विधायक को पार्टी से निलंबित कर सांसदों को भी कड़ा संदेश दे दिया गया है कि भड़काऊ बयानबाजी करने पर उनके खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की जा सकती है। राजस्थान के निलंबित विधायक गुंजल ने सांप्रदायिक दृष्टि से संवदेनशील कोई बयान नहीं दिया था, बल्कि एक अधिकारी के साथ गाली गलौज करते हुए धमकी भरे शब्दों में अपने आदेश मानने को कहा था। इसलिए उस विधायक को निलंबित करने पर संघ के हिंदू ब्रिगेड पर सीधे हमला भी नहीं हुआ और संदेश दे भी दिया गया है।
पर सवाल उठता है कि क्या अब सबकुछ ठीक हो गया है? इसका सवाल का उत्तर नकारात्मक ही हो सकता है, क्योंकि संघ के सभी लोगों को खुश करना नरेन्द्र मोदी के वश में नहीं हैं और जा नाखुश हैं, उनको अपनी हरकतों से रोक पाना भी आसान नहीं है। जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी उनको इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ता था। श्री मोदी तब विक्षुब्धों को लाइन पर लाने और लाइन पर नहीं आ रहे हांे, उन्हें हाशिए पर धकेलने में सफल हो गए थे। क्या गुजरात की उस सफलता को वह दिल्ली में भी दुहरा पाएंगे?
दिल्ली न तो गांधीनगर है और न ही भारत गुजरात है। दिल्ली की राजनीति गांधीनगर की राजनीति से जटिल है और भारत की राजनीति गुजरात की राजनीति से सैकडों गुणा ज्यादाद संश्लिष्ट। श्री मोदी को गुजरात मे सिर्फ एक प्रवीण तोगड़िया का सामना करना पड़ा था। राष्ट्रीय स्तर पर अनके प्रवीण तोगड़िया उनके लिए चुनौती बने हुए हैं। गुजरात में वे अपने विक्षुब्धेों और उनकी गतिविधियों पर नजर रख सकते थे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वे किस किस पर नजर रखेंगे? सब पर नजर रखना और उनसे निबटना असंभव है।
साध्वी निरंजन ज्योति द्वारा रामजादे और हरामजादे वाले बयान पर प्रधानमंत्री ने बहुत ही तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की थी और अपनी पार्टी के सांसदों व अन्य नेताओं को उस तरह की बयानबाजी करने से रोका था। लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई। उनकी बात अनसुनी करने वाले वे लोग हैं, जिन्हें लगता है कि श्री मोदी उन्हें उचित तवज्जो नहीं दे रहे हैं। उनमें वे भी शामिल हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री ने राज्यपाल बना रखा है।
कहते हैं कि सत्ता में हिस्सेदाराी न मिलने के कारण असंतुष्ट भाजपा और विहिप नेता मोदीजी के लिए समस्या खड़े कर रहे हैं, लेकिन देश के सबसे बड़ी आवादी वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के पद पर बैठे राम नाईक भी यदि अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मन्दिर के शीघ्र निर्माण की बात करते हैं। इसका मतलब है कि सत्ता का सुख भोग रहे कुछ भाजपा नेताओं के भी अपने दुख है और उसका कारण वे मोदी सरकार को मानते हैं। चर्चा है कि राम नाईक महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें लखनऊ के राजभवन में बैठा दिया गया। महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बन गई और श्री नाईक हाथ मलते रह गए। राज्यपाल के रूप में अपनी अर्ध बेरोजगारी उन्हें मंजूर नहीं और वे एक संवैधानिक पद पर रहकर एक ऐसा बयान दे रहे थे, जिसकी उनसे उम्मीद नहीं की जाती है। राम मन्दिर के विवादति स्थल पर निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। उसका फैसला आना बाकी है, फिर उसके पहले उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को इसके निर्माण की बात कहने का क्या मतलब? संविधान की अपनी मर्यादा होती है और जो संवैधानिक पदों पर बैठे हुए हैं, उनसे तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वे उस मर्यादा का पालन करें।
