गौरतलब है कि रामनरेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 1977 में जब केन्द्र और अनेक राज्यों में जनता पार्टी की सरकारें बनी थीं, तो उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर रामनरेश यादव ही बने थे। बाद में वे कांग्रेस में आ गए। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने उन्हें मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया था।

राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों पर अपने पद का इस्तेमाल कर अपने पसंदीदा लोगों को सरकारी पदों पर नियुक्ति करवाने का आरोप है। आरोप है कि व्यापम द्वारा की गई अनियमिततओं का लाभ उन्होंने भी उठाया और इस तरह से उन अनियमितताओं के लिए वे दोनों भी जिम्मेदार हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान पर घोटाले में शामिल होने का आरोप कांग्रेस के नेता लगा रहे हैं, जबकि राज्यपाल राम नरेश यादव के घोटाले में शामिल होने का आरोप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लगा रहा है। कांग्रेस का एक वर्ग भी राज्यपाल पर आरोप लगा रहा है।

राज्यपाल के कार्याधिकारी (ओएसडी) धनराज यादव घोटाले के मुकदमों में पहले ही जेल में हैं। उन्हें कुछ उम्मीदवारों को नौकरी लगाने के लिए सिफारिश करने के में लिप्त पाया गया था। धनराज राज्यपाल के बहुत ही करीबी थे। वे इतने करीबी थे कि उनका आवास भी राज भवन के परिसर में ही था। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के हैं और रामनरेश यादव के साथ ही उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश आए थे। यानी रामनरेश यादव ने राज्यपाल बनने के बाद उन्हें अपना कार्याधिकारी बनाकर राज भवन में रहने को जगह दी थी। इससे पता चलता है कि धनराज यादव राज्यपाल से वाकई बहुत नजदीक थे।

विधानसभा में भी व्यापम घोटाले को उठाया गया। विपक्षी कांग्रेस ने इस घोटाले पर चर्चा के लिए एक स्थगन प्रस्ताव दिया था। उसे उम्मीद थी कि सरकार इस प्रस्ताव को नहीं मानेगी, लेकिन उम्मीद से उलट सरकार ने स्थगन प्रस्ताव को मान लिया और चर्चा के लिए तैयार हो गई, पर विपक्षी कांग्रेस इसकी मांग करने के बावजूद चर्चा के लिए तैयार नहीं थे।

पर उन्हें चर्चा में भाग लेना पड़ा और उन्होंने राज्य सरकार व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान पर आरोपों की झड़ी लगा दी। कांग्रेस ने मांग की कि इन घोटालों की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। विपक्ष ने कहा कि यदि इन घोटालों के बारे में मुख्यमंत्री को पता नहीं था, तो उन्हें स्वीकार करना चाहिए कि वे मुख्यमंत्री बनने की योग्यता ही नहीं रखते और यदि उन्होंने मालूम होने के बाद भी उनकी उपेक्षा कर दी, तो वे भी इन घोटालों के अपराधी हैं।

विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे ने मुख्यमंत्री पर हमला करते हुए कहा कि 2006 और 2009 में इन घोटालों से संबंधित दो मुकदमे दो थानों मंे दर्ज किए गए थे। लेकिन सरकार ने उन पर ध्यान नहीं दिया। यदि उन पर ध्यान दिया जाता तो इतने लंबे समय तक ये घोटाले नहीं चलते रहते। सरकार के कुछ मंत्रियों पर मुकदमे चल रहे हैं और कुछ जेल में भी हैं। मुख्यमंत्री का एक पीए भी मुकदमे का सामना कर रहा है। स्पेशल टास्क फोर्स की लापरवाही के कारण वह अभी बेल पर जेल से बाहर है।

मुख्यमंत्री ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को नकारते हुए कहा कि यदि उन पर कोई आरोप साबित होता है, तो वे राजनीति से ही संन्याय ले लेंगे। उन्होंने कांग्रेस पर हमला करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा 16 व्यक्तियों को सरकारी पदों पर नियुक्ति का आरोप लगाया और उन लोगों की सूची भी जारी की। कांग्रेस ने जवाब में कहा कि उनकी नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर की गई थी और उसके लिए पैसे नही लिए गए थे। (संवाद)