अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी पिछले 4 दशकों से पार्टी के शीर्ष पर थे। उनके नेतृत्व में ही पार्टी शून्य से सत्ता तक पहुंची। पहले अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ बहुमत हासिल किया और पिछले चुनाव में तो अपने दम ही वह बहुमत में है।

वाजपेयी पिछले कई सालों से बीमार चल रहे हैं और उनकी राजनैतिक सक्रियता समाप्त हो गई है। इसलिए उन्हें संसदीय बोर्ड से बाहर करने का तो कोई मतलब समझ में आता है, आडवाणी और जोशी को वहां से बाहर करने का कोई वाजिब कारण नहीं दिखाई पड़ता। दोनों शारीरिक और मानसिक रूप से पार्टी के संसदीय बोर्ड का सदस्य बनने के लिए फिट हैं। दोनों ने पिछले लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था और भारी मतों से जीत भी हासिल की थी।

जाहिर है, दोनों के बोर्ड से बाहर होने का संबंध उनके नरेन्द्र मोदी से खराब हुए रिश्तों से है। लालकृष्ण आडवाणी नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में उभरने का लगातार विरोध कर रहे थे। वे तो उन्हें पार्टी के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनाए जाने के भी खिलाफ थे और कार्यकारिणी की जिस गोवा बैठक में श्री मोदी को अध्यक्ष बनाया गया, उसका उन्होंने बहिष्कार तक कर डाला था। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने के लिए बुलाई गई संसदीय बोर्ड की बैठक का भी लालकृष्ण आडवाणी ने बहिष्कार किया था। सच तो यह है कि मोदी के रास्ते में आडवाणी जितने रोड़े डाल सकते थे, उतने उन्होंने डाले। मुरली मनोहर जोशी भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाए जाने को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थे। उन्होंने मोदी के प्रति अपना अविश्वास भाव कभी नहीं छिपाया।

मोदी सरकार के गठन के बाद लालकृष्ण आडवाणी की इच्छा लोकसभा का स्पीकर बनने की थी, लेकिन नरेन्द्र मोदी को उनकी यह इच्छा रास नहीं आई और उन्होंने आडवाणी को उस पद के काबिल भी नहीं समझा। अब उन्हें भाजपा के संसदीय बोर्ड से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। हालांकि खुश करने के लिए उन्हें एक झुनझुना भी थमा दिया गया है। इस झुनझुने का नाम है मार्ग दर्शक मंडल। तीनों वयोवृद्ध नेताओं के लिए एक मार्गदर्शक मंडल बनाया गया है और उन्हें उसका सदस्य बना दिया गया है और कहा जा रहा है कि ये अब पार्टी के लिए मार्गदर्शक का काम किया करेंगे। लेकिन इसका कोई खास मतलब नहीं है।

राजनाथ सिंह को भी नरेन्द्र मोदी ने उनकी जगह दिखा दी है। कहने को तो वे गृहमंत्री हैं और सरकार में उन्हें दूसरे नंबर का ओहदा भी दे दिया गया है, लेकिन उन्हें अपनी पसंद का पीएस तक नहीं रखने दिया गया। अब उनके बेटे पंकज सिंह के भ्रष्टाचार की खबरें और अफवाहें हवा में तैर रही हैं, हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय और भाजपा अध्यक्ष की ओर इनका खंडन भी हो चुका है, लेकिन राजनाथ सिंह को जो राजनैतिक नुकसान होना था, सो हो गया है। उन्हें टाॅप नियुक्ति करने वाली समिति का सदस्य तक नहीं बनाया गया है।

पार्टी और सरकार पर अपनी पकड़ मजबूत करने के बाद अब यह देखना दिलचस्प है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मोदी का कैसा रिश्ता रहता है। इस समय तो दोनों के बीच रस्साकशी चल रही है। देखना है कि यह कौन सा रंग दिखाती है। (संवाद)