साध्वी द्वारा दिया गया रामजादा़- हरामजादा बयान अनायास था। मंत्री बनने के बाद उत्साह में उन्होंने उसी तरह की भाषणबाजी दिल्ली में कर दी, जिस तरह की भाष्णबाजी क रवह अपने क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीतकर आई थीं, लेकिन योगी आदित्यनाथ की गतिविधियां अनायास नहीं है। प्रधानमंत्री शपथग्रहण के कुछ समय बाद ही देश के लोगों से अपील कर रहे थे कि कम से कम दो साल तक विवादित मसलों को न छेड़े और सरकार को अपने विकास के एजेंडे पर एकाग्र होकर काम करने दें। यह तो अपील देश के सभी लोगों से थी, लेकिन वास्तव में श्री मोदी संघ परिवार के लोगों से यह अपील कर रहे थे।
उसक बावजूद घर वापसी के नाम पर धर्म परिवर्तन का काम शुरू कर दिया गया और वह भी बहुत ही शोर शराबे के साथ। इन कार्यक्रमों के मुख्य संरक्षक आदित्य नाथ हैं, जो भाजपा के बहुत ही खराब दिनों मंे भी अपनी सीट से लोकसभा का चुनाव जीतते रहे हैं। उनका दर्द है कि उन्हें केन्द्र में मंत्री नहीं बनाया गया। पहली बार चुनाव जीती साध्वी निरंजन ज्योति तो मंत्री बन गईं, लेकिन अनेक बार चुनाव जीते योगी आदित्यनाथ को मोदी जी ने इस योग्य नहीं समझा।
मंत्री पद से वंचित योगी के समर्थकों ने उन्हें उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना शुरू कर दिया। 12 सीटों पर उत्तर प्रदेश में उपचुनाव हो रहे थे। उसका स्टार प्रचारक योगी को ही बना दिया गया, पर उनके दुर्भाग्य से उन चुनावों मंे भाजपा को भारी पराजय का मुह देखना पड़ा। लोकसभा की एक सीट तो समाजवादी पार्टी की ही थी, लेकिन विधानसभा की 11 सीटों में से 10 भाजपा की थी और एक उसके सहयोगी अपना दल की। दो को छोड़कर भाजपा सारी सीटें गंवा बैठी। उसने लव जिहाद को चुनावी मुद्दा बनाया था। दंगों के कारण भी सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर चुनाव जीतने में सफल नहीं हो सकी। उस पराजय के बाद आदित्यनाथ और उनके समर्थकों को उनके मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश में पेश की जाने की उम्मीदों को भी झटका लगा। इसी नाउम्मीदी से पैदा हुई हताशा के कारण योगी वह करने लगे, जिसकी मनाही मोदी जी ने कर रखी थी।
प्रधानमंत्री को आने वाले दिनों में भी अपने लोगों से चुनौतियां मिलनी है। देखना दिलचस्प होगा कि श्री मोदी उन चुनौतियों का किस तरह सामना करते हैं। (संवाद)
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संघ के विक्षुब्धों से मोदी का टकराव होना ही है
क्या उन पर लगाम लगा पाएंगे प्रधानमंत्री?
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-12-20 11:23
वह खबर आ गई, जिसकी आशंका थी। खबर के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने परोक्ष रूप से इस्तीफे की धमकी दे डाली है। उन्होंने संघ के शीर्ष नेताओ के साथ बातचीत में विश्व हिंदू परिषद व भाजपा के कुछ सांसदों द्वारा की जा रही बयानबाजी पर अपना असंतोष जताते हुए कह डाला है कि उन्हें अपने पद का मोह नहीं है। उसके बाद ही विश्व हिंदू परिषद ने धर्मांतरण के अपने घर वापसी कार्यक्रमों को वापस ले लिया है और राजस्थान के एक विधायक को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है।