बात सिर्फ राम मंदिर और गीता तक ही सीमित नहीं रही। उत्तर प्रदेश की भाजपा ईकाई के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने ताजमहल को एक हिन्दू मन्दिर कह डाला। यानी भारतीय जनता पार्टी के परिवार के संगठन दल के नेता ही नहीं, बल्कि उसके अपने नेता भी ऐसे ऐसे बयान दे रहे हैं, जिसके कारण भाजपा की केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी के रूप में विश्वसनीयता गिर रही है। राज्य सभा में उस समय विचित्र स्थिति पैदा हो गई, जब भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद, जो संघ के मुखपत्र के संपादक भी रह चुके हैं, मांग कर रहे थे कि तमिल को राष्ट्रीय भाषा घोषित की जाय और उनकी मांग पर केन्द्रीय मंत्री सीतारमण कह रही थीं कि तमिल तो पहले से ही भारत की राष्ट्रीय भाषा है।
साक्षी महाराज उस समय हंसी के पात्र बन गए, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना लक्ष्मण से कर दी और उनकी पत्नी यशोदाबेन की तुलना लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला से कर दी। गौरतलब है कि जब लक्ष्मण राम के साथ 14 सालों तक जंगल में थे, तो उर्मिला अयोध्या में बिना लक्ष्मण के साथ रह रही थीं। साक्षी महाराज की उर्मिला से यशोदाबेन की तुलना इसलिए हंसी का विषय बन गई, क्योंकि 14 साल के बनवास के बाद उर्मिला को तो लक्ष्मण का साथ मिला, लेकिन यशोदाबेन तो अभी भी अकेली ही रह रही हैं।
बात भाजपा के सांसद तक ही सीमित नहीं है। केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने तो प्रस्ताव दे डाला कि दिल्ली का नाम बदलकर इन्द्रप्रस्थ या हस्तिनापुर कर दिया जाय। ये पांडवों और कौरवों की राजधानी हुआ करती थीं मंत्री इस बात को भूल गए कि दिल्ली का अपना भी इतिहास रहा है और यह सात साम्राज्यों की राजधानी के रूप में जानी जाती है। दिल्ली का नाम बदलने की मांग बहुत ही हास्यास्पद है।
लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादा विवादास्पद घर वापसी का अभियान है। संघ मुसलमानों और ईसाइयों को फिर से हिन्दू बनाने के अपने कार्यक्रम को घर वापसी का नाम दे रहा है। इसके कारण संसद में बहुत हंगामा होता रहा। विपक्ष प्रधानमंत्री द्वारा इस मसले पर बयान देने की मांग करता रहा। इस मसले पर खासकर राज्य सभा में खूब हंगामा हुआ।
कौन व्यक्ति कौन सा मजहब अपनाए, यह उसका निजी मामला है। उसे जो आस्था ठीक लगती है, वह आस्था अपनाने के लिए वह आजाद है। भारत का संविधान अपनी इच्छा अनुसार किसी भी व्यक्ति को अपना धर्म चुनने का अधिकार देता है। लेकिन जब इसके कारण राजनीति की जाने लगती है, तब विवाद पैदा होता है। जब राजनीति से जुड़े संगठन इस काम में लग जाते हैं, तो इस पर विवाद होना स्वाभाविक है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि अपना धर्म चुनना किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, लेकिन धर्म के प्रचार के मौलिक अधिकार के अंदर किसी के धर्म को बदलने का अधिकार नहीं आता है।
घर वापसी का अभियान जिस तरह से चलाने के लिए संघ सोच रहा है, उसने एक बहुत बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है और इसके कारण भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार को भारी फजीहत का सामना संसद में करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे इस मसले पर अपनी पार्टी और संघ परिवार से जुड़े नेताओं पर लगाम लगाएं अन्यथा एक ऐसा माहौल देश में बन जाएगा, जिसके कारण उनके विकास एजेंडे को नुकसान पहुंच सकता है। (संवाद)
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भाजपा का पैंतरा सत्तारूढ़ दल के लिए शोभनीय नहीं
प्रधानमंत्री को ऐसे तत्वों को रोकना चाहिए
हरिहर स्वरूप - 2014-12-22 12:09
सबसे पहले साध्वी निरंजन ज्योति का वह विवादित बयान आया, जिसमें उन्होंने देश के लोगों को रामजादे और हरामजादे में विभाजित कर दिया। उसके बाद साक्षी महाराज द्वारा महात्मा गांधी के हत्यारें नाथूराम गोडसे की प्रशंसा वाले बयान आये। साक्षी महाराज ने अपनी बात के लिए माफी मांगी, तो उसके बाद हिन्दू महासभा की ओर से कहा गया कि वे देश भर में नाथू राम गोडसे की मूर्तियां स्थापित करेंगे। इतना ही काफी नहीं था। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने अयोध्या के विवादित स्थल पर राम मन्दिर के निर्माण की बात भी कर दी। राम नाईक एक महत्वपूर्ण सांवैधानिक पद पर बैठे हुए हैं। विदेश मंत्री के पद पर बैठी सुषमा स्वराज ने गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की बात कर दी और कह दिया कि गीता राष्ट्रीय ग्रंथ पहले से ही है और अब महज इस बात की घोषणा की जानी बाकी है।