रूस के पास तेल और गैस का संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा भंडार मौजूद है। इस समय रूस यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा ऊर्जा निर्यातक देश है, यानी यूरोपीय संघ के देशों में सबसे ज्यादा ऊर्जा का निर्यात रूस ही करता है। कोयले का दूसरा सबसे बड़ा भंडार भी रूस में ही है। परमाणु ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक भी यही है।
दूसरी तरफ भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश है। दुनिया का 5 सबसे बड़े तेल आयातक देशों में इसकी गिनती होती है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कोयाला भंडार भारत ही है। इसके बावजूद कोयले के आयात पर इसकी निर्भरता बढ़ती जा रही है। परमाणु ऊर्जा के उत्पादन की इसकी महत्वाकांक्षा बहुत बड़ी है। भारत का सबसे बड़ा परमाणु संयत्र कुडनाकुलम में है और वह रूस के द्वारा ही बनाया गया है। भारत के ओएनजीसी और आयल इंडिया लिमिटेड रूस सहित दुनिया के अन्य देशों में तेल और गैस की खोज में लगे हुए हैं। भेल रूस में एक ताप बिजली उत्पादक संयत्र का निर्माण करने जा रहा है। यानी दोनों देशों के बीच ऊर्जा सेक्टर में पहले से ही सहयोग चल रहे हैं। पुतीन की आने वाली यात्रा के दौरान इस सहयोग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। लंबी अवधि के लिए इससे संबंधित योजनाओं पर अभी से काम किया जा सकता है। जो अवसर दोनों देशों को पुतीन की आगाामी यात्रा से मिलने वाले हैं, उनका पूरा पूरा इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
भारत ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसे इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भरोसेमंद सहयोगी की जरूरत है, जो लंबे समय तक उसका साथ निभा सके। भारत अपनी विकास दर को 8 से 9 फीसदी तक आने वाले सालों में रखना चाहता है। इस लक्ष्य को पाने के लिए ऊर्जा के मोर्चे पर इसे सफलता पानी होगी, क्योंकि विकास के लिए ऊर्जा की ज्यादा खपत चाहिए। यही नहीं, विकास के साथ ऊर्जा की जरूरत और भी बढ़ जाती है।
2030 तक भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता बन जाएगा। यह सिर्फ चीन से ही पीछे रहेगा। ऊर्जा सुरक्षा इसकी आर्थिक समृद्धि के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसीसे अंदाज लगाया जा सकता है कि प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग बहुत कम होने के बावजूद भारत दुनिया का आज तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है।
भारत अपनी तेल जरूरतों का 80 फीसदी आयात करता है। कोयले का तीसरा सबसे बड़ा भंडार भारत में ही है। इसके बावजूद कोयले के आयात की दर 15 से 20 फीसदी प्रति वर्ष बढ़ रही है। परमाणु ऊर्जा हमारी हमारे कुल बिजली उत्पादन के मात्र 3 दशमलव 6 फीसदी ही है। पनबिजली भी कुल बिजली उत्पादन का 15 फीसदी से कम ही है। गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से हमें बिजली कुल उपलब्ध बिजली से 10 फीसदी से भी कम प्राप्त हो रही है। हमारे देश मंे पीक समय में 10 फीसदी बिजली की कमी होती है। यह हालत तब हे, जब देश के बहुत बड़े हिस्से में बिजली का उपभोग होता ही नहीं है। सच कहा जाय, तो हमारे देश की 25 फीसदी आबादी बिजली वितरण नेटवर्क से बाहर है। जो बिजली नेटवर्क के अंदर है, वहां भी बिजली बहुत कम सप्लाई हो पाती है। दुनिया के औसत बिजली उपभोग का एक तिहाई बिजली उपभोग ही एक औसत भारतीय के द्वारा किया जाता है।
जाहिर है, भारत में ऊर्जा की भारी कमी है। इसके सभी स्रोतों के दोहन किए जाने की जरूरत है। बिजली का उत्पादन भारी पैमाने पर बढ़ाना पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग के एक आकलन के द्वारा भारत में प्रति वर्ष 2 दशमलव 8 फीसदी की दर से ऊर्जा की खपत में वृद्धि हो की संभावना है। यह आकलन आर्थिक विकास की वर्तमान दर को ध्यान में रखते हुए किया गया है। यानी यदि हम 8 से 9 फीसदी की विकास दर से वृद्धि करते हैं, तो और ऊर्जा की खपत की दर और तेजी से बढ़ेगी।
इसलिए भारत के पास अपनी ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों से दो हाथ करने का कोई विकल्प नहीं है और इसमें हमें रूस से ज्यादा भरोसेमंद सहयोगी शायद ही कोई और मिले। (संवाद)
भारत-रूस ऊर्जा सहयोग मजबूती की ओर
रणनीतिक गठजोड़ से दोनों देशों को होगा काफी लाभ
नन्तू बनर्जी - 2014-11-27 11:14
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। दोनों देशों के आपसी सहयोग को बढ़ाने में यह यात्रा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। ऊर्जा के क्षेत्र में तो सहयोग की विपुल संभावनाएं मौजूद हैं। हाइड्रोकार्बन, कोयला, परमाणु और गैर परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में आपसी सहयोग कर भारत और रूस दोनों लाभान्वित हो सकते हैं। इस सहयोग से दूसरे देशों को भी फायदा हो सकता है।