मोदी से उनकी नजदीकी होने के कारण यह तो पूरी तरह साफ था कि पार्टी का अध्यक्ष वही बनेंगे। फिर भी कुछ लोगों को लग रहा था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की झिझक के कारण शायद वह बन नहीं पाएं। अमित शाह से आरएसएस की झिझक के दो कारण थे। एक कारण तो यह था कि उनके खिलाफ 3 आपराधिक मामले चल रहे हैं और दूसरा कारण यह था कि नरेन्द्र मोदी की तरह वे भी गुजरात से ही हैं। एक ही प्रदेश के व्यक्तियों को पार्टी और सरकार का मुखिया बनाने की बात कुछ लोगों को पच नहीं रही थी। पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को उनके नाम पर तैयार करने का जिम्मा पूर्व पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को दिया गया। और उसमें गडकरी ने सफलता हासिल की।

मोदी ने शाह को अनेक कारणों से पसंद किया। पहला कारण तो यह था कि नरेन्द्र मोदी उनसे बेहतर अध्यक्ष पा ही नहीं सकते थे। शाह ने उत्तर प्रदेश में चुनाव का सफल प्रबंधन किया था और उसके कारण 80 में से 73 सीटें वहां मोदी के उम्मीदवारों को मिली थीं। दूसरा कारण यह है कि अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली स्थित भाजपा के काॅकश का पतन हो गया। यह काॅकश पार्टी पर पिछले कई दशकों से शासन कर रहा था। तीसरा कारण यह है कि अमित शाह की सहायता से नरेन्द्र मोदी पार्टी के अंदर के पुराने लोगांे की सफाई कर पाएंगे और युवा लोगों को इसमें महत्वपूर्ण जगहों पर बैठा पाएंगे। चैथा कारण यह है कि अमित शाह नरेन्द्र मोदी के दिमाग को अच्छी तरह जानते हैं और दोनों मिलकर नये नये परीक्षण कर सकेंगे। चूंकि दोनों के बीच लंबे समय से तालमेल बना हुआ है, इसलिए पार्टी और सरकार अलग अलग दिशा में चलती हुई नहीं दिखाई देगी।

आने वाले दिनों में शाह के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां बाहर से भी हैं और अंदर से भी हैं। एक चुनौती तो 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली उपलब्धि को मजबूत करना है और दूसरी चुनौती उन राज्यों में पार्टी का विस्तार करना है, जहां अभी भी पार्टी कमजोर है। शाह को पार्टी और सरकार के बीच के गैप को भी पाटना है।

आने वाले कुछ महीनों में ही चार राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। वे राज्य हैं- हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर व झारखंड। अमित शाह ने पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में कहा कि उन चारों राज्यों में पार्टी की सरकार बनना महत्वपूर्ण है।

अमित शाह के सामने एक बड़ी चुनौती पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, तमिलनाडु, केरल और पूर्वात्तर के राज्यों मंे पार्टी को मजबूत करने की भी है। यह भाजपा के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से बेहतर संबंध बनाए रखना भी अमित शाह के लिए जरूरी होगा। संघ अमित शाह को अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर बहुत उत्साहित नहीं था। दरअसल संघ नहीं चाहता है कि पार्टी और सरकार का नियंत्रण एक ही आदमी के हाथ में रहे। उन्हें डर लगता है कि जिस तरह गुजरात में नरेन्द्र मेादी ने संघ को हाशिए पर डाल दिया था, उसी तरह कहीं पूरे देश में मोदी कहीं संघ को हाशिए पर न डाल दें। वाजपेयी सरकार के दौरान संघ का सरकार के साथ अच्छा अनुभव नहीं था। (संवाद)