विधानसभा के आगामी चुनाव 2016 में होने हैं और उसके लिए अभी से राजनैतिक पार्टियां अपने को तैयार कर रही है। पूर्व मंत्री जी के वासन के नेतृत्व में गठित होने वाली एक राजनैतिक पार्टी इसका एक उदाहरण है। 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 5 सीटें मिली थीं। वहां विधानसभा की 234 सीटें हैं। लोकसभा की 39 सीटों में से एक भी सीट पर पिछले चुनाव में कांग्रेस जीत नहीं पाई थी। 37 पर तो अकेले आल इंडिया अन्ना डीएमके का कब्जा हो गया था। कांग्रेस का मत प्रतिशत घटकर 4 दशमलव 7 फीसदी रह गया था।
वासन के पिता जीके मूपनार थे। 1996 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर तमिल मनीला कांग्रेस बनाई थी और डीएमके के साथ चुनावी गठबंधन कर सफलता पाई थी। 1996 और 1997 में केन्द्र की दो सरकारो के गठन में उनकी भूमिका किंग मेकर की थी। उस समय वे नरसिंह राव द्वारा आल इंडिया अन्ना डीएमके के साथ तालमेल के खिलाफ थे और उसके कारण ही उन्होंने पार्टी विभाजित कर एक नई पार्टी बनाई थी। लेकिन डीएमके ने 1999 के चुनाव में भाजपा का दामन थाम लिया और मूपनार की पार्टी का डीएमके के साथ गठबंधन समाप्त हो गया। पर 2001 के विधानसभा चुनाव में मूपनार ने डीएमके के खिलाफ एआईडीएमके के साथ हाथ मिला लिया और तर्क दिया कि सांप्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ा खतरा है। उसी साल अगस्त महीने में मूपनार की मौत भी हो गई। तब उनके बेटे वासन ने तमिल मनीला कांग्रेस को कांग्रेस में विलय कर दिया।
इसमें कोई शक नहीं है कि कांग्रेस 1967 के बाद प्रदेश में अपने पैर नहीं दुबारा जमाने में विफल रही है। उसके बाद वह कभी डीएमके के साथ तो कभी एआईडीएमके के साथ चुनावी समझौता कर चुनाव लड़ती रही है। कमजोर होने के बावजूद कांग्रेस में गुटबाजी चलती रहती थी। पहले मूपनार बनाम राममूर्ति के बीच गुटबाजी का खेल चलता था, तो अब वासन बनाम इलांगवन के बीच गुटबाजी का खेल चल रहा है। वासन को कांग्रेस ने तमिलनाडु कांग्रेस का अध्यक्ष बना रखा था। यूपीए की सरकार के दौनो कार्यकाल में वे मंत्री भी थे। पिछले दिनों जैसे ही इलांगवान को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, उन पर पहाड़ टूट पड़ा। वासन के अलावा कुछ अन्य बड़े कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
पिछले 10 सालों में वासन अनेक पदों पर रहे। इसके बावजूद अपने पिता जीके मूपनार के कद के नेता नहीं हुए हैं। इसलिए अनेक लोगों को शक है कि उनके द्वारा गठित की गई पार्टी सफल हो भी पाएगी। मूपनार के पास अपना एक जनाधार था, जो वासन के पास नहीं है। मूपनार दूसरी पार्टियों के नेताओं के साथ भी घुलमिल जाते थे। लेकिन यह गुण वासन में नहीं है। अब वासन कामराज की तस्वीरो को कांग्रेस सदस्यता कार्ड से हटाए जाने को मुद्दा बना रहे हैं। पर सच तो यह है कि यदि आज कामराज भी जिंदा होते, तो कांग्रेस को जिंदा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा पी चिदंबरम और जयंती नटराजन जैसे नेता जो पिछले विभाजन के समय मूपनार के साथ थे, आज वासन के साथ नहीं हैं।
2016 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में तो सभी लगे हुए हैं, लेकिन आज जो हकीकत है, उसके अनुसान एआईडीएमके मजबूत स्थिति में दिखाई पड़ती है। उसका कारण यह है कि उसके विरोधी बिखरे हुए हैं और सजा मिलने के बावजूद जयललिता के प्रति उनके समर्थकों में सहानुभूति का भाव बना हुआ है। डीएमके करुणानिधि के पारिवारिक कलह का शिकार बना हुआ है। करुणानिधि परिवार भी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहा है।
इस बीच भारतीय जनता पार्टी भी अपना विस्तार तमिलनाडु में करने की कोशिश कर रही है, पर उसकी समस्या यह है कि उसके पास यहां कोई करिश्माई नेता नहीं है। इसलिए वह वासन पर डोरे डालने की कोशिश कर सकती है।
वासन कांग्रेस से अलग होकर क्या कर पाएंगे और क्या नहीं कर पाएंगे, इसका पता तो बाद में लगेगा, लेकिन इतना तय है कि उनके पार्टी से बाहर जाने के कारण कांग्रेस की हालत दयनीय हो गई है। उसे भारी नुकसान हो चुका है। (संवाद)
भारत
वासन के इस्तीफे से कांग्रेस को लगा झटका
मूपनार के बेटे पर भाजपा डाल सकती है डोरे
कल्याणी शंकर - 2014-11-07 12:46
तमिलनाडु में कांग्रेस का विभाजन 129 साल पुरानी इस पार्टी के लिए संकट पैदा करने वाला है। हालांकि कांग्रेस के आलाकमान ने उस विभाजन को गुटीय संघर्ष का नतीजा बताया है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसका असर प्रदेश की ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा।