सच कहा जाय, तो हिमालयी सीमा पर चीन के रवैये और उसकी तैयारियों को देखते हुए भारत को 50 साल पहले ही इस दिशा में गंभीर हो जाना चाहिए था। 1962 में चीनी हमले के बाद भारत ने अपने आपको बहुत कमजोर पाय था। उसके बाद तो सरकार की नींद टूटनी चाहिए थी, पर पता नहीं क्यों उसके बाद आई सभी सरकारों ने इस महत्वपूर्ण मसले का नजरअंदाज करने का ही काम किया।

हाल ही में केन्द्र गृह राज्यमंत्री किरेन रिज्जू ने घोषणा की कि भारत हिमालय की अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अरुणाचल प्रदेश से जम्मू और कश्मीर तक सड़क का निर्माण करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि इस सड़क के निर्माण के लिए पर्यावरण क्लियरेंस की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। इसके कारण सड़क बनाने का काम तेज हो जाएगा और सरकार की कोशिश रहेगी कि जितनी जल्दी हो सके इस सड़क का निर्माण हो। उन्होंने यह भी कहा कि सड़क के किनारे बस्तियों को भी बसाया जाएगा।

किरने रिज्जू अरुणाचल प्रदेश से ही सांसद हैं। अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ 2 हजार किलोमीटर तक हिमालयी सीमा है। यह तवांग जिले के मागो थिंगबू से शरू होकर चांगलांग जिले के विजयनगर तक जाती है। यह इलाका अभी निर्जन है। सड़क बनने के बाद इसे बसाया जाएगा।

किरेन रिज्जू के उस बयान के बाद चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उसने कहा कि भारत उस तरह की सड़क का निर्माण नहीं करे, क्योंकि हिमालय पर भारत और चीन के बीच की पूरी सीमा ही विवादित है। उसने कहा कि इस तरह के निर्माण का चीन विरोध करेगा। लेकिन जब चीन से पूछा जाता है कि यदि भारत और चीन के बीच की सीमा विवादास्पद है, तो उसी सीमा की अपनी ओर चीन कैसे निर्माण कार्य कर रहा है, तो फिर उसके बाद उसे बोलने के लिए कुछ रह नहीं जाता।

गौरतलब है कि चीन ने सीमा की अपनी ओर बहुत सारे निर्माण कार्य कर रखे हैं। वह अनेक निर्माण कार्य अभी भी कर रखा है। सीमा तक उसने रेल लाइनें तक बिछा रखी हैं जिसे वह विवादित मानता है, उसे स्थल पर कम से कम 6 हवाई अड्डों का निर्माण भी कर लिया है। वह सीमा पर अपनी स्थिति लगातार मजबूत कर रहा है, जबकि उस सीमा के उस स्थल को वह विवादित मानता है और कहता है कि मैकमोहन लाइन को उसने सहमति प्रदान नहीं की है।

चीन के मुकाबले भारत की तैयारियां बहुत ही कम हैं। सीमा पर उसकी शक्ति तैनाती बहुत ही कम है, जबकि चीन अपनी स्थिति लगातार मजबूत करता जा रहा है और इसके कारण दोनों की रक्षा तैयारियों का गैप बहुत ही बढ़ता जा रहा है।

भारत को खतरे का अहसास 2009 में हुआ और उसने अपनी ओर से कुछ तैयारियां की, लेकिन वे तैयारियां भी नाकाफी है। भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को और भी गति देने की जरूरत है। (संवाद)