उन्होंने कहा कि उन्होंने गोगाई के मंत्रिमंडल से इस्तीफे वाला पत्र राज्यपाल को सौंप दिया है और उस प्रेस कान्फ्रेंस के बाद वे वह इस्तीफा मुख्यमंत्री को भी सौंप देंगे। उन्होंने कहा कि अब गोगाई के साथ काम करना संभव नहीं रह गया है और वे उनकी सरकार में दुबारा शामिल नहीं होंगे। इतना तक तो ठीक था, लेकिन इसके बाद जो उन्होंने कहा वह अजीब था। उन्होंने कहा कि वे और उनके समर्थक विधायक विधायक विधानसभा में संरचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएंगे।

तो क्या यह अर्थ लगाया जाय कि वे कांग्रेस को छोड़ रहे हैं? उन्होंने ऐसा मानने से भी इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे आलाकमान के अधिकार को चुनौती नहीं देंगे और उसके द्वारा जारी किए गए किसी भी व्हिप का पालन करेंगे। लेकिन यदि आलाकमान ने कोई व्हिप जारी नहीं किया और राज्य सरकार का कोई निर्णय उन्हें जनविरोधी लगा, तो वे विधानसभा में राज्य सरकार का विरोध करेंगे। उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या इसका मतलब यह लगाया जाय कि वे विधानसभा में राज्य सरकार का विरोध करेंगे और उसे गिराने का काम करेंगे।
उन्होंने मुख्यमंत्री पर एक और आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने बातचीत के दौरान एक प्रस्ताव रखा और वह प्रस्ताव यह था कि प्रत्येक चार महीने में वे मंत्रालयों का फिर से बंटवारा करेंगे और सभी को संतुष्ट रखने की कोशिश करते रहेंगे। मुख्यमंत्री तरुण गोगाई ने तुरंत बिस्वाल के उस दावे का खंडन किया। बिस्वाल ने यह भी कहा कि यदि गोगाई को 2016 तक प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए रखा गया पार्टी 10 से ज्यादा विधानसभा की सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाएगी।

सचाई यह है कि जब कांग्रेस आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया कि गोगाई को किसी भी सूरत में नहीं हटाया जाएगा और उनके खिलाफ असंतोष का नेतृत्व कर रहे चार- पांच लोगों को पार्टी से निकाल दिया जाएगा, तो असंतुष्टों मे बेचैनी छा गई। उनमें से कई बिस्वाल के गुट को छोड़कर गोगाई की तरफ आ गए। अभी कुछ और गोगोई की ओर आ सकते हैं। बिस्वाल के एक साथ एक समस्या है। अनेक विधायक गोगोई के खिलाफ तो हैं, लेकिन वे बिस्वाल का नेतृत्व भी पसंद नहीं करते। वे बिस्वाल को मुख्यमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहते हैं। हिमंत बिस्वाल की जो छवि है, उसके कारण भारतीय जनता पार्टी उनके साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहेगी। यदि उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया, तो फिर उनकी राजनैतिक मौत ही हो जाएगी। (संवाद)