इसके बावजूद दोनों पार्टियों की मिलीजुली सरकार बनाने की कवायद हो रही है। दोनों बीच अनेक महत्वपूर्ण मसलों पर जबर्दस्त मतभेद हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए धारा 370 को समाप्त करना प्रतिष्ठा का मसला है, तो पीडीपी इस धारा को और भी मजबूत बनाने का संकल्प करती रही है। अफस्पा को पीडीपी हटाना चाहती है और वहां सेना के हस्तक्षेप को कम करना चाहती है। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी अफस्पा को हटाकर सेना को कमजोर करने का सोच भी नहीं सकती। यदि पीडीपी ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया, तो यह माना जाएगा कि जिन लोगों के मत से उसके उम्मीदवार जीते हैं, उन लोगों के इरादों को वह कुचल रही है। भाजपा के साथ जाने का एक खतरा पीडीपी को घाटी में अपने अस्तित्व की समाप्ति का रूप में भी देखा जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि पीडीपी भाजपा के साथ गई, तो अगले आम चुनाव में घाटी में पीडीपी का पूरी तरह सफाया हो सकता है। पीडीपी के अंदर भी भाजपा के साथ हाथ मिलाने की बात पर भारी मतभेद है। विधायको का एक हिस्सा इस गठबंधन के सख्त खिलाफ है। उनका कहना है कि भाजपा के साथ पीडीपी का गठजोड़ जनादेश के खिलाफ है।

दूसरी तरफ पीडीपी के जो लोग भाजपा के साथ हाथ मिलाना चाहते हैं कि उनका कहना है कि अभी मौका है कि पीडीपी जम्मू और कश्मीर की राजनीति को फिर से परिभाषित करे। उनका कहना है कि 6 साल का समय बहुत होता है और यदि इस बीच मुफ्ती सरकार ने लोगों के लिए अच्छे काम किए, तो पार्टी प्रदेश और दिल्ली दोनों जगह अपने को मजबूत करने में सफल हो सकती है। भारतीय जनता पार्टी केन्द्र मे सत्ता में है और प्रदेश को केन्द्र से ही पैसे मिलने हैं। इसलिए पीडीपी का यह वर्ग चाहता है कि भाजपा के साथ मिलकर ही सरकार बनाई जाय, ताकि ज्यादा से ज्यादा धन केन्द्र से प्राप्त किया जा सके। विनाशकारी बाढ़ के बाद पुनर्निर्माण के लिए बहुत बड़े कोष की प्रदेश को जरूरत है और यह तभी मिल सकता है, जब प्रदेश में पीडीपी के साथ भाजपा की सरकार हो।

लेकिन इस तर्क का विरोधी विधायकों द्वारा खंडन किया जा रहा है। उनका कहना है कि भाजपा के साथ पीडीपी के गठबंधन का कश्मीर घाटी में जबर्दस्त विरोध होगा और उसके कारण वहां स्थिति हाथ से बाहर भी निकल सकती है। घाटी मे मतप्रतिशत ज्यादा रहा और उसका कारण यही था कि वहां के लोग नहीं चाहते थे कि भाजपा को कम मतदान प्रतिशत का फायदा मिले। वे भाजपा की सरकार को असंभव बनाने के लिए ही भारी संख्या में मतदान करने के लिए निकले थे। इसलिए यदि पीडीपी ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया, तो इसका फायदा भविष्य में नेशनल कान्फ्रंेस को ही होगा।

गठबंधन के पक्ष के नेता कहते हैं कि हमारी पसंद और नापसंद का कोई सवाल ही नहीं रह गया है, क्योंकि यहां मामला विवशता का है। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने महागठबंधन की बात की है और उनका कहना है कि पीडीपी, कांग्रेस और एनसी मिलकर सरकार बनाएं। लेकिन पीडीपी के अनेक नेता कहते हैं कि यह जनादेश का माखौल होगा, क्योंकि फिर वे लोग भी सरकार में आ जाएंगे, जिन्हें मतदाताओं ने नकार दिया है।

निर्दलीय विधायकों ने मामले को और भ जटिल बना दिया है। 7 में से 4 भाजपा के साथ हैं और तीन उनके साथ नहीं हैं। नेशनल कान्फ्रेंस अभी तमाशा देखने के मूड में है। कांग्रेस उस सरकार को किसी भी तरह समर्थन देने को तैयार है, जिसमें भाजपा नहीं हो। इस माहौल मे पीडीपी और भाजपा के बीच बातचीत के दौर लगातार चल रहे हैं और मतभेद को कम से कम करने की कोशिश की जा रही है। (संवाद)