मोदी की भूटान, नेपाल, अमेरिका, अस्ट्रेलिया और फिजी की यात्रा के दौरान भारी संख्या में उन्होंने वहां रह रहे प्रवासी भारतीयों को अपनी सभाओं में आकर्षित किया। ऐसा करके उन्होंने यह साबित कर दिया है कि वे सिर्फ भारत में ही लोगों को अपनी सभाओं में आकर्षित नहीं कर सकते, बल्कि वे विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों में भी बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं। आने वाले समय में और भी रैली आयोजित की जानी है।
इन रैलियों में बहुत पैसे खर्च किए गए और आयोजकों ने बहुत पैसे उसके लिए एकत्र भी किए। अमेरिका के मैडिसन चैक की रैली तो देखने लायक थी। लंदन मे उससे भी भव्य रैली आयोजित करने की योजना बनाई जा रही है। वहां एक लाख लोगों को सभा में लाने का लक्ष्य रखा गया है।
अमेरिका में मोदी ने भारतीयों को अपनी ओर क्यों खींचने की कोशिश की, इसे समझा जा सकता है। वहां प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी बढ़ती जा रही है। राजनैतिक पदों पर भी भारतीय अब चुने जा रहे हैं। वे सिनेटर और गवर्नर तक चुने जा रहे हैं।
ऐतिहासिक रूप से देखा जाय, तो भारतीय जनता पार्टी भारतीय प्रवासी को अपने साथ जोड़ने में कांग्रेस से ज्यादा सक्रिय रही है। भारतीय जनता पार्टी संघ परिवार का सदस्य है और परिवार के अन्य अनेक संगठन भी हैं, जिन्होंने विदेशों मे अपनी शाखाएं खोल रखी हैं। वे संगठन वहां मंदिर बनवाते हैं, योग का प्रचार करते और करवाते हैं व सांस्कृतिक गतिविधिया भी चलाते रहते हैं। इसके कारण प्रवासी भारतीयों को भाजपा के साथ जुड़ाव बन गया है, जबकि कांग्रेस इस तरह की गतिविधियां नहीं चलातीं, हालांकि विदेशों मंे अपने प्रभाव के लिए उसने भी प्रवासी भारतीयों का एक संगठन बना रखा है। उसका नाम है इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस। लेकिन वह भाजपा के साथी संगठनों जैसा प्रभावी नहीं है।
भारत की खुलेपन की नीतियों के बाद विदेशों में रह रहे भारतीय प्रवासी आपस में संगठित होने लगे। उस समय प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उसमें बड़ी संभावनाएं देखीं। लेकिन उस मोर्चे पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आने के बाद प्रवासी भारतीयों को लेकर भारत सरकार ज्यादा सक्रिय होने लगी। जब भारत द्वारा पोखरन में परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद अमेरिका ने इस पर अनेक किस्म के प्रतिबंध लगा दिए थे, तो अमेरिका स्थित प्रवासी भारतीयों ने उन प्रतिबंधों को हटवाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। भारत के साथ अमेरिका के परमाणु करार को संपन्न कराने में भी प्रवासी भारतीयों का दबाव भारत के काम आया था।
प्रवासी भारतीयों को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी इतने उत्साहित थे कि उन्होंने अमेरिका में उनके लिए एक अलग से राजदूत तक नियुक्त कर डाला था, लेकिन अमेरिका ने एक देश के दो राजदूतों को एक साथ रखने के भारत के निर्णय को मान्यता नहीं दी और भारत सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था।
अब भारतीय प्रवासियों का संगठन अमेरिका वे अन्य अनेक देशों में बहुत ताकतवर हो गया है। यही कारण है कि मोदी उनका इस्तेमाल अपनी और भारत की छवि विदेशों में चमकाने में कर रहे हैं। नरेन्द्र मेादी ने चीन और यहूदियो से बहुत कुछ सीखा होगा, क्योंकि वे दोनों भी विदेशों में रह रहे अपने लोगों का इस्तेमाल अपनी अंतरराष्ट्रीय ताकत बढ़ाने में किया करते हैं।
मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में ही प्रवासी भारतीयों के साथ अपने आपको जोड़ना शुरू कर दिया था। गोधरा बाद के दंगों ने मोदी की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खराब कर दी थी, लेकिन प्रवासी भारतीयों की सहायता से वे अपनी छवि एक विकास पुरूष के रूप में बनाने में सफल हुए थे। गुजरात में अनिवासी गुजरातियों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के लिए वे सदा तत्पर रहा करते थे।
मोदी अपने गुजराती होने का भी लाभ उठा रहे हैं, क्योंकि गुजराती भारी संख्या में विदेशों में बसे हैं और उनके पास पास भी बहुत ज्यादा हैं। सच कहा जाय, तो पिछले चुनाव में मोदी की जीत का एक कारण उन्हें विदेशों में रहने वाले गुजरातियों से मिली सहायता भी है। वे गुजराती भारतीय जनता पार्टी को भारी पैमाने पर चंदा दे रहे थे और उन्होंने भारत में आकर भी मोदी के लिए काम किया था। (संवाद)
भारत
मोदी के एक बड़े राजनैतिक आधार हैं प्रवासी भारतीय
भाजपा को उससे काफी फायदा होना है
कल्याणी शंकर - 2014-11-21 10:57
अपनी विदेश यात्राओं के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रवासी भारतीयों पर क्यों ज्यादा ध्यान दे रहे हैं? उनके राजनैतिक विरोधी कह रहे हैं कि इसके द्वारा वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ब्रांड मोदी तैयार कर रहे हैं, पर खुद मोदी का कह रहे हैं उनके द्वारा वे भारत की छवि विदेशों में अच्छी कर रहे हैं। करीब 10 करोड़ भारतीय मूल के लोग विदेशों में रह रहे हैं। जाहिर है मोदी को लगता है कि भारत को उनकी ताकत का फायदा उठाना चाहिए और वे खुद भी उनसे फायदा उठाना चाहते हैं।