन्य सदस्यों का पार्टी में नहीं था।
समाजवादी पार्टी में अमर सिंह के विरोधी कहते हैं कि उनके कारण पार्टी कमजोर होती गई। इसमें शायद ही कोई सचाई हो। 1996 से अमर सिंह पार्टी में सक्रिय हैं। उस समय समाजवादी पार्टी एक क्षेत्रीय पार्टी थी, जिसका आधार उत्तर प्रदेश तक ही सीमित था, लेकिन अब अमर सिंह के कारण देश के दूसरे हिस्सों में भी पार्टी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी को अमर सिेह के कारण फायदा ही हुआ। 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार समाजवादी पार्टी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 2004 के लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी को राज्य में सबसे ज्यादा सीटें हासिल हुई थी। दोनो समय ंअमर सिंह मुलायम के साथ पार्टी के शिखर पर विराजमान थे।
अमर सिंह के कारण मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी को और भी अनेक फायदे हुए। यह सच है कि अमर सिंह के कारण मुलायम और समाजवादी पार्टी की छवि मे बदलाव आया, लेकिन वह मुलायम का अपना फैसला था। उनकी छवि में जो बदलाव आ रहा था, उससे मुलायम अनजान नहीं थे, बल्कि उनकी वह नई छवि उनकी अपनी पसंद की भी थी। और अमर सिंह का साथ छूट जाने से मुलायम की समाजवादी छवि वापय आ जाएगी, यह कहना भी बलत होगा।
अमर सिंह के कारण पार्टी का अपने तरीेक से विस्तार हुआ और उसका पतन पार्टी में परिवार की दूसरी पीढ़ी के आने के बाद हुआ। फिरोजाबाद उपचुनाव के साथ साथ विधानसभा के कुछ उपचुनाव भी हो रहे थे और उनमें भी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की करारी हार हुई थी। पार्टी के यादवगढ़ में पार्टी की हार से साफ लग रहा था कि अब यादव भी मुलायम का साथ छोड़ रहे हैं। इसका एक कारण मुलायम का अश्लील परिवारवाद तो हो सकता है, पार्टी में अमरसिंह की माजूदगी नहीं।
आज समाजवादी पार्टी पतन की ओर जा रही है। अमर सिंह के पार्टी छोड़ने से सह सिर्फ उक जाति की पार्टी के रूप में सिमटकर रह जाएगी, जिसपर सिर्फ एक परिवार का कब्जा रहेगा। एक जाति के बल पर पार्टी नहीं चलाई जा सकती और यदि उस पार्टी पर सिर्फ एक ही परिवार का कब्जा हो तब तो उसका चलना और भी मुश्किल है। (संवाद)
अमर के हटने से सपा मजबूत होगी?
हकीकत तो कुछ और है
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-01-11 09:53
अमर सिंह के इस्तीफे के बाद समाजवादी पार्टी में जो नाटक शुरू हुआ है, उसका अंत होना अभी बाकी है। हां, फिलहाल यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अब अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के बीच जो दूरी बनी है, वह समाप्त होने वाली नहीं है। मुलायम कह रहे हैं कि अमर सिंह के राम गोपाल से मतभेद हैं और यह समस्या उसी के कारण पैदा हुई है।