अब उसकी मौत पर बांग्लादेश में उसके समर्थक गंदी राजनीति कर रहे हैं। उसे मसीहा बताया जा रहा है, जबकि वह लाखों लोगों की हत्या का दोषी है। उसे शहीद बताया जा रहा है, जबकि वह स्वाभाविक मौत मरा है। वह बांग्लादेश में जमात म इस्लामी का उस समय प्रमुख हुआ करता था। जब बांग्लादेश के लोग पाकिस्तान से अपनी मुक्ति की लड़ाई लड़ रहे थे, तब गुलाम आजम पाकिस्तान की हिंसक पैरवी कर रहा था। बंगाल मे मीरजाफर को गद्दार कहा जाता है, जिसने शिराजुद्दौला के खिलाफ अंग्रेजों का प्लासी युद्ध के दौरान साथ दिया था।
1971 में पूर्वी बंगाल में एक और मीरजाफर गुलाम आजम के रूप में दिखाई दे रहा था। वह अधिकांश लोगों द्वारा बंगाल में दूसरा मीरजाफर ही माना जाता है, लेकिन जमात के समर्थक उसे महान बनाने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं, जबकि उसके नेतृत्व में बांग्लादेश में नरसंहार हुए थे। पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर उसके समर्थकों ने हजारों गांवों को जला डाला था। लाखों की हत्या कर डाली थी। उनमें हिंदू भी थे और मुसलमान भी। उसके कारण करोड़ों लोग अपने घर से बेदखल हो गए थे। एक करोड़ लोग तो बेदखल होकर भारत ही आ गए थे। वह वहां बंगाली प्रभाव को समाप्त करने पर उतारू था और गैर इस्लामी प्रभाव का सफाया करने के नाम पर यह सब कर रहा था।
बांग्लादेश के मुक्त होने के पहले ही वह पाकिस्तान भाग गया था। उसके बाद वह बांग्लादेश केा अस्थिर करने के लिए दुनिया भर के मुस्लिम देशों की यात्रा करता रहा। 1978 में वह पाकिस्तानी पासपोर्ट पर बांग्लादेश वापस लौटा। उस समय बांग्लादेश में जिया की सैनिक सरकार थी। सैनिक सरकार के दौरान बांग्लादेश के सेकुलर स्वरूप को बदला जा रहा था। उसी दौरान वह ढाका की केन्द्रिय मस्जिद में नमाज के दौरान उपस्थित हुआ, तो उस समय नमाजियों ने उस पर जूते फेंके।
लेकिन उस दौर में बांग्लादेश के हो रहे इस्लामीकरण ने उसे वहां बस जाने में सहायता की। 1991 में वह एक बार फिर जमात का प्रमुुुख बन बैठा। जहानारा इमाम द्वारा किए गए संघर्ष का ही यह परिणाम था कि उसे युद्ध अपराध के लिए मौत की सजा मिली। उसे यह सजा 2013 में मिली। वह एक सजायाफ्ता अपराधी के रूप में मर गया।
उस पर मुकदमे के दौरान बांग्लादेश में दो तरह की प्रतिक्रियाएं हो रही थीं। कुछ लोग उसे मीरजाफर बता रहे थे तो कुछ कुछ लोग उसे विद्वान कह रहे थे। कुछ लोग उसके नाम पर लानत भेज रहे थे, तो कुछ लोग अपने बच्चों का नाम उसके ऊपर रख रहे थे।
उसकी मौत के बाद भारी हलचल मची हुई है। उसके समर्थक उसे मसीहा और शहीद बताने पर लगे हुए हैं। उसके स्मारक तैयार किए जा रहे हैं। एक हत्यारे पर की जा रही यह राजनीति बेहद ही गंदी है। (संवाद)
बांग्लादेश में नापाक राजनीति
युद्ध अपराधी की मौत को क्यों भुनाया जाए?
गर्गा चटर्जी - 2014-11-03 10:43
गुलाम आजम की मौत हो गई। उसे सजा मिली हुई थी मौत की, हालांकि उसकी यह मौत स्वाभाविक रूप से हुई। वह 91 साल का था। 1970.71 में बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई के दौरान उसने बांग्लादेश के लोगों के साथ जो अपराध किया था, उसे युद्ध अपराध माना गया। उसे उसी की सजा मिली थी।