सत्यार्थी 60 साल पहले विदिशा में पैदा हुए थे। यह भोपाल से 55 किलामीटर दूर है। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई विदिशा से ही की, लेकिन पढ़ाई के बाद नौकरी करने की बजाय, उन्होंने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने का संकल्प उठाया।
उन्हें नोबेल पुरस्कार तो मिल गया है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि उनका गृहप्रदेश बच्चों की तस्करी, उसके शोषण और उसके अपने घरों से गायब होने के लिए कुख्यात रहा है। इस मामले में भारत में उत्तर प्रदेश के बाद उसका दूसरा नंबर आता है।
मध्यप्रदेश के दो पर्यटन केन्द्रों पर बच्चों के शोषण पर किए एक एक सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि मध्यप्रदेश में बच्चों की हालत वाकई बहुत ही खराब है।
पहला पर्यटन केन्द्र है खजुराहों और दूसरा पर्यटन केन्द्र जिसका सर्वेक्षण किया गया, वह है उज्जैन, जो हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थान है। वहां आस्था के कारण लाखों लोग जाते हैं। वहां महाकाल का मंदिर है, जिसे 12 ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है। आम लोगों के अलावा नेता, अभिनेता, वकील, जज और अन्य खास लोग भी जाते रहते हैं। प्रत्येक 12 साल मे वहां कुंभ भी लगता है, जिसमें लाखों क्या करोड़ों लोग आते हैं।
ये दोनों केन्द्र लड़के और लड़कियों के शोषण के केन्द्र भी हैं। सर्वे के अनुसार बच्चों का शोषण मन्दिरों, होटलों और अन्य अनेक जगहों पर होता है। बड़ी संख्या में बच्चों से भीख मंगाई जाती है। यात्री पुण्य पाने के लिए उन्हें दान भी देते हैं। अनेक जगहों पर मां बाप की सहमति से इस तरह का काम कराया जा रहा है। 8 बच्चों के एक समूह से बात करने के बाद यह निष्कर्ष निकला कि वे बच्चे बहुत ही गरीब परिवारों के होते हैं और उन्हें प्रतिदिन 100 से 200 रुपये की आमदनी होती है। उस पैसे का इस्तेमाल बच्चे और उनके मां बाप नशा करने के लिए करते हैं। 3 और 4 साल की उम्र से ही बच्चों को भीख मांगने के काम पर लगा दिया जाता है। सबसे चिंता की बात यह है कि भीख मांगने वाले या होटलों में काम करने वाले सारे बच्चे नशे के आदी हो चुके हैं। वे नशें के लिए मुख्य रूप से ह्वाइटनर और नेल पाॅलिश रिमूवर का इस्तेमाल करते हैं।
हालांकि जिला प्रशासन ने उज्जैन में व्हाइटर की बिक्री पर रोक लगा रखी है, लेकिन फिर भी वे मिल जाते हैं। छोटे छोटे बच्चे घरों में भी होटलों में भी काम करते हैं। काम करने का उनका समय भी तय नहीं होता। कभी कभी वे दिन और रात काम करते रहते हैं। उनमें से कुछ यौन शोषण के भी शिकार होते रहते हैं। स्थानीय लड़कियों के अलावा धंधा चलाने वाले बाहर से भी लड़कियां मंगाते हैं। उज्जैन में पिंजरवाड़ी में वेश्यावृति का अड्डा हुआ करता था। अब अड्डे शहर के अनेक इलाकों में फैल चुके हैं। घरों में इस तरह के धंधे होते हैं। आॅटो चालक ग्राहक लाने का काम करते हैं और उन्हें ग्राहक लाने की दलाली मिलती है। विदेशी पर्यटक भी बच्चों का शोषण करते हैं। उनकी सेक्स फिल्म तक बनाई जाती है। आपको सड़कों पर कामसूत्र जैसी किताबें बेचते बच्चे दिखाई पड़ सकते हैं।
सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि यह सब पुलिस और प्रशासन की जानकारी में हो रहा है। प्रशासन उसे रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर रहा है। चाइल्डलाइन की व्यवस्था पुलिस ने कर रखी है, जहां बच्चों के शोषण से संबंधित शिकायते की जा सकती हैं, लेकिन बच्चों को सेक्स रैकेट से निकालने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है।
खजुराहो में सेक्स रैकेट की स्थिति कुछ ज्यादा ही भयावह है। लगभग सभी प्रकार के होटलों में सेक्स का रैकेट चल रहा है, जिनमें बच्चों का शोषण होता है। इस शोषण के शिकार लड़कों को ’लपका’ कहा जाता है। भारी संख्या में विदेशी इस तरह के शोषण में शामिल हैं। अनेक विदेशी पर्यटक तो उस तरह के बच्चों के घरों में उनके परिवार के साथ ही टिके होते हैं और बच्चों का यौन शोषण के लिए उन्हें वहां से बाहर ले जाते हैं। बच्चे उन्हें अपनी बाइक पर बैठाकर साइट दिखाने के लिए ले जाते हैं। एक बच्चे ने सर्वे करने वाले को बताया कि वे विदेशी हमें सबकुछ देते हैं और हम बदले में उन्हें सेक्स देते हैं। कुछ बच्चे इसे शोषण मानने को तैयार ही नहीं, वे इसे बिजनेस कहते हैं और उनके परिवार के सदस्य भी इससे सहमति व्यक्त करते हैं। इस तरह का बिजनेस कराने के लिए बाहर से भी लोग लाए जाते हैं। छोटे बच्चे अनेक बार विदेशी महिला पर्यटकों से भी यौन संबंध बना लेते हैं।
बंगलूर स्थित इक्वेशन नाम की संस्था ने यह सर्वेक्षण किया था। विकास संवाद नाम की एक अन्य संस्था ने भी इसमें सहयोग किया था। इन दोनों संस्थाओं ने चाइल्ड राइट्स एंड यू नाम की संस्था के संरक्षण में यह सर्वे किया। (संवाद)
भारत
सत्यार्थी के गृहप्रदेश में बचपन खतरे में
पर्यटन स्थलों पर बाल श्रमिक
एल एस हरदेनिया - 2014-10-17 12:43
भोपालः शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्याथी का गृह प्रदेश मध्य प्रदेश ही है। वे बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक हैं और उन्हें पुरस्कार भी इसी आंदोलन के कारण मिला है।