कोई मुख्यमंत्री एक पुलिस थाने का खुद इसलिए दौरा करे कि उसकी पार्टी से जुड़े कुछ गंुडों को गिरफ्तार कर लिया गया है, यह बात बंगाल के भद्रलोक को पसंद नहीं आई। गौरतलब हो कि यह भद्रलोक ममता बनर्जी का उस समय बहुत बड़ा समर्थक था।
उस घटना से यह साबित हो रहा था कि वह सड़कों पर लड़ने की अपनी प्रवृति से बाज नहीं आने वालीं। यह प्रवृति उनमें वाम मोर्चा सरकार के लंबे कार्यकाल में पनपी थी। तब वह वामपंथियों और उसकी सरकार के खिलाफ सड़कों पर बार बार उतरा करती थीं। लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में उनका वह रूप पश्चिम बंगाल के शहरी मध्यवर्ग को अच्छा नहीं लगा।
उसके बाद के उनके अनेक निर्णय भी मध्यवर्ग को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने एक प्रोफेसर द्वार इंटरनेट पर कार्टून डाले जाने पर उसकी गिरफ्तारी करवा दी थी। एक बलात्कार के मामले की गंभीरता से जांच करने पर एक पुलिस अधिकारी का उन्होंने स्थानांतरण करा दिया था। ऐसे अनेक मामलों ने मध्यवर्ग के बीच मायावती की छवि खराब की, लेकिन उसके बाद भी वे उन्हें समर्थन करते रहे। पर लेकिन जिस तरह से कुछ दिन पहले हुए बम ब्लास्ट को मुख्यमंत्री ने डील किया है, उसे मध्यवर्ग कभी माफ नहीं कर सकता।
बर्दमान के एक घर में बम बनाते समय विस्फोट हुआ। उसमें दो लोग मारे भी गए और शक है कि मारे गए दोनों लोग बांग्लादेश के जमात उल मुजाहिदीन से जुड़े हुए थे।
इससे भी खतरनाक बात सामने यह आई कि जिस घर में बम बन रहा था, उसी के एक हिस्से में तृणमूल कांग्रेस का स्थानीय कार्यालय भी था। इसके कारण तृणमूल कांग्रेस यह दावा नहीं कर सकती कि उसे वहां हो रही गतिविधियों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
तृणमूल कांग्रेस पर शक की सूई इसलिए भी गई है कि सरकार ने शुरू में इसे कानून व्यवस्था का मामला करार दिया था और यह दिखाने की कोशिश की थी कि उस बम विस्फोट का आतंकवादी घटनाओं से कोई संबंध नहीं है। वह नेशनल इन्वेस्टीगेटिव एजेंसी को इस मामले की तहकीकात से रोकने की भी कोशिश कर रही थी।
नेशनल इनवेस्टीगेटिव एजेंसी ने अंत में जांच करना शुरू दिया, पर इस बीच ममता सरकार की छवि बहुत खराब हो गई। यह संदेश लोगों में गया है कि प्रदेश की 30 फीसदी मुस्लिम आबादी को खुश रखने के लिए ममता बनर्जी ने उस बम विस्फोट की घटना को दबाना चाहा।
पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने जब कट्टरवादी मुसलमानों के दबाव में तसलीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर जाने के लिए मजबूर किया था, तो इसके लिए भी मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में रखने की वाम दलों की राजनीति थी। पर उसे भी मध्यवर्ग ने पसंद नहीं किया था।
ममता बनर्जी के लिए केन्द्र सरकार पर यह आरोप लगाना सामान्य बात है कि केन्द्र संघीय ढांचे के खिलाफ जा रहा है, यदि उससे कहा जाय कि मुस्लिम आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करो। लेकिन मामला यहां सिर्फ केन्द्र का नहीं है, बल्कि इस विस्फोट के साथ बांग्लादेश का नाम भी जुड़ गया है। कहा जा रहा है कि बम बनाने वाले आतंकवादी बांग्लादेश की हशीना सरकार के खिलाफ काम कर रहे थे। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल सरकार की अनिच्छा और उससे अनुमति न मिलने के बावजूद केन्द्र सरकार की एजेंसी ने इस कांड की जांच शुरू कर दी, क्योंकि यदि भारत में बांग्लादेश सरकार के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां चलने की बात सामने आती है, तो भारत सरकार की भी बांग्लादेश सरकार के प्रति जवाबदेही बनती है।
केन्द्र सरकार के खिलाफ ममता बनर्जी के चिल्लाने का कोई असर नहीं पड़ रहा है। अब तो बांग्लादेश विरोधी आतंकवादियों के और सुरक्षित घर भी सामने आ रहे हैं। इसके कारण प्रदेश सरकार की विश्वसनीयता और भी मारी जा रही है।
इस विस्फोट के पहले बांग्लादेश विरोधी आतंकवादियों के साथ शारदा चिटफंड घोटाले के संबंध का मामला भी सामने आया। कहा गया कि घोटाले के पैसे आतंकवादियों के पास भी पहुचं रहे थे। इस सिलसिले में तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद का नाम भी सामने आया। भारत के खुफिया ब्यूरो की एक रिपोर्ट में भी बांग्लादेश के जमात ए इस्लाम के साथ चिटफंड घोटाले के पैसे का संबंध सामने आने की बात कही गई है। (संवाद)
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ममता बनर्जी मध्यवर्ग का समर्थन खो रही हैं
बर्दमान विस्फोट के राष्ट्रीय मायने हैं
अमूल्य गांगुली - 2014-10-16 18:37
मध्यवर्ग में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की लोकप्रियता उसी समय घटने लगी थी, जब उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के कुछ समय बाद में ही एक पुलिस थाने में जाकर कुछ असामाजिक तत्वों को रिहा करवा दिया था। उन तत्वों को पुलिस ने गुंडागर्दी करते हुए गिरफ्तार किया था।