यानी कांग्रेस दोनों राज्यों मंे तीसरे स्थान पर धकेल दी गई है। कांग्रेस के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि ऐसी स्थिति में जाकर उसके फिर से उभरने की संभावना अत्यंत ही धूमिल हो गई है। जब किसी सत्तारूढ़ पार्टी से लोगों का मोह भंग होता है, तो उसका फायदा राज्य की दूसरे नंबर की पार्टी को होता है और बिना कोई खास परिश्रम किए वह सत्ता में आ जाती है। अब कांग्रेस इन दोनों राज्यों मंे सत्तारूढ़ पार्टियों की विफलता का लाभ उठाकर दुबारा सत्ता में आने की स्थिति में ही नहीं दिखाई देती।

हरियाणा और महाराष्ट्र के पहले दिल्ली में भी कांग्रेस तीसरे स्थान पर धकेल दी गई थी और इसके कारण आज स्थिति यह है कि विधानसभा चुनाव होने की नौबत में दिल्ली में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच में होगी। सच तो यह है कि आज कांग्रेस देश के अनेक महत्वपूर्ण राज्यों में दूसरे नंबर की पार्टी भी नहीं रही। आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में वह चैथे नंबर की पार्टी बन गई है। दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र में वह तीसरे नंबर पर है। तीसरे सबसे बड़े राज्य बिहार में वह पहले चार स्थानों वाली पार्टी में भी नहीं गिनी जाती। चैथी सबसे बड़ी आबादी वाले पश्चिम बंगाल में भी वह तीसरे नंबर की पार्टी बनी हुई है और अब भारतीय जनता पार्टी के वहां उभार के बाद वह वहां चैथे नंबर पर खिसक रही है। देश के पांचवे बड़े राज्य तमिलनाडु में वह दशकों पहले तीसरे नंबर पर धकिया दी गई थी और वहां उसने आज तक वापसी नहीं की है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी वह पहली दो पार्टियों में अब शुमार नहीं हो रही है। झारखंड में भी उसका यही हाल है। इन राज्यों में लोकसभा की 300 सीटें हैं और यहां कांग्रेस पहली दो पार्टियों में शामिल नहीं है। जाहिर है, इन राज्यों में कांग्रेस अब विधानसभा चुनावों में अपने बूते मुख्य मुकाबले में भी नहीं रह पाएगी। शेष राज्यों में भाजपा के विस्तार के बाद उसकी स्थिति निश्चय रूप से खराब होने वाली है।

तो क्या यह माना जाय कि कांग्रेस समाप्ति की ओर बढ़ रही है? पिछले कई महीनों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का नारा दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि महात्मा गांधी की अंतिम इच्छा यही थी कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाय। गौरतलब है कि 29 जनवरी, 1950 को गांधीजी ने कांग्रेस को भंग करने की इच्छा जाहिर की थी और अगले ही दिन 30 जनवरी को उनकी हत्या हो गई। यानी यदि नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि भारत को कांग्रेस मुक्त करने की इच्छा गांधीजी की अंतिम इच्छा थी, तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है।

सवाल उठता है कि क्या वास्तव में देश कांग्रेस मुक्त हो जाएगा? सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस आज जिस मुकाम पर आ गई है, उसे देखते हुए तो ऐसा ही लगता है। 2009 के बाद कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हार रही है। कभी कभी किसी छोटे राज्य में उसकी जीत हो जाती है। एक बड़े राज्य कर्नाटक में उसे उसके बाद जीत की खुशी मिली थी, वरना हारना ही उसकी नियति रही है और नरेन्द्र मोदी के देश के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरने के बाद तो कांग्रेस की हार और भी दयनीय होती जा रही है।

हार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि कांग्रेस के नेता हार से भी कोई सबक नहीं ले रहे हैं। हार के कारणों की सही समीक्षा तक नहीं हो पा रही है। सोनिया गांधी मूल रूप से भारतीय नही हैं और भारत से उनका संबंध इन्दिरा गांधी परिवार की एक सदस्य के रूप में ही रहा है। वे न तो भारत के समाज की समझ रखती हैं और न ही राजनीति की, लेकिन कांग्रेस के बड़े बड़े फैसले वही लेती हैं। वही हाल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का है। जिस तरह की राजनीति वे कर रहे हैं, उससे साफ लगता है कि कांग्रेस को जीत दिलाने वाला कोई विजन उनके पास नहीं है। जब राजनैतिक चुनौतियों उनके सामने होती हैं, तो वे उन चुनौतियों का सामना नहीं करते। अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के समय हम इसे देख चुके हैं।

एक समय था कि कांग्रेस की हार का ठीकरा संगठन की कमजोरी पर डालकर राहुल और सोनिया को दोषमुक्त घोषित कर दिया जाता था, लेकिन संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी भी तो राहुल और सोनिया की ही है और इसके लिए उन दोनों को पर्याप्त समय भी मिला। इसलिए यदि संगठन की कमजोरी से कांग्रेस हारती है, तो इसके लिए भी अंततः मां और बेटे ही जिम्मेदार हैं। कांग्रेस में इस तरह की बात जो उठाते हैं, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर दी जाती है। लेकिन इस तरह की कार्रवाई से कांग्रेस को बचाया नहीं जा सकता और न ही भारतीय जनता पार्टी की नाकामी का इंतजार करके सत्ता पाने के सपने संजोए जा सकते हैं। इसका कारण यह है कि भाजपा सरकारों की नाकामी का फायदा उठाने के लिए भी कांग्रेस को देश के अधिकांश हिस्सों में दूसरे स्थान की पार्टी के रूप में मौजूद रहना पड़ेगा।

सच तो यह है कि कांग्रेस को अब सोनिया परिवार की गिरफ्त से बाहर होना होगा। यह सच है कि कांग्रेस नेता विहीन हो गई है और मां बेटे के अलावा अगर कांग्रेसियों को कोई और दिखाई देता है, तो वह हैं प्रियंका गांधी, लेकिन प्रियंका के कांग्रेस में सक्रिय होने के बाद कांग्रेस के पतन की प्रक्रिया और भी तेज हो जाएगी, क्योंकि उनके पति पर सत्ता का फायदा उठाकर अरबों रुपये अर्जित करने के आरोप लगे हैं और इनमें सच्चाई भी है। अगर सोनिया कांग्रेस को बचाना चाहती हैं, तो उन्हें कांग्रेस को समर्थ हाथों में सौंपकर राजनीति को तोब्बा कर देनी चाहिए, अन्यथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत का सपना सच हो जाएगा। (संवाद)