2005 में लालकृष्ण आडवाणी भाजपा क अध्यक्ष थे। उन्होंने पाकिस्तान में जाकर मुहम्मद अली जिन्ना के पक्ष में कुछ बयानबाजी की थी और उसके बाद उन्हें संघ के दबाव में अध्यक्ष के पद से हटना पड़ा था। उनकी जगह पर संघ ने राजनाथ सिंह को पार्टी के अध्यक्ष पद पर बैठाया। उनके बाद नितिन गडकरी को अध्यक्ष पद पर संघ ने ही बैठाया। गडकरी को लगातार दूसरी बार पार्टी का अध्यक्ष बनाने के लिए भाजपा का संविधान ही बदल दिया गया, लेकिन विवादों के कारण उन्हें दुबारा अध्यक्ष नहीं बनाया जा सका, तो संघ ने राजनाथ सिंह को एक बार फिर पार्टी का अध्यक्ष बनवा दिया।
जाहिर है, राजनाथ सिंह के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद संघ एक बार फिर अपनी पसंद के व्यक्ति को भाजपा का अध्यक्ष बनाना चाहता था। लेकिन उसकी चली नहीं और मोदी अपनी पसंद के व्यक्ति को उस पद पर बैठाने में सफल हुए। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि यदि आज भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता में है, तो इसका श्रेय नरेन्द्र मोदी को ही है। इसलिए आरएसएस के लिए मोदी का विरोध करना संभव नहीं रह गया है।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में संघ की बहुत चलती थी। संघ प्रमुख क्या उसके मध्यवर्ती नेता भी अटल बिहारी और आडवाणी से मिला करते थे। सरकार जाने के बाद तो संघ प्रमुख सुदर्शन ने उस समय अटल और आडवाणी को यह आदेश तक दे डाला था कि वे अगली पीढ़ी के खातिर पार्टी के नेतृत्व से अपने आपको हटा लें। भाजपा के दोनों बड़े नेताओं को