राहुल गांधी के बुरे वक्त की बात तो समझ में आती है। उनकी पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में भारी झटका लगा है। उसे तात्र 44 सीटों तक सिमट कर रह जाना पड़ा है। पर सवाल उठता है कि वरुण गांधी के दिन क्यों खराब हुए हैं, जबकि उनकी पार्टी भाजपा ने तो रिकार्ड जीत हासिल की है?

वरुण के बुरे दिन चलने के दो कारण हो सकते हैं। एक कारण तो उनका नेहरू खानदान का होना ही है। राजनीति में ऐसे कई लोग हैं जो इस खानदान के नाम पर नाक भौं सिकोड़ते हैं। भारतीय जनता पार्टी के अंदर भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है। वरुण के पिता संजय गांधी को भी वे लोग पसंद नहीं करते थे। आपातकाल के दौरान उनकी जो छवि बनी थी, उसकी छाया आज भी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर है।

दूसरा कारण वरुण गांधी का मां मेनका गांधी ही हैं। उन्होंने अपना धीरज गंवाते हुए अपने बेटे वरुण को उत्तर प्रदेश के भाजपाई मुख्यमंत्री दावेदार बनाना चाहा। उन्होंने कहा कि वरुण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हो सकते हैं। जिस पार्टी का केन्द्रीय गृहमंत्री अपनी पसंद का एक निजी सचिव नहीं रख सकता, उस पार्टी में एक मां अपने बेटे को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कैसे घोषित कर सकती है?

बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी के अंदर वरुण गांधी की उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। उनकी राजनीति का चरमबिन्दु 2009 था, जब उन्होंने कट्टर हिन्दुत्ववादी विचार प्रकट किए थे। उस समय उन्होंने अपने मुस्लिम विरोध को नई ऊंचाई प्रदान की थी। भारतीय जनता पार्टी के लिए इससे ज्यादा संतोष की बात और क्या हो सकता था कि नेहरू का पड़नाती एक संघ प्रचारक की तरह मुसलमानों के खिलाफ आग उगल रहा हो। उसके लिए वरुण पर मुकदमा भी चला था। हालांकि मुकदमे में उन्हें कुछ नहीं हुआ, लेकिन उसके कारण वरुण की एक खास छवि बन गई है, जिसे मिटाना आसान नहीं होगा।

वरुण गांधी ने लोकसभा चुनाव में अपने क्षेत्र मे अपने चुनावी अभियान के दौरान राहुल गांधी द्वारा अपने क्षेत्र में बेहतर काम करने की बात करते हुए अपने चचेरे भाई की तारीफ कर दी थी। इसके कारण भी भाजपा नेताओं की उनसे नाराजगी हो गई थी। उसके पहले कोलकाता की नरेन्द्र मोदी की रैली को संख्या के लिहाज से छोटा बताकर भी वरुण ने अपनी परेशानी का रास्ता खुद तैयार कर लिया था। लेकिन उनका सबसे ज्यादा नुकसान उनकी मां मेनका गांधी ने ही किया, जिन्होंने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना शुरू कर दिया।

राहुल की हालत तो वरुण गांधी से भी ज्यादा खराब है। अपने इस खराब समय में वरुण गांधी अपने आपको अवकाश पर रख सकते हैं। छुट्टियों पर जा सकते हैं। अपनी राजनैतिक गतिविधियों को भी विराम दे सकते हैं और अपनी सक्रियता बढ़ाने के लिए बेहतर समय का इंतजार कर सकते हैं। लेकिन राहुल गांधी के पास तो यह विकल्प भी उपलब्ध नहीं है। राहुल को मीडिया लाइमलाइट में रहना ही होगा, वे इसे चाहें या न चाहें। यदि वे कुछ नहीं करते हैं, तब भी उनका कुछ नहीं करता देश के सामने आता रहेगा। लोग यह जानने की कोशिश करते रहेंगे कि पार्टी को फिर से जिंदा करने के लिए राहुल कर क्या रहे हैं।

राजस्थान में कांग्रेस की जीत का श्रेय भी अब राहुल गांधी ले नहीं पा रहे हैं। इसका कारण साफ है। राहुल अथवा सोनिया के कारण वहां कांग्रेस की जीत नहीं हुई है, बल्कि वसुंधरा राजे सिंधिया के खिलाफ पैदा हो रहे जन असंतोष का लाभ कांग्रेस को मिला है। जाहिर है, राहुल को राहुल काल से गुजरना पड़ रहा है।(संवाद)