भारत रत्न प्रदान करने के लिए कुछ अन्य नामों के साथ कांशीराम का नाम भी लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि दलितों के उत्थान के लिए उनका जो योगदान रहा है, उसके लिए उन्हें भारत रत्न की उपाधि वर्तमान सरकार दे सकती है। लेकिन सच्चाई यह है कि दलित वोटों को अपना हिस्सा बनाने का इरादा रखकर भाजपा इस दिशा में सोच रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। उनकी पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई उनका दलित मतदाता आधार अभी असमंजस है और उसका लाभ उठाकर भाजपा उनके अंदर पैठ करना चाहती है और मायावती के दलित आधार को कमजोर करना चाहती है। इसीलिए कांशीराम को भारत रत्न की उपाधि देने की बात की जा रही है।
कांशीराम के साथ अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी इस सम्मान के लिए लिया जा रहा है। उन्हें इसके द्वारा सम्मानित कर ब्राह्मणों को तुष्ट करने की कोशिश की जा रही है। गौरतलब है कि दलित और ब्राह्मण कांग्रेस के परंपरागत आधार रहे हैं और अब भाजपा की नजर उन दोनों को अपना वोट बैंक बनाने पर है।
दिलचस्प बात यह है कि मायावती कांशीराम को भारत रत्न की उपाधि दिलाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं, जबकि उन्हें इसके लिए सबसे ज्यादा सक्रिय होना चाहिए था। कांशीराम की बहन स्वरन कौर और भाई हरबंश सिंह इसके लिए मायावती की आलोचना भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे दोनों लगातार प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से पत्र लिखकर कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं, पर मायावती उनके प्रयासों को मजबूती नहीं प्रदान कर रही हैं। वे दोनों यूपीए के कार्यकाल से ही इस दिशा में प्रयास रत हैं। उन दोनों ने मायावती को कहा कि पार्टी की ओर से भी इस तरह का प्रस्ताव वह सरकार को दें, लेकिन उन्होंने इसमे दिलचस्पी नहीं दिखाई और वैसा करने से इनकार कर दिया।
भारत रत्न सबसे पहले सी राजगोपालाचारी, वैज्ञानिक सीवी रमण और सर्व पल्ली राधाकृष्णन को को 1954 में दिया गया था। उसके बाद अबतक 43 लोगों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है। उनमें से 11 को मरने के बाद यह पुरस्कार दिया गया है। पहले मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान दिए जाने की व्यवस्था नहीं थी, लेकिन बाद में इसकी व्यवस्था भी कर दी गई। 1966 में लाल बहादुर शास्त्री को मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान पहली बार दिया गया।
भारत रत्न आमतौर पर भारतीय में पैदा हुए भारतीय लोगों को ही दिया जाता है, लेकिन इस नियम का अपवाद भी है। जब मदर टेरेसा को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला, तो उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। गौरतलब है कि मदर टेरेसा जन्म से भारतीय नहीं थीं। पाकिस्तानी नागरिक खान अब्दुल गफ्फार खान को भी यह सम्मान दिया और नेल्सन मंडेला को भी। यह सम्मान पाने वाले ये दोनों विदेशी नागरिक हैं, हालांकि खान अब्दुल गफ्फार खान विभाजन के पहले भारतीय ही थे और उन्होंने विभाजन का अंत अंत तक विरोध किया था।
अभी मोदी सरकार ने भारत रत्न पाने वालों के नाम पर अंतिम फैसला नहीं किया है। सुभाष चन्द्र बोस का नाम भी आ रहा है और ध्यानचंद का भी। सुभाष बोस को 1992 में यह सम्मान देने की घोषणा एक बार पहले भी हो चुकी है, लेकिन तब उसे लेने से सुभाष के परिवार वालों ने इनकार कर दिया, क्योंकि मरणोपरांत पुरस्कार की घोषणा की गई थी, जबकि अधिकांश लोग मान रहे थे कि सुभाष अभी भी जिंदा हैं।
भारत रत्न पर राजनीति करके इसकी अहमियत को कमजोर ही किया जा रहा है। (संवाद)
भारत रत्न पर विवाद
भाजपा राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही है
हरिहर स्वरूप - 2014-08-25 11:31
यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि देश का सबसे बड़ा नागरिक अवार्ड भारत रत्न का राजनैतिककरण कर दिया गया है और यह हमेशा विवादों में घिरा रहता है। इसके इस्तेमाल से राजनैतिक लाभ लेने की कोशिशें भी होती रहती हैं। भारत रत्न देने की व्यवस्था इसलिए की गई थी, ताकि ऐसे लोगों को सम्मानित किया जाय, जिन्होंने देश और समाज के लिए बडा योगदान किया है। लेकिन यह विभाजनकारी राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। कभी इसे जाति की राजनीति में इस्तेमाल किया जाता है, तो कभी क्षेत्र की राजनीति में इसका इस्तेमाल किया जाता है। अब जरूरत इस बात की है कि इसे राजनीति से अलग किया जाय और इसे प्रदान करने के तौर तरीके को पारदर्शी बनाया जाय।