आखिर भाजपा चुनाव का सामना करने में झिझक क्यों रही है? इसे तो झिझकना नहीं चाहिए था और अपनी जीत में भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए था, क्योंकि कुछ समय पहले हुए लोकसभा चुनाव में इसे सभी सातों सीटों पर जीत हासिल हो गई थी।
दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें हैं। इन 70 सीटों में भारतीय जनता पार्टी को 60 सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी। आम आदमी पार्टी 9 सीटों पर अपने दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों से ज्यादा वोट लाने में सफल रही, जबकि कांग्रेस को मात्र एक विधानसभा सीट पर ही भाजपा और आम आदमी पार्टी से ज्यादा वोट मिले।
इसलिए उम्मीद तो यही की जानी चाहिए कि यदि आज विधानसभा का चुनाव हो तो भारतीय जनता पार्टी को यहां भारी सफलता मिलेगी। लेकिन इसके बावजूद आखिर क्या कारण है कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव लड़कर सरकार बनाने की बजाय पिछले दरवाजे से दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना चाहती है?इससे तो इसकी प्रतिष्ठा को ही चोट लगेगी। आखिर भाजपा अपनी प्रतिष्ठा पर खुद चोट पहुंचाना क्यों चाहती?
यह संभव है कि भाजपा को लगता है कि सभी लहरों की तरह मोदी लहर भी उतार पर है और इसके कारण हो सकता है कि पार्टी विधानसभा चुनाव में लोकसभा की सफलता नहीं दुहरा सके। हो सकता है कि भाजपा को लोकसभा वाली सफलता नहीं मिले लेकिन इसके बावजूद वह सरकार बनाने लायक सफलता तो चुनाव में हासिल करने की सोच ही सकती है, क्योंकि दिल्ली के उसके दोनों प्रतिद्वंद्वियों की हालत इस समय खराब है।
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों को लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की तो हालत बहुत ही ज्यादा पतली है। लोकसभा चुनाव में उसके सातों प्रत्याशी भाजपा और आम आदमी पार्टी के बाद तीसरे स्थान पर ही रहे। मात्र एक विधानसभा सीट पर उसके प्रत्याशी को भाजपा और आम आदमी पार्टी से ज्यादा वोट मिले। दिल्ली में ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस को जो झटका लगा है, उससे वह उबर नहीं पा रही है। वैसी हालत में कांग्रेस की ओर से उसे किसी प्रकार की चुनौती मिलने की कोई संभावना नहीं है।
आम आदमी पार्टी का भी बुरा हाल हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसके उम्मीदवारों को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार लोकसभा चुनाव में मात्र 9 विधानसभा सीटों पर ही उसे भाजपा और कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिलीं। अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता भी उतार पर है। आम आदमी पार्टी के अनेक नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। लोगों में अब इस पार्टी के प्रति पहले जैसा उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है।
इसलिए भाजपा द्वारा विधानसभा चुनाव का सामना करने से डरना थोड़ा आश्चर्यजनक जरूर लगता है। इसका एक कारण शायद यही है कि भाजपा नेताओं को मोदी लहर की स्थिरता पर भरोसा नहीं है। उसे लगता है कि लहर उतर चुकी है और यदि चुनाव में उसे हार मिली तो देश भर में पार्टी के प्रति बना उत्साह का माहौल खराब हो जाएगा।
सच तो यह है कि भाजपा को लोकसभा में मिली सफलता से पार्टी के नेता खुद स्तब्ध रह गए थे। उनमें से अधिकांश को इतनी बड़ी जीत की उम्मीद नहीं थी। उन्हें यह नहीं लग रहा था कि पार्टी अपने दम पर ही लोकसभा में बहुमत हासिल कर लेगी।
भारतीय जनता पार्टी को 31 फीसदी मत मिले। जाहिर है देश की दो तिहाई आबादी ने उसे पसंद नहीं किया। देश के अनेक राज्यों मंे अभी भी उसकी उपस्थिति नगण्य है। केरल में उसका कोई उम्मीदवार नहीं जीत पाया। तमिलनाडु में वह जयललिता लहर को रोक नहीं पाई। ओडिसा में वह कुछ नहीं कर पाई। पश्चिम बंगाल में भी उसे मात्र दो सीटंे मिलीं, हालांकि उसका मत प्रतिशत बढ़ गया।
भारतीय जनता पार्टी इस बात को लेकर भी डरी हुई है कि मोदी सरकार के कुछ निर्णयों से जनता नाखुश हो गई होगी। रेल किरायों में हुई बड़ी वृद्धि का भी उसे डर है और बिजली व पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ने से भी लोगों में व्याप्त गुस्से का उसे डर सता रहा है। यही कारण है कि भाजपा को दिल्ली विधानसभा के चुनाव का सामना करने का साहस नहीं हो पा रहा है। (संवाद)
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दिल्ली में चुनाव का सामना करने से झिझक रही है भाजपा
नेतृत्व को लोगों के मूड का पता नहीं
अमूल्य गांगुली - 2014-07-23 11:07
आरएसएस जैसे भाजपा के मित्र संगठन पार्टी को सलाह दे रहे हैं कि वह आम आदमी पार्टी अथवा कांग्रेस के दलबदलुओं की मदद से दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश में सरकार गठन की कोशिश नहीं करें, लेकिन भाजपा द्वारा चुनाव का सामना करने में दिखाई जा रही शुरुआती झिझक विश्लेषण करने योग्य है।