पहले से ही जमाखोरी को रोकने में अक्षम राज्य सरकारों को आवश्यक वस्तु अधिनियम कड़ाई से लागू करने को कहा गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कीमतों को ले कर चर्चा करने के लिए 27 जनवरी को मुख्यमंत्रियो की बैठक बुलाई है।

खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ने का सिलसिला पिछले तीन सालों से निर्बाध रूप से चल रहा है। मंहगाई की मार झेल रही आम जनता को सरकार सिर्फ आश्वासनों का मलहम लगाती रही है। यहां तक कि यूपीए सरकार ने पिछला लोकसभा चुनाव आम आदमी को यह दावा करते हुए जीता था कि उनकी सरकार आते ही सौ दिनों में मंहगाई पर काबू पा लेगी। नए सरकार के सौ दिन बीते कई महीने गुजर गए लेकिन मंहगाई थमने के बजाए बढ़ती रही। केंद्र सरकार राज्यों सरकारों पर इसकी जिम्मेवारी थोप कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री करती रही। जब चीनी समेत आलू और प्याज के दामों भी भारी उछाल आई,और सरकार को चारों तरफ से आलोचना का बाण सहना पड़ा तो अब जा कर उसकी निंद खुली है। सरकार ने चावल और गेहूं का स्टाक अब खुले बाजार में खोलने का निर्णय लिया है।साथ ही यह कह दिया है कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार द्वारा आवंटित अनाजों का पूर्ण रूप से उठा नहीं रही है। इस कारण खाद्यान्नों की कमी पड़ रही है।

केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार कह रहे हैं कि राज्य सरकारें सहयोग नहीं कर रही हैं। जमाखोरी पर रोक नहीं लगा पा रही है। साथ ही उनका जनवितरण प्रणाली ठीक ढंग से कार्य नहीं कर रहा है। लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में मंहगाई क्यों नहीं कम रही हैं,इसका वह टालमटोल जबाब दे देते हैं।

मंहगाई रोकने के लिए मंत्रिमंडल की बैठक में जो फैेसले लिए गए हैं ,उनमें प्रमुख रूप सें खुले बाजार में अगले दो महीने के अंदर दो से तीन मिलियन टन गेहूं और चावल जारी कर देना,नैफेड तथा एनसीसीएफ द्वारा 5 लाख टन गेंहू और 2 लाख टन चावल खुले रूप से बेचना ,31दिसंबर 2010 तक जीरो आयात कर पर कच्चा चीनी का आयात की छूट,देश किसी भी भाग में कच्चा चीनी के प्रोसेसिंग की छूट,याद रहे कि उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य की चीनी मिलों को बाहर से प्रोसेसिंग कराने की छूट नहीं दी है , राज्य सरकारों से चीनी पर वैट हटाने का आग्रह तथा खाद्य तेलों का सब्सिडाइज्ड आवंटन 31दिसंबर 2010 तक जारी रखना। सरकार के महंगाई कम करने के ये प्रयास आम जनता को राहत दिलाने में कई महीने का समय ले सकती है।

उधर,बीजेपी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने मंहगाई के लिए सीधे सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हुए पूछा है कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के कार्यकाल में अर्थ का अनर्थ क्यों हो रहा है। उन्होंने सरकार के इस कदम को नाकाफी बताते हुए पुनः कृषि मंत्री शरद पवार से इस्तीफा मांगा है।#