इसलिए जब करीब 100 कांग्रेसी कार्यकर्ता जब पार्टी मुख्यालय पर इकट्ठा होकर कांग्रेस को बचाने के लिए प्रियंका गांधी को लाने की मांग कर रहे थे, तो वह अटपटा लग रहा था। इस तरह की मांग बेमानी थी। इससे 129 साल पुरानी कांग्रेस को बचाया नहीं जा सकता। कांग्रेस के शीर्ष पर सोनिया परिवार के किसी भी सदस्य की उपस्थिति कांग्रेस के गले का फंदा साबित होगी।
इसका कारण सामंतवादी प्रवृति का पतन है। आर्थिक नीतियों ने देश की मूल्यव्यवस्था को बदल दिया है। इसने सिर्फ शहरी मध्यवर्ग को प्रभावित नहीं किया है, बल्कि देश की पूरी आबादी को प्रभावित किया है। अब सामंतवादी लगाव का वह स्थान नहीं रहा, जो पहले कभी हुआ करता था। अब सामंतवादी लगाव की उम्मीद लोगों में दुराव पैदा करता है। परिवार के प्रति कांग्रेसियों की चापलूसी पार्टी का बंटाढार कर रही है।
माई-बाप सरकार की अवधारणा अब अपना दम तोड़ चुकी है। लेकिन नेहरू गांधी परिवार ने इस अवधारणा को जिंदा रखने की कोशिश की और अपने को गरीबों का मसीहा समझने का दंभ करते रहे। इसके लिए वे लोकप्रियतावादी नीतियों को अपनाते रहे और वह भी अर्थव्यवस्था के विकास की कीमत पर।
सोनिया गांधी कि किचेन कैबिनेट यानी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इसी अवधारणा को बढ़ाने का काम किया। परिषद की एक सदस्य अरुणा राय यह कहती हुई दिखाई पड़ी कि मनमोहन सिंह सरकार सामाजिक कल्याण की जगह विकास पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दे रही है। उन झोलावालों को विकास से चिढ़ है, क्योंकि विकास बाजारवादी अर्थव्यवस्था के तहत ही संभव है और उसमें सार्वजनिक क्षेत्र की जगह निजी क्षेत्र को महत्व दिया जाता है।
वे दिन समाप्त हो गए, जब देश की अर्थव्यवस्था की नियंत्रणकारी ऊंचाइयों को सार्वजनिक क्षेत्र में होना था। समाज के समाजवादी पैटर्न से निर्माण के दिन भी अब लद गए हैं। जब आर्थिक सुधार हो रहे थे, तो कम्युनिस्टों का कहना था कि इससे अमीर और भी अमीर होंगे व गरीब और भी गरीब होंगे। लेकिन उनका यह दावा गलत हो गया, क्योंकि आज उनका प्रभाव ही लगातार कम होता जा रहा है।
आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के खिलाफ वे आवाज उठा रहे हैं, जो लाइसेंस परमिट राज की वापसी चाहते हैं। इस काल में देश की आर्थिक विकास दर 2 से तीन फीसदी थी। मनमोहन सिंह सरकार के अंतिम वर्षाें विकास की गति यदि कम थी, तो उसका कारण यही है कि समाजवादी नीतियों को फिर से लाने की कोशिश की जा रही थी और आर्थिक विकास कार्यक्रमों को किनारे किया जा रहा था।
कांग्रेस के अंदर से सुधार कार्यक्रमों का विरोध हो रहा था। इसका पता पी चिदंबरम के उस बयान से लगता है, जो उन्होंने कांग्रेस की हार के बाद दिया था। उन्होंन कहा था कि हमने विकास के लिए अपने जो कदम आगे बढ़ाए थे, उसे पीछे नहीं खींचना चाहिए था, क्योंकि भारत के लोग विकास चाहते हैं। वे विकास चाहते हैं, क्योंकि विकास से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, जिससे गरीबी दूर होती है।
आर्थिक सुधार कार्यक्रमों ने सामंतवादी मान्यताओं को समाप्त कर दिया है और यही कारण है कि अब लोग कांग्रेस के वंशवाद को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके कांग्रेस के नेतृत्व से हटने के बाद ही कांग्रेस के बचने की उम्मीद की जा सकती है। (संवाद)
भारत
कांग्रेस को कैसे बचाएं?
सोनिया परिवार का नियंत्रण हटना जरूरी
अमूल्य गांगुली - 2014-10-29 11:08
अब सबकुछ आइने की तरह साफ है। संदेश स्पष्ट है। और वह यह है कि यदि कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाना है, तो उसे नेहरू- गांधी परिवार से मुक्ति पानी ही होगी। इस परिवार का कोई सदस्य इसे बचा नहीं पाएगा। सच तो यह है कि इस परिवार के कारण ही कांग्रेस समाप्ति की ओर बढ़ रही है।