शिवसेना के राजग गठबंधन से बाहर होने के बाद अब केन्द्र की सरकार शिवसेना के 18 लोकसभा सांसदों का समर्थन हो देगी। इससे केन्द्र सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि लोकसभा में उसे आरामदायक बहुमत हासिल है, लेकिन राज्यसभा में शिवसेना के 4 सांसदों का समर्थन खोने से वहां सरकार को दिक्कत आ सकती है, क्योंकि वह वहां पहले से ही अल्पमत में है और वहां से विधेयक पारित करवाने में उसे मशक्कत का सामना करना पड़ता है।
शिवसेना और एनसीपी ने ऐसी शर्ते रखी थीं, जिन्हें मानना किसी के लिए भी संभव नहीं होता। शिवसेना चाहती थी कि गठबंधन उद्धव ठाकरे को चुनाव के पहले ही अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दे, भले ही शिवसेना को भाजपा से कम सीटें मिले। इस तरह की घोषणा भाजपा भला कैसे कर सकती थी? यदि उसके ज्यादा विधायक चुनकर आते हैं, तो जाहिर है कि मुख्यमंत्री उसी का होगा। इस तरह का प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी क्या, कोई भी पार्टी स्वीकार नहीं करेगी।
शिवसेना की तरह ही एनसीपी ने भी एक अतिवादी प्रस्ताव दे रखा था। उसका कहना था कि चुनाव के बाद यूपीए की सरकार में कांग्रेस और उसका मुख्यमंत्री बारी बारी से होना चाहिए। कांग्रेस यह मानने को तैयार थी कि यदि एनसीपी को ज्यादा सीटें आती हैं, तो उसके मुख्यमंत्री पर उसे कोई एतराज नहीं होगा, लेकिन एनसीपी किसी भी स्थिति में अपना मुख्यमंत्री बनाने का हठ रही थी। यह हठ इसलिए भी आश्चर्यजनक थी, क्योंकि 15 साल के शासन के बाद महाराष्ट्र में फिर से यूपीए की सरकार बनने की संभावना ही दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रही थी। जब सरकार बनने की कोई संभावना ही नहीं दिख रही हो, तो फिर अपने मुख्यमंत्री के हठ का क्या मतलब हो सकता है?
अब सवाल उठता है कि दोनों गठबंधन में हुई टूट का क्या असर हो सकता है? सबसे पहला असर तो अब महाराष्ट्र में चैतरफा मुकाबले के रूप में दिखाई देगा। कहीं कहीं पंचकोणीय मुकाबला भी हो सकता है, क्योंकि राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना भी चुनाव मैदान में होगी। जाहिर है, वोटों का जबर्दस्त बंटवारा होगा।
मराठा वोटों का जबर्दस्त बंटवारा होगा। वे शिवसेना, भाजपा, एनसीपी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना में बंटेंगे। शिवसेना को गुजराती वोटों का नुकसान होगा। वहां 54 फीसदी ओबीसी वोट हैं। अब उनके पास भी 4 विकल्प हैं।
कांग्रेस और एनसीपी के बीच मुस्लिम और दलित वोटों का बंटवारा होगा, पहले वे दोनों समुदाय एक साथ इन दोनों पार्टियों को वोट देते थे। उनके मतों के बंटवारे से दोनों पार्टियों को नुकसान होगा।
विदर्भ में विधानसभा की 60 सीटें हैं। वहां शिवसेना को भारी नुकसान होगा और भाजपा फायदे में रहेगी। उत्तरी महाराष्ट्र में भी शिवसेना को नुकसान होगा और भाजपा को ज्यादा सीटें मिलेंगी। पश्चिम महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की तूती बोलती थी। अब उनके मतों का बंटवारा होगा। मराठवाड़ा में शिवसेना मजबूत स्थिति में होगी। मुंबई, थाणे और कोंकण में भाजपा को शिवसेना के साथ का लाभ मिलता था।
चुनाव नतीजों का अभी से अनुमान लगाना आसान नहीं है, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि किसी भी पार्टी को अकेले बहुमत हासिल नहीं होगा और एक त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आएगी। त्रिशंकु विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी एनसीपी हो सकती है। शिवसेना यदि वर्तमान सीटों की संख्या को भी बरकरार रख पाए, तो यह उसकी एक बड़ी उपलब्धि होगी। कांग्रेस को भी सीटों का भारी नुकसान हो सकता है।
शिवसेना के गढ़ में भाजपा की पैठ बढ़ सकती है। शिवसेना और भाजपा के पास नेता नहीं है, लेकिन नरेन्द्र मोदी का जादू भाजपा के काम आ जाएगा। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में अभी भी नरेन्द्र मोदी का जादू चल रहा है और यदि उन्होंने वहां पार्टी के लिए प्रचार किया, जो निश्चित है, तो पार्टी को बहुमत फायदा होगा।
चुनाव में बाद यदि भाजपा और एनसीपी की मिली जुली सरकार बने, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। काबिल ए गौर है कि जैसे ही शिवसेना और भाजपा के बीच टूट की खबर आई, उसके एक घंटे के अंदर ही एनसीपी ने भी कांग्रेस से गठबंधन समाप्त करने की घोषणा कर दी थी। (संवाद)
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महाराष्ट्र में भाजपा की नई रणनीति
शिवसेना और कांग्रेस को होगा सीटों का नुकसान
हरिहर स्वरूप - 2014-09-29 17:48
शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र में भारी गलती की है। उन्हें अपने अपने गठबंधनों में बना रहना चाहिए था। भाजपा और शिवसेना का गठबंधन पिछले 25 साल से चल रहा था और कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन भी 15 साल पुराना था। दोनों गठबंधनों ने अनेक उतार और चढ़ाव देखे थे। जब जब यूपीए सरकार पर खतरा पैदा होता था, एनसीपी हमेशा उसके साथ खड़ा रहता था। लेकिन अब कांग्रेस और एनसीपी ने अलग अलग रास्ता अख्तियार कर लिया है।