भारतीय प्रवासियों का अमेरिका में बढ़ता दबदबा उल्लेखनीय है। पिछले कई दशक से कांग्रेस के अंदर ये भारतीय प्रवासी एक मजबूत लाॅबी के रूप में उभर रहे हैं। वे वहां की नीतियों को भी अब प्रभावित करने लगे हैं। 1960 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वहां हिंदू स्वयंसेवक संघ का गठन किया था। वहां बसने वाले भारतीयों की पहली पीढ़ी बहुत ही तेज तर्रार और योग्यता वाली थी। वे लोग आपातकाल में सताए हुए भारत के लोग थे, जिन्हें वैचारिक कारणों से यहां सताया गया था। उनमें तमिलनाडु के वे ब्राह्मण भी थे, जिन्हें द्रविड़ आन्दोलन के दबाव में भारत छोड़ना पड़ा था। वे अमेरिका जाकर डाक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे थे।
भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के लोग वहां भारतीय प्रवासियों के बीच काम कर रहे थे और भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार कर रहे थे। वे वहां मंदिर बनवा रहे थे और योग को भी लोकप्रिय बनाने में लगे हुए थे। एक आकलन के अनुसार मई, 2014 में अमेरिका में हिंदू स्वयंसेवक संगठन की 140 शाखाएं थीे। शुरू में वे प्रवासी संगठित नहीं थे। धीरे धीरे वे संख्या और प्रभाव में बढ़ने लगे और ज्यादा संगठित भी होने लगे। 1990 के दशक में वहां का भारतीय दूतावास उन प्रवासी भारतीयों को संगठित करने में जुटा रहा। पहले उन्हें दबाव समूह के रूप में प्रवर्तित करने की कोशिश की गई। भारत में उदारवाद की नीतियों के शुरू होने के बाद वे लाॅबी की तरह काम करने लगे। अब वे सांसदों के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं और वैसे सांसदों को जीत दिलाने के लिए प्रचार अभियान में भी शामिल हो जाते हैं, जो भारतीय हितों के रक्षक बनें। उन लोगों ने अमेरिका में पाठ्यपुस्तकों में भी बदलाव लाने में सफलता पाई है, ताकि वे अपनी आस्था का बचाव कर सकें।
1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया था, तो अमेरिका ने भारत पर अनेक प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगा डाले थे। उस समय भारतीय प्रवासियों ने उन प्रतिबंधों को हटवाने में बहुत सहायता की थी। दो साल में उनके प्रयासों के कारण वे प्रतिबंध हटा भी दिए गए थे। 2000 में बिल क्लिंटन भारत आए और उसके कुछ समय बाद भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वहां की यात्रा की थी। भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका के साथ भारत के परमाणु करार को संभव बनाने में भी बहुत सहायता की थी।
नरेन्द्र मोदी ने चीन सरकार के अनुभवों से भी सीख ले रखी है, ऐसा महसूस होता है। चीनियों से ही नहीं, बल्कि यहूदियों से भी मोदी ने सीखा होगा। इसके कारण ही नरेन्द्र मोदी अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की ताकत का प्रदर्शन करना चाहते थे। मेडिसन चैक गार्डेन के आयोजन का यही उद्देश्य था।
सच तो यह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में ही मोदी ने अमेरिका के भारतीय प्रवासियों के दिलों को जीतना शुरू कर दिया था। भारतीय प्रवासियों ने ही उन्हें 2005 में अमेरिका आमंत्रित किया था, जिसके लिए उन्हें वहां का वीजा नहीं दिया गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने मोदी के लिए समर्थन जुटाना शुरू कर दिया था। उन्होंने अमेरिका में भी चाय पर चर्चा का आयोजन शुरू किया था। उन लोगों मंे से कुछ ने भारत आकर मोदी के लिए चुनाव प्रचार भी किया था और चुनावी कोष भी उपलब्ध कराए थे।
नरेन्द्र मोदी ने एक कुशल रणनीतिकार की तरह अपनी अमेरिकी यात्रा को रूप दिया। उन्होंने वहां के भारतीय प्रवासियों को न केवल खुद से जोड़ा, बल्कि उनकी ताकत का अमेरिका में प्रदर्शन कर उनके प्रभाव को और भी बढ़ाने का काम किया। इसके कारण अमेरिका के साथ अपने रिश्तों में भारत की स्थिति और भी मजबूत हो गई है। अमेरिका के साथ मोलतोल करने की उसकी ताकत बढ़ गई है। (संवाद)
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मोदी ने अमेरिका में भारतीय प्रवासियों को जीत लिया
ओबामा के साथ भारत की मोलभाव ताकत बढ़ी
कल्याणी शंकर - 2014-10-04 16:49
इस बात पर बहस हो सकती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी यात्रा सफल रही या विफल, लेकिन इस पर कोई दो मत नहीं हो सकता कि उन्होंने अमेरिका स्थित भारतीय मूल की 30 लाख की आबादी का दिल जीत लिया है। भारतीय प्रवासियों के दिल पर विजय हासिल कर मोदी ने वहां भारत के लिए एक बेहतर माहौल बना डाला है।