नरेन्द्र मोदी सरकार ने शपथग्रहण बहुत ही नकारात्मक माहौल में किया था। मनमोहन ंिसंह की सरकार के दूसरे कार्यकाल में लोगों का विश्वास सरकार से ही टूट गया था। उसके कारण ही अन्ना और रामदेव के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ बड़े बड़े आंदोलन हो रहे थे। लोगों का विश्वास सिर्फ सत्तारूढ़ पार्टियों से ही नहंी, बल्कि विपक्षी पार्टियों के ऊपर से उठ रहा था। इसी का नतीजा था कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को ऐसी सफलता मिली, जिसका अनुमान स्थापित पार्टियां और उनके नेता भी नहीं लगा सके थे।
लेकिन जिस तरह लोगों का विश्वास राजनैतिक पार्टियों के ऊपर से उठता जा रहा था, उसी पैमाने पर लोगांे का विश्वास नरेन्द्र मोदी के ऊपर बढ़ता जा रहा था। देश जिन संकटों में फंसा था, उन संकटों की मुक्ति का रास्ता लोगों में नरेन्द्र मोदी में दिखाई दे रहा था। यही कारण है कि देश के लोगों ने संभवतः पहली बार एक व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट किया। इन्दिरा और नेहरू भी जब चुनाव लड़ते थे, तो उस समय लोग सिर्फ उनको वोट नहीं देते थे, बल्कि उनको उनकी पार्टी के नाम पर वोट दिया करते थे। पर पिछले लोकसभा चुनाव मंे लोग मोदी को वोट दे रहे थे, उनकी पार्टी को नहीं। वह जीत मोदी की निजी जीत थी और पार्टी ने सिर्फ सहयोगी भूमिका निभाई थी।
जाहिर है सत्ता पाने के बाद मोदी को यह दिखाना था कि उनमें विश्वास करके देश की जनता ने कोई गलती नहीं की। पहल सौ दिनों के उनके कार्यकाल को देखते हुए कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी ने लोगों को निराश नहीं किया है। यह सच है कि महंगाई अभी भी समाप्त नहीं हुई है, हालांकि सच यह भी है कि महंगाई की रफ्तार पर लगाम लगी है और मानसून जिस तरह कमजोर रहा है, उसके माहौल में कीमतों के बढ़ने के आसार बहुत ज्यादा हो गए थे, पर सरकार ने बाजार को आपे से बाहर जाने नहीं दिया और महंगाई के बावजूद उसे नियंत्रण से बाहर नहीं जाने दिया।
पहले 100 दिनों में मोदी सरकार ने अनेक ऐसे निर्णय लिए, जिनके कारण लोग राहत की सांस ले रहे हैं। एक निर्णय तो दिल्ली विश्वविद्यालय से 4 साल के स्नातक कोर्स को समाप्त करवाना था। वह निर्णय देश के लोगों को बहुत अखर रहा था, क्योंकि देश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी 4 साल के स्नातक कोर्स को लागू किए जाने का खतरा था और वह खतरा काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविक था। मोदी सरकार बनने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय को वह फैसला वापस लेना पड़ा। दूसरा फैसला संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में अंग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ने से संबंधित था। पिछली सरकार के कार्यकाल मंे आयोग ने आभिजात्य वर्ग के लोगों को फायदा पहुंचाने के ख्याल से अंग्रेजी का परीक्षा में महत्व बढ़ा दिया था। मोदी सरकार ने इसे वापस करवाया।
भ्रष्टाचार आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार ने हमारे देश में होने वाली उत्पादन लागत को बढ़ा दिया है, जिसके कारण महंगाई यहां की स्थाई वासी हो गई है। यदि भारतीय माल चीनी मालों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता है, तो इसका कारण भारत का भ्रष्टाचार है। यह एक साथ हजारों समस्याओं को जन्म दे रहा है। भ्रष्टाचार का संबंध सीधे तौर पर प्रशासन के तौर तरीकों से हैं नरेन्द्र मोदी की सरकार इन तौर तरीकों को ही बदल रही है। प्रमाण पत्रों को खुद अभिप्रमाणित करने की व्यवस्था मोदी सरकार ने तैयार कर दी है और राज्य सरकारों को भी इसे लागू करने को कहा है। अनेक मामलों में रोटरी और जजों से स्टांप पेपर पर प्रमाण पत्र तैयार करवाने होते थे। अधिकांश मामलों मे इसे समाप्त कर दिया गया है।
नरेन्द्र मोदी सरकार का मूल मंत्र ’’कम से कम प्रशासक और ज्यादा से ज्यादा प्रशासन’’ है। इसके तहत प्रशासन के तौर तरीके में अनेक प्रकार के बदलाव किए जा रहे हैं, जिनका असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा। दरअसल हमारे देश का पूरा प्रशासन अंग्रेज काल की उस सोच पर आधारित है, जिसके तहत आम लोगों को अविश्वसनीय, झूठ और मक्कार माना जाता है और उनके बारे में जानकारी की पुष्टि प्रशासकों से कराई जाती है। हम उस अंग्र्रेजकालीन प्रशासन व्यवस्था को आज भी ढो रहे हैं, जबकि हमें आजाद हुए 67 साल हो गए हैं। यानी जो व्यवस्था गुलामों के लिए बनी थी, उसी व्यवस्था के तहत हम प्रशासित होने के लिए अभिशप्त हो रहे हैं।ं नरेन्द्र मोदी सरकार उस व्यवस्था को बदल रही है। थोड़े बहुत बदलाव हुए हैं और बहुत सारे बदलाव होने बाकी हैं। लेकिन जो थोड़े बदलाव हुए हैं, उनसे लोगों की उम्मीदें जगी हैं कि धीरे धीरे उनके जीवन में प्रशासन का महत्व कम होगा।
जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तो उनके बारे में लोगों को सिर्फ यही पता था कि वे गुजरात के एक सफल मुख्यमंत्री थे। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री में बहुत अंतर होता है। दोनों के अधिकारों मंे आसमान जमीन का अंतर होता है, इसलिए यह सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता था कि श्री मोदी किस तरह के प्रधानमंत्री होंगे। पर 100 दिन के उनके कार्यकाल ने साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री के रूप में भी वे बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं। नौकरशाही पर लगाम लगाने का उनका प्रयास और अपने मंत्रियों पर भी नियंत्रण रखने की उनकी कोशिश से लोगों को लग रहा है कि यह सरकार आने वाले दिनो में और भी बेहतर काम करेगी। विदेशी मोर्चे पर भर सरकार ने वे उपलब्धियां हासिल की हैं, जो आमतौर पर 100 दिन के अंदर कोई सरकार नहीं प्राप्त कर पाती है। शपथग्रहण के दिन ही अपने पड़ोसी देशों के सरकार प्रमुखों को भारत लाकर मोदी ने एक सुलझे हुए राजनेता होने का संकेत दे दिया था। पाकिस्तान नीति को कठोर कर उन्होंने पाकिस्तान को भी सही संदेश भेज दिया है। कुल मिलाकर उनके प्रति देश में एक आशा का माहौल बना। (संवाद)
भारत
सौ दिन मोदी सरकार के
बेहतर भविष्य की संभावनाओं से भरपूर
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-09-03 12:50 UTC
नरेन्द्र मोदी सरकार के सौ दिन पूरे हो गए हैं। किसी भी सरकार की उपलब्धियों का आकलन करने के लिए 100 दिन का समय काफी नहीं होता है। खासकर भारत जहां की सारी व्यवस्थाएं बहुत ही सुस्त हैं, शुरुआती 100 दिन में किसी प्रकार की उपलब्धि की उम्मीद भी कोई मायने नहीं रखती। फिर भी देश की जनता ने जिस आशा और विश्वास के साथ नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए मतदान किया, उस माहौल में नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए कुछ कर गुजरना बहुत जरूरी था और यदि कहा जाय कि मोदी ने अपने समर्थक मतदाताओं को निराश नहीं किया है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा।