पहले साल से लोगों को ज्यादा उम्मीदें भी नहीं थीं, क्योंकि पहला साल सबकुछ समझने का साल होता है। दूसरा और तीसरा साल ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। फिर चैथे साल में तो अगले चुनाव में जीत को ध्यान में रखकर काम किया जाता है।

ओबामा को बहुत ही उम्मीदों के साथ उनके समर्थकों ने उन्हें राष्ट्रपति बनाया था। उन्हें लग रहा था कि वे अमेरिका को उन बुलंदियों तक ले जाएंगे, जहां तक ले जा पाने में उनके पूर्ववर्ती बुश नहीे ले जा सके थे। जाहिर है अपने कार्यकाल के पहले वर्षों में ओबामा अपने समर्थकों के मानदंडों पर न तो घरेलू मोर्चे पर और न ही अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर खरे उतर सके।

घरेलू मोर्चे पर ओबामा ने 2009 में अपना ध्यान देश के आर्थिक संकट को हल करने और रोजगार अवसर पैदा करने में लगाए रखा। वित्तीय मोर्चे पर भी समस्याएं चल रही थी। साल का अंत उन्होंने देश में स्वास्थ्य की समस्या से संबंधित कानून को तैयार करने के साथ किया। उन्होंने बच्चों के स्वास्थ्य बीमा के लिए भी एक कानून बनाया। उन्होंने पहले साल के दौरान कई महत्वपूणै कानून बनवाए। अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर ओबामा ने पहले साल में 20 देशों का दौरा किया। उनकी एक उपलब्धि कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन का समझौता करवाना रहा।

सवाल उठता है कि भारत अमेरिका संबंधों को लेकर ओबामा का प्रदर्शन कैसा रहा? सबसे पहले ओगामा ने भारतीय मूल के कुछ लोगों को अपने प्रशासन में रखकर भारत के लोगों की बाहबाही पाई। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दी गई डिनर पार्टी ओबामा द्वारा दी गई पहली डिनर पार्टी थी। भारत में अमेरिका के अनेक नेताओं और अधिकारियों ने दौरा किया। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन भी भारत आईं और उन्होंने निजी तौर पर मिलकर ओबामा की ओर से अमेरिका आने का निमंत्रण भारतीय प्रधानमंत्री को दिया था।

लेकिन पाकिस्तान को लेकर भारत की चिंता को अमेरिका ने ज्यादा तरजीह नहीं दी है। अमेंरिका पाकिस्तान को सैनिक और आर्थिक सहायता दिए जा रहा है, जो भारत को पसंद नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति की चीन यात्रा से भी भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। अमेरिका द्वाास चीन को दिया जा रहा महत्व खटकने वाला है। हालांकि कहा जा रहा है कि अमेरिका चाहता है कि चीन पाकिस्तान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उसे अल कायदा के खिलाफ कड़ा रुख दिखाने के लिए तैयार करे। यदि अमेरिका की ऐसी अपेक्षा है तो उसकी यह इच्छा शायद ही पूरी हो पाएगी।

अफगानिस्तान की अमेरिकी नीति को लेकर भी भारत सशंकित है। भारत चाहता है कि अमेरिका अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति बनाए रखे और तालिबान को फिर से वहां काबिज होने से रोके। ओबामा ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की संख्या बढ़ा भी दी है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि अमेरिका की सेना वहां हमेशा नहीं रहने वाली है। भारत को लगता है कि अमेरिका की सेना के वहां से हटने और तालिबान के फिर से अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद दक्षिण एशिया की समस्या और पेचीदी हो सकती है।

परमाणु मसले पर भी भारत को ओबामा से कोई खास मदद नहीं मिल रही है। बुश प्रशासन के दौरान दोनों देशों के बीच परमाणु समझौता तो हो गया, लेकिन उस समझौते के तति अमेरिका से परमाणु व्यापार होने में अभी भी विलंब है। अमेरिका ने परमाणु अप्रसार संधि पर समझौता करने के लिए फिर भारत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है, जो भारत को पसंद नहीं है। जाहिर है भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक सहयोग अभी और समय की मांग करते है।

इन सबके बावजूद भारत और अमेरिका के संबंध मजबूत हो रहे हैं। दोनो देशों के बीच विश्वास बढ़ रहा है और आतंकवाद के खिलाफ भी अमेरिका भारत के लिए मददगार साबित हा रहा है। (संवाद)