केंद्रीय गृह मंत्रालय इन तर्कों से इत्तेफाक नहीं रखता। गृह मंत्रालय ने वीआईपी और वीवीआईपी के अलावा निजी तौर पर ख्यातिप्राप्त बहुचर्चित लोगों की सुरक्षा हेतु एक सुव्यवस्थित प्रणाली बना रखी है, जिसका अनुपालन राज्य और केंद्र शासित प्रेदशों को करने की बाध्यता है।

भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में यह स्पष्टï उल्लिखित है कि किसी भी विशिष्ठï और अतिविशिष्ठï व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन के अधीन होगी, जहां वीआईपी और वीवीआईपी जाते हैं या निवास करते हैं। क्योंकि हमारे संविधान में कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यों को ही दी गई है। ऐसे में वहां जाने या रहने वाले वीआईपी और वीवीआईपी की सुरक्षा राज्य-केंद्र शासित प्रदेश के अधीन ही होती है।

भारत में राष्टï्रपति, उपराष्ट्रपति औैर प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था ब्ल्यू बुक के तहत होती है। इसके अलावा प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उसके निजी सगे संबंधियों को विशेष सुरक्षा दल यानी एसपीजी अधिनियम-1988 तथा विशेष सुरक्षा स्कीम के तहत सुरक्षा प्रदान की जाती है।

दूसरी ओर संसद सदस्यों समेत अन्य ख्यातिलब्ध लोगों को येलो बुक के प्रावधानों के तहत सुरक्षा प्रदान की जाती है। इन प्रावधानों में यह भी देखा जाता है कि निजी तौर पर उस माननीय पर किसी प्रकार के हमले की आशंका तो नहीं हैं या किसी प्रकार की धमकी आदि तो नहीं मिली है।

वहीं दूसरी ओर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशाों के भी अपने अलग-अलग सुरक्षा तंत्र हैं, जो कि राज्य स्तर के विशिष्ट-अतिविशिष्ट लोगों के लिए काम करते हैं। जहां तक सुरक्षा की मांग करने पर उपलब्ध कराए जाने वाले सुरक्षा कवच का सवाल है, उसमें केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की सिफारिशों के आधार पर निर्णय किया जाता है। इसमें राज्य सरकारों की अपनी सुरक्षा एजेंसियां भी सिफारिशें देती हैं।

किसी निजी अन्य व्यक्ति को दिए जाने वाले सुरक्षा कवच के संदर्भ में यह देखा जाता है कि उसे समय-समय पर या कभी-कभार धमकी मिलती रही हो।

भारत जैसे देश, जहां लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गईं सरकार काम करती हैं, आम जनता इसमें सार्वभौम सत्ता नायक होती है। वहां वीआईपी और वीवीआईपी को सुरक्षा कवच प्रदान करने पर सवाल खड़े तो होते ही हैं लेकिन फिर तुच्छ जनहित के नाम पर उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाती है। यह तथ्य है कि जनता के मन में कथित विशिष्ट लोगों को सुरक्षा के तामझाम को सार्वजनिक धन की बर्बादी और उस व्यक्ति के निजी स्वार्थ और शानो शौकत में वृद्घि के रूप में अंकित हो चुका है। इसे मिटाना मुश्किल है। फिर भी केंद्र और राज्य सरकारें नियमों का हवाला देकर, उस व्यक्ति की महानता की दुहाई देकर उन्हें सुरक्षा प्रदान करती है तो इसके पीछे यह तर्कदिया जाता है कि वह सम्मानित व्यक्ति आखिर जनसेवा के बदले ही तो इस तामझाम का कानूनी अधिकारी बना है!

अंग्रेजी से अनुवाद: शशिकान्त सुशांत, पत्रकार