सुरक्षा बल के जवान उन उग्रवादियों को पकड़ने के लिए जंगल में घुस चुके हैं। उन्होंने हथियारों के जखीरे भी सीज किए हैं। उनके अनेक कैंपों को भी ध्वस्त कर दिया है। उग्रवादियों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले दुपहिया वाहनों को भी जब्त किया गया है। उग्रवादियों के साथ सुरक्षा बलों के जवानों की मुठभेड़ की भी कोई खबर अबतक नहीं आई है। यानी उनके ठिकानों तक जवानों के पहुंचने के पहले ही उग्रवादी अपनी जगह को छोड़कर सुदूर जंगल में प्रवेश कर चुके हैं।

भागते भागते उग्रवादियों ने गैर बोडो आबादी पर हमला करना भी जारी रखा। उनके घरों को जलाया गया। उनके गांव भी खाली कराए गए। वे वहां के स्थानीय निवासी हैं। इसलिए उन्हें वहां के बारे में ज्यादा जानकारी है। इसका इस्तेमाल करते हुए वे सुरक्षा बलों के घेरे में नहीं आ पा रहे हैं। सुरक्षा बलों की एक समस्या भाषा भी है। वे वहां की स्थानीय भाषा भी सही तरीके से नहीं समझ पाते। जाहिर है, वे स्थानीय बोडो लोगों से सही तरीके से संवाद भी स्थापित नहीं कर पा रहे हैं।

गौहाटी स्थित पर्यवेक्षक आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने उग्रवादियों के खिलाफ अपने अभियान का ढोल क्यों पीटा? उनके ऐसा करने के लिए उग्रवादी समय रहते सचेत हो गए और फिर उनका सुरक्षा बलो के चंगुल में पकड़ना लगभग असंभव हो गया। भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार शायद यह संदेश देना चाहती है कि वह अपनी पूर्ववत्र्ती सरकारों से ज्यादा मजबूत इरादा रखती है। केन्द्र सरकार ने अपने इरादे के अनुसार अर्द्ध सैनिक बलों की टुकड़ियों को मिशन पर लगा भी दिया। उनकी सहायता के लिए हेलिकाॅप्टर से भी जंगल की निगरानी की जा रही है।

केन्द्र सरकार ने जो तेजी दिखाई वह उचित है, लेकिन गृहमंत्री की बयानबाजी ने उग्रवादियों के कान खड़े कर दिए और फिर उन्होंने अपने बचने की तैयारी भी कर ली। वे उत्पाद मचाते हुए जंगलों के बहुत अंदर चले गए हैं। सुरक्षा बल के जवान उनके इलाको ंसे परिचित नहीं हैं। इसके कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

उग्रवाद दशकों से है, लेकिन अभी तक असम पुलिस ने ऐसे जवान सही संख्या में नियुक्त नहीं किए हैं, जो स्थानीय लोगों की भाषाओं को समझता है। भाषा इस अभियान मे सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है। यदि भाषा की यह समस्या नहीं होती, तो पिछले दिनों हुए नरसंहार को रोका जा सकता था। उग्रवादियों की बातचीत को तो उच्च तकनीकी के इस्तेमाल से टेप कर लिया गया था, लेकिन जिस भाषा में वे बात कर रहे थे, उसी को पुलिस प्रशासन सही समय पर नहीं समझ पाया।

केन्द्रीय पुलिस बल भी स्थानीय पुलिस की सहायता से ही अभियान चलाता है और जब स्थानीय पुलिस भी स्थानीय लोगों की भाषाओ से परिचित नहीं हो, तो अभियान बहुत ही कठिन हो जाता है। हालांकि यह भी सच है कि असम पुलिस ने बोडो उग्रवादियों और उनके गुटों का डाटा बेस तैयार कर रखा है।

ताजा नरसंहार को संगबिजित गुट ने अंजाम दिया है। यह गुट अन्य बोडो गुटों से इस मायने में अलग है कि यह एक अलग बोडो प्रदेश की मांग कर रहा है, जबकि दो अन्य गुट स्वायत्त जिला क्षेत्र मिल जाने से ही संतुष्ट हो गए हैं। दरअसल बोडो की असली समस्या यह है कि वे अपने इलाके में भी अल्पसंख्यक हो गए हैं। वहां असमिया, बंगाली भाषी समुदाय और आदिवासी आपस में मिलकर बहुसंख्यक हो गए हैं। इसके कारण बोडो को चुनावी हार का सामना करना पड़ता है। फिर उन्हें लगता है कि गैर बोडो लोगों को यहां से भगा दिया जाय। इसके कारण ही वे गैर बोडो समुदायों पर हमले करते हैं।

अब केन्द्र की भाजपा सरकार ने उग्रवाद को जड़ से मिटा देने का संकल्प लिया है। यही कारण है कि उसने बहुत तेजी के साथ इस बार कार्रवाई की है। पर देखना है कि अपने संकल्प को पूरा करने में वह कितना सफल होती है। (संवाद)