अभी तक सबकुछ नरेन्द्र मोदी के अनुकूल ही रहा है। उन्होंने पार्टी और सरकार के अंदर अपनी स्थिति लगातार मजबूत की है। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय की मर्यादा को फिर से बहाल किया है और मंत्रिमंडल पर अपनी पकड़ और भी मजबूत कर ली है। उन्होंने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को किनारे कर दिया है और पार्टी पर अपने वर्चस्व को पूरी तरह स्थापित कर लिया है। उन्होंने अपने सहयोगी दलों को भी उनका असली स्थान दिखा दिया है। सवाल उठता है कि क्या वे संगठन और सरकार पर अपना यह वर्चस्व बरकरार रख पाएंगे और यदि रख पाएंगे तो कब तक?

लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में अपनी सरकार बना ली है। अब वह जम्मू में अपनी सरकार के गठन की कोशिश कर रही है। इन राज्यों में नरेन्द्र मोदी ने अपनी पसंद के लोगों को मुख्यमंत्री के पद पर बैठा रखा है। दिल्ली चुनाव के साथ नये साल की शुरुआत हो रही है। उसके बाद इसी साल बिहार में भी विधानसभा के आम चुनाव होने हैं। दिल्ली एक छोटा राज्य है, लेकिन राजनैतिक दृष्टि से यह काफी महत्वपूर्ण है। भारतीय जनता पार्टी के लिए तो यह और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां की हार से देश भर में उसके हौसले पस्त होंगे। आम आदमी पार्टी भाजपा को जबर्दस्त टक्क्र देने वाली है। दिल्ली चुनाव के नतीजे 2015 की राजनीति के मूड को तैयार करेंगे।

बिहार एक महत्वपूर्ण राज्य है। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा और उसके समर्थक दलों के 31 सांसद विजयी हुए हैं। हालांकि बाद में हुए उपचुनावों मे भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश उम्मीदवार चुनाव हार गए। नीतीश कुमार और लालू यादव के गठबंधन ने भाजपा को करारी शिकस्त दे डाली। जनता दल(यू) की वहां सरकार है और भारतीय जनता पार्टी उसे अपने नाम करने की पूरी कोशिश करेगी। 2016 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल विधानसभा के चुनाव होंगे।

नरेन्द्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहे हैं। वे कांग्रेस को बहुत हद तक कमजोर करने में भी सफल हुए हैं। लोकसभा चुनावों के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की बुरी हार हुई है। हरियाणा और महाराष्ट्र में वह तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है, तो झारखंड और जम्मू और कश्मीर में वह चैथे नंबर पर पहुंच गई है। पिछले विधानसभा और इस साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में भी तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 70 मे से 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उसके उम्मीदवार 70 में से किसी भी सीट पर अन्य उम्मीदवारों से आगे नहीं रहे। साल 2015 राहुल गांधी के लिए चुनौतियो से भरा हुआ एक और साल साबित होने वाला है।

अरविंद केजरीवाल दिल्ली चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद उनकी दिल्ली में सरकार बन गई थी। लेकिन उन्होंने खुद कुर्सी छोड़ भी दी थी, जिसके कारण मतदाता उनसे नाराज हो गए। उसके कारण लोकसभा चुनाव में पार्टी के सारे उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। 2015 में उन्हें एक और मौका मिला है। यदि इस चुनाव में उनकी जीत नहीं हुई, तो राजनीति में उनकी प्रासंगिकता भी समाप्त हो जाएगी।

वामदलों का दिल्ली विधानसभा में कुछ भी दाव पर नहीं लगा हुआ है, लेकिन बिहार में वामपंथी दलों का अभी भी कुछ प्रभाव है। सीपीआई और सीपीआई (माले) वहां कुछ सीटें जीत सकती हैं। (संवाद)