पिछले साल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान से लिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, ‘‘प्रदेश इन दिनों कृषि विकास में बहुत आगे है पर कृषि क्षेत्र की एक सीमा है। मैं अगले 5 साल में प्रदेश में औद्योगिक विकास करना चाहता हूं। मध्यप्रदेश का देश के बीचों बीच होने का फायदा हम उठाएंगे। यहां से देश के सभी हिस्सों में आसानी से पहुंचा जा सकता है। निवेशकों को यहां सारी सुविधाएं दी जा रही हैं।’’ मुख्यमंत्री ने भले ही औद्योगिक विकास के प्रति दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है और इसके लिए प्रदेश में चैथी बार 8 से 10 अक्टूबर तक ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट का आयोजन किया जा रहा है। पर यह देखना बहुत ही जरूरी है कि यह औद्योगिक विकास कृषि क्षेत्र को पीछे धकेलते हुए या फिर उसको रौंदते हुए नहीं हो। यद्यपि मुख्यमंत्री यह कहते हैं कि किसी किसान की जमीन उसकी इच्छा के बिना अधिग्रहित नहीं की जाएगी और औद्योगिक विकास के लिए 25 हजार हेक्टेयर का भूमि बैंक भी बनाया गया है।

इन स्थितियों में भले ही यह लगे कि औद्योगिक विकास से कृषि का विकास बाधित नहीं होगा, पर मौजूदा समय में ही कई जगह किसान अपनी भूमि अधिग्रहण को लेकर आंदोलनरत है। ऐसे में यह जरूरी है कि प्रदेश में कृषि आधारित उद्योगों पर ज्यादा जोर दिया जाए, जिसमें कृषि उत्पादों में ज्यादा बढ़ोतरी हो, गुणवत्तापूर्ण विकास हो एवं किसानों को उनके उत्पाद का सही दाम मिले।

प्रदेश में कृषि विकास को देखते हुए प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के लिए बनाई गई प्राथमिकता सूची में शामिल 12 प्राथमिकताओं में सरकार की पहली प्राथमिकता कृषि व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण पर ही है। यहां कृषि विकास एवं अनाज उत्पादन को देखते हुए फास्ट मुविंग कंज्यूमर गुड्स बनाने वाली कंपनियों के लिए ज्यादा स्कोप है, जो खाद्य प्रसंस्करण पर जोर दे सकती हैं। मध्यप्रदेश में कृषि उत्पादन के साथ-साथ कृषि आधारित ग्रामीण उद्योग को भी बढ़ावा देने का प्रयास बहुत ही जरूरी है क्योंकि खराब मौसम के कारण कृषि उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना हमेशा बनी रहती है। मध्यप्रदेश की सीमाएं समुद्री नहीं है, इसलिए यहां कृषि आधारित औद्योगिक अर्थव्यवस्था पर जोर देकर ज्यादा विकास किया जा सकता है। (संवाद)