इन उपचुनावों से कांग्रेस के लिए भी संदेश स्पष्ट हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उसके पास कोई करिश्माई नेता नहीं है, जो पार्टी को वोट दिला सके। अब स्थानीय स्तर पर नेतृत्व को उभारकर और उसे मजबूत कर ही कांग्रेस अपने आपको मजबूत कर सकती है। अबतक कांग्रेस स्थानीय स्तर पर मजबूत नेतृत्व के उभरने को लेकर सशंकित रहती आई है और एक रणनीति के तहत उस तरह के नेतृत्व को कमजोर कर दिया जाता है। पर अब कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी और राज्य स्तरीय नेताओं पर अपनी निर्भरता को बढ़ाना पड़ेगा। राजस्थान में कांग्रेस सचिन पायलट के नेतृत्व में मजबूत बन गई है।

उत्तर प्रदेश में अपने इतिहास का सबसे बेहतर प्रदर्शन करने के 4 महीने के अंदर ही भारतीय जनता पार्टी वहां अपना आधार बनाए रखने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है। मई के लोकसभा चुनाव में उसे 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उसके समर्थन से अपना दल के दो सांसद भी जीते थे। पर इस बार विधानसभा के उपचुनावों में उसकी स्थिति दयनीय दिखाई पड़ी। 11 सीटों पर मात्र उसे तीन में ही जीत हासिल हो सकी, जबकि सारी की सारी सीटें उसी के विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई थीं। सीटें खाली करने वाले उसके विधायक लोकसभा के सदस्य बन गए हैं, लेकिन वे लोकसभा सांसद भी खुद द्वारा खाली की गई सीटांे पर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की जीत 8 सीटों पर सुनिश्चित नहीं करा सके।

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने जबर्दस्त सफलता हासिल की है। भारतीय जनता पार्टी के मजबूत गढ़ों में भी समाजवादी पार्टी अपनी पहुंच बनाने में सफल हुई है। गौरतलब है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी इन सभी सीटों पर पराजित हो गई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में तो उसकी भारी दुर्गति हो गई थी, लेकिन उस हार के चार महीनों के अंदर ही उसने शानदार सफलता हासिल कर भारतीय जनता पार्टी को करारा झटका दे डाला है।

राजस्थान में तो भाजपा की और भी दुर्गति हुई है। वहां 4 सीटों पर उपचुनाव हुए। चारों सीटें भाजपा के विधायकों ने ही खाली की थी। उनमें से तीन मंे उसकी हार हो गई। उत्तर प्रदेश के मामले मे वह यह कह सकती है कि राज्य सरकार समाजवादी पार्टी की होने के कारण मतदाताओं को और परिणाम को अपने अनुकूल करने में समाजवादी पार्टी सफल हुई, लेकिन राजस्थान में तो उसकी अपनी ही सरकार है और उसके बावजूद उसकी भारी पराजय हुई। उस हार के बाद राजस्थान भाजपा का अंतर्कलह तेज हो गया है। वसुंधरा राजे सिंधिया पर उनके विरोधियों के हमले तेज हो गए हैं।

गुजरात में 9 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए और उसमें भारतीय जनता पार्टी की तीन पर हार हुई। यह सच है कि अभी भी वहां भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के ऊपर भारी है, लेकिन चुनावी नतीजों से साफ लगता है कि भाजपा के हाथ से वह राज्य खिसकता नजर आ रहा है। गुजरात में अपने प्रदर्शन को आधार बनाकर ही नरेन्द्र मोदी ने देश भर में अपनी लहर बनाई थी। अब वे देश के प्रधानमंत्री हैं और उनकी जगह मुख्यमंत्री बनी आनंदीबेन पटेल भाजपा को मनचाही जीत दिलाने में सफल नहीं हुई।

भारतीय जनता पार्टी के लिए संतोष की बात यह है कि पश्चिम बंगाल में 15 साल के बाद उसका एक विधायक बना है। 15 साल पहले तृणमूल कांग्रेस के समर्थन से उसका एक विधायक बना था, पर इस बार अपने बूते अपना विधायक विधानसभा में भेजने में भाजपा सफल हुई है। बशीरहाट से उसका उम्मीदवार जीता। चैरंगी सीट से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार जीती है और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को दूसरा स्थान वहां मिला है। कांग्रेस का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहा और सीपीएम उम्मीदवार की तो जमानत ही जब्त हो गई।

लेकिन हिंदी राज्यों और गुजरात में भाजपा को जो झटका लगा है, उसकी भरपाई बशीरहाट की जीत नहीं कर सकती। (संवाद)