भारत एक समय आध्यात्मिकता का केन्द्र माना जाता था। पर आज के संत कुछ अलग किस्म के हैं। उनके पास बहुत ताकत होती है। समाज के दबे कुचले लोगों की श्रद्धा उन्हें हासिल हो जाती है। वे उन्हें अपने कारनामों से चमत्कृत करते रहते हैं और उनके मोहपाश मे बडी संख्या में लोग आ जाते हैं। उनके अनुयाई उन्हें अपना भगवान समझने लगते हैं। अनुयाइयों के बल पर और सत्ता के साथ गठबंधन से उनके पास संपत्ति का अंबार लग जाता है। दक्षिण अफ्रीका के नोबल पुरस्कार विजेता नेता डेस्मंड टीटू का एक कथन यहां प्रासंगिक है। उन्होने एक बार कहा था कि वे मिशनरी अपने साथ बाइबिल लाए थे और हमारे पास जमीन थी। उन्होने हमें कहा कि अब हम सब मिलकर प्रार्थना करें। हमने प्रार्थना करने के लिए आंखें बंद की। आंखें खुलने पर हमने देखा कि हमारे पास उनकी बाइबिल आ गई थी और उनके पास हमारी जमीन चली गई थी।
यह भी सच है कि अनेक बाबा और संत आपराधिक गतिविधियो मे भी शामिल रहते हैं। लेकिन रामपाल के मामले में तो 10 दिन भी उनके आध्यात्मिक कारनामों का खुलासा करने के लिए कम पड़ गया। उन पर इस समय 21 मुकदमे चल रहे हैं। उनमें में शस्त्र कानून से लेकर हत्या के प्रयास और देश के खिलाफ युद्ध का मामला तक चल रहा है। उनके 12 एकड़ के बरबाला स्थित आश्रम में पंच सितारा होटल की सुविधाएं है। जब पुलिस उन्हें गिर्फतार करने गई, तो उनके हथियारबंद गुंडों ने पुलिस पर ही हमला बोल दिया। संघर्ष के बीच में ही 5 महिलाओं और एक छोटे बच्चे की मौत हो गई। अंत मे पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत मे पेश कर दिया।
रामपाल के अलावा अन्य गुरू भी हैं। सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत सिंह राम रहीम इंसा भी उन लोगों में एक हैं। उनके ऊपर भी अनेक प्रकार के अपराधों में शामिल होने के आरोप लगे हैं। उनके ऊपर हत्या, बलात्कार और ईशनिंदा तक के आरोप लगे हुए हैं। एक अन्य बाबा हैं आशाराम। वे अभी जेल में हैं। उनके ऊपर तो अपनी ही नाबालिग शिष्या के साथ बलात्कार करने कार आरोप लगा हुआ है।
उनके अलावा भी अनेक ऐसे लोग हैं, जो भारत के योग और आयुर्वेद का इस्तेमाल करके करोड़ों की संपत्ति इकट्ठा कर रहे हैं। इसके द्वारा वे अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को भी पूरा करते हैं। ऐसे लोगों में से एक हैं बाबा रामदेव, जो अपने को योग गुरू कहते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रचार किया और इस तरह वे भाजपा नेताओं के करीब आ गए हैं। अपने चुनाव प्रचार में उन्होंने देश के अनेक नेताओं के बारे में आपत्तिजनक बयान दे डाले। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को खलनायक घोषित कर दिया। राहुल गांधी की तुलना रावण से कर दी और सोनिया गांधी को तो सूर्पनखा और पुतना तक कह डाला।
इन बाबाओं के गैरकानूनी कारनामों की चर्चा के बीच भी नेता उनकी तरफदारी करते दिखाई पड़ते हैं। उनकी सहायता से अपनी राजनीति को अंजाम देते हैं। कांग्रेस और अकाली दल भी इन बाबाओ का इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिए करते रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा इस्तेमाल इनका भारतीय जनता पार्टी ही करती है। डेरा सच्चा सौदा ने पिछले हरियाणा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था और कैलाश विजयवर्गीय ने तो जीत के बाद उनके आश्रम में जाकर उनका धन्यवाद ज्ञापन तक किया था। चुनाव अभियान के दौरान यह खबर आई थी कि रामपाल भी भाजपा का समर्थन कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि रामपाल अदालत की अवमानना में उतनी दूर तक चले गए और हरियाणा सरकार उनके प्रति शुरू शुरू में लचीला रुख अपनाती रही। (संवाद)
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भाजपा के आध्यात्मिक नेता
रामपाल के रहे हैं भगवा संबंध
बी के चम - 2014-11-25 11:02
हरियाणा प्रायः बड़ी बड़ी खबरें देता है। उनमें से सबसे ताजा रामपाल से जुड़ी खबर है। इसने कुछ प्रमुख मसलों को सामने लाकर खड़ा कर दिया है। वे मसले बाबा, संत और उनसे जुड़े आश्रमों और डेरों से संबंध रखते हैं। यह डेरा और आश्रम हरियाणा और पंजाब में बहुत संख्या में हैं। इनके मसलों में बाबाओं और राजनेतओं के बीच के संबंध भी शामिल हैं। रामपाल के मसले में तो हरियाणा की खट्टर सरकार और केन्द्र की मोदी सरकार की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है।