इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर इमरान खान। उनकी पार्टी यह आंदोलन कर रही थी। उनकी पार्टी पाकिस्तान ए तहरीके इंसाफ को ताहिर उल कादरी के नेतृत्व वाले पाकिस्तान आवामी तहरीक का समर्थन भी मिल रहा था। लेकिन आंदोलन अपने घोषित उद्देश्य से भटक गया।

कादिर और इमरान के नेतृत्व में आंदोलनकारी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि जिन चुनावों के बाद वे प्रधानमंत्री बने उनमें भारी धांधली हुई थी और नवाज की पार्टी जनसमर्थन से नहीं, बल्कि उन धांधलियों के कारण जीती थी। वे नवाज शरीफ सरकार का फौरन इस्तीफा मांग रहे थे और इस्तीफे से कम उन्हें कुछ भ मंजूर नहीं था।

इस्तीफा मांगना अपने आप में शायद गलत नहीं था, लेकिन उस मांग के साथ जांच की जो मांग हो रही थी, वह इरादों पर संशय पैदा कर रही थी। यदि धांधली हुई है, तो उसकी जांच कराने की मांग भी अपने आपमें गलत नहीं थी, लेकिन सवाल उठता है कि जांच किससे हो? यहीं आकर पता चला कि इमरान और कादरी के इरादे नेक नहीं थे।

वे मांग कर रहे थे कि उन चुनावी धांधलियों की जांच एक ऐसे न्यायिक आयोग से हो, जिसमें आईएसआई भी शामिल रहे। इस मांग के पीछे निहित स्वार्थ को पाकिस्तान के वित्तमंत्री इशाक धर ने पहचाना और कहा कि न्यायिक आयोग में मिलीटरी के खुफिया विभाग के लोगों को शामिल करने के पीछे क्या मंशा है? क्या न्यायिक आयोग में न्यायपालिका से जुड़े लोगों को ही शामिल करना काफी नहीं होगा?

पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में इमरान खान को तत्कालीन सैनिक हुक्मरान जनरल जिया का संरक्षण मिला करता था। सेना के प्रति उनका लगाव यह संदेह पैदा करता है कि क्या वास्तव में उन्हें लोकतंत्र की चिंता है या वे सेना को ज्यादा ताकतवर बनाने की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं?

इमरान खान के इरादों को जगजाहिर करते हुए अवामी नेशनल पार्टी के महासचिव इफिृतखार हुसैन ने कहा कि जो लोग प्रधानमंत्री के इस्तीफ के लिए धरना दे रहे थे, वास्तव में उनकी मंशा संविधान के 13वें संशोधन को समाप्त करवान की थी। पकिस्तान की संसद ने इस संशोधन को 1997 में पारित किया था। उस समय नवाज शरीफ ही देश के प्रधानमंत्री थे। उस संशोधन के द्वारा राष्ट्रपति के मंत्रिपरिषद को भंग करने के स्वैच्छिक अधिकार को समाप्त कर दिया गया था। उस अधिकार के तहत राष्ट्रपति को जब लगता कि सरकार संविधान के अनुसार काम नहीं कर रही है, उस समय उसे वे भंग कर सकते थे। लेकिन उस संशोधन के बाद राष्ट्रपति मनमाने तरीके से सरकार भंग नहीं कर सकते। और इमरान व कादरी यही चाह रहे थे कि राष्ट्रपति को वह अधिकार वापस हासिल हो जाय।

लंदन निवासी पाकिस्तानी तारिक अली ने भी अपने एक लेख में इमरान खान की खिंचाई की है। उनका कहना है कि पाकिस्तान में चुनावों मंे धांधली होती रही है। इस बार भी हुई होगी, लेकिन सवाल उठता है कि किस हद तक यह धांधली हुई होगी। तारिक कहते हैं कि यदि इमरान को धांधली की शिकायत थी, तो उन्होंने चुनावी नतीजे को स्वीकार करके पख्तुनवा में अपनी पार्टी की प्रान्तीय सरकार क्यों बनवा डाली? चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद उन्होंने धांधली के खिलाफ मुह क्यों नहीं खोला, उलटे वे प्रधानमंत्री नवाजशरीफ के साथ खड़े होकर अपना फोटो खिंचवा रहे थे। तारिक इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि उस चुनाव में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का सफाया हो गया था, लेकिन पीपीपी के नेताओं ने धांधली की शिकायत नहीं की थी।(संवाद)