वहां आतंकवादी इस समय कुछ कमजोर हालत में हैं, लेकिन वे पूरी तरह समाप्त भी नहीं हुए हैं और अपनी उपस्थिति का अहसास कराने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। 28 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वहां दौरा होना था और उसकी पूर्व संध्या में ही आतंकवादियों ने एक सैनिक बंकर पर हमला कर दिया, जिसमें तीन आतंकवादियों और तीन सुरक्षा बला सहित 10 लोग मार डाले गए। दुनिया भर में आतंकवाद का इतिहास यही रहा है कि वह तेजी प्राप्त करता और कमजोर हो जाता है। पंजाब में भी ऐसा ही हुआ था। एक समय आतंकवाद अपने चरम उत्कर्ष पर था, लेकिन बाद में वह कमजोर होकर समाप्त हो गया। अब पंजाब की हालत देश के अन्य सामान्य राज्यों की तरह ही है। पर कश्मीर में आतंकवाद का दौर कुछ ज्यादा ही लंबा खिंचता जा रहा है। इसका कारण पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को दी जा रही सहायता है।

कश्मीर में आतंकवाद की समस्या एक बड़ा कारण वहां चुनावों के दौरान होने वाली धांधली है। मतदान में ही नहीं, मतगणना के दौरान भी धांधली की घटनाएं हुआ करती थीं। शेख अब्दुल्ला के समय से ही यह शुरू हुआ था और उसके बाद भी चलता रहा। अब्दुल्ला परिवार किसी भी तरह चुनाव जीत लिया करता था। उसमंे उस परिवार को केन्द्र की सहायता भी मिल जाया करती थी। इसलिए ज्यादा समर्थन होने और ज्यादा मत पाने के बाद भी अनेक मामलों में अब्दुल्ला परिवार की पार्टी नेशनल कान्फे्रंस के विरोधी चुनाव हार जाते थे।

इसी तरह की घटना सैयद सलाहुद्दीन के साथ हुई थी। वे श्रीनगर के अमीराकदाल विधानसभा क्षेत्र से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के टिकट से चुनाव लड़ रहे थे। मतगणना समाप्त होने तक उन्होंने भारी मतों से अपने नजदीकी नेशनल कान्फ्रेंस के उम्मीदवार पर भारी बढ़त हासिल कर ली थी। लेकिन जीत का प्रमाण पत्र नेशनल कान्फ्रेंस के पराजित उम्मीदवार को दे दिया गया। उन्होंने इसका विरोध किया, तो उन्हें झूठे मुकदमे में फंसा कर उन्हें जेल भेज दिया गया। इस घटना ने उनको बागी बना दिया। वे देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए और एक कट्टर आतंकवादी हो गए। उसके बाद तो घाटी में अनेक सलाहुद्दीन पैदा हो गए।

निर्वाचन आयोग की सक्रियता के कारण वहां के पिछले दो तीन चुनाव निष्पक्ष हुए हैं। उसी का नतीजा है कि अब वहां के लोगों का विश्वास चुनाव में पैदा हो गया है और वे भारी संख्या में मतदान करने लगे हैं। आतंकवादियों ने इस बार भी वहां के लोगों से मतदान के बहिष्कार की अपील की थी, लेकिन लोगों पर उनकी अपील का कोई असर नहीं पड़ा।

इस बार चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एक बड़ा फैक्टर होकर उभर रही है। वहां 87 विधानसभा की सीटें हैं और भाजपा का अभी तक का सबसे बेहरत आंकड़ा 11 सीटों पर चुनाव जीतने का रहा है? लेकिन इस बार वह अपने सारे रिकार्ड तोड़ने जा रही है। उसने 44 या उससे ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। वह लक्ष्य तो वह नहीं पा सकेगी, लेकिन उसकी सीटों की संख्या अच्छी खासी होगी। ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए उसने अपना उदार चेहरा इस चुनाव में पेश किया है। (संवाद)