इन उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को 11 में से 8 विधानसभा सीटो पर जीत हासिल हो गई। मायावती ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार नहीं खड़े किए थे, लेकिन उन्होंने 8 मजबूत निर्दलीय उम्मीदवारों के पक्ष में वोट डालने की अपील अपने समर्थकों से की थी। उनकी अपील का उनके समर्थकों पर कोई असर नहीं पड़ा। पिछले 25 सालों में ऐसा पहली बार हुआ कि मायावती के कट्टर समर्थकों ने उनकी अनसुनी कर या तो समाजवादी पार्टी या भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दिया। पर माना जा रहा है कि मायावती समर्थकों के ज्यादा वोट सपा उम्मीदवारों को पड़े, जिसके कारण उनकी जीत हुई।

बहुजन समाज पार्टी की हार का एक असर यह हुआ है कि अब इसके अनेक नेता अगड़ी जातियों के खिलाफ बोलने लगे हैं। विधानसभा में विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कुछ दिन पहले लखनऊ के पास हुई एक बैठक में बहुजनों से अपनी करते हुए कहा कि शादी विवाहों में वे गौरा और गणेश की पूजा नहीं करें। उन्होंने कहा कि हमारे देश की ब्राह्मणवादी व्यवस्था में चूहे की पूजा की जाती है, उल्लू की भी पूजा की जाती है, कुत्ते को भैरव माना जाता है, लेकिन बहुजनों को एक इंसान तक नहीं माना जाता। उनके साथ जानवरों से भी बुरा बर्ताव होता है। उन्होंने सम्राट महापद्मनन्द और कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते हुए कहा कि हमारे देश में बहुजन शासकों की कमी नहीं रही है, लेकिन बाद में हमें जातियों और वर्गों में बांटकर हमारी यह हालत कर दी गई है।

उन्होंने इसके लिए मनुवादियों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि हमें एससी, एसटी और ओबीसी में बांट दिया गया। उन मनुवादियो को इतना भर से संतोष नहीं हुआ, तो ओबीसी और एमबीसी में भी भेद किया गया और एससी को भी दलितों और महादलितों में बांट दिया गया। इस तरह बहुजनों को बांट बांट कर मनुवादी देश पर राज कर रहे हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्य का वह बयान मायावती को नागवार गुजरा और उन्होंने उसका खंडन करते हुए कहा कि बसपा सबको अपने अनुसार रीति रिवाज मानने और पूजा करने और करवाने की पक्षधर है। मौर्य के बयान से मायावती का किनारा करना साबित करता है कि बसपा प्रमुख अभी भ अगड़ी जातियों के लोगों के समर्थन की उम्मीद कर रही हैं और बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की जगह सर्वजन सुखाय की बात कर रही है।

उन्होंने बड़े पैमाने पर संगठन में फेरबदल करना शुरू किया है। लोकसभा चुनाव की हार के बाद पार्टी के अनेक पदाधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया गय। अब वे खुद संगठन को नीचे स्तर तक देखने का काम कर रही हैं और उनके बीच सघन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। (संवाद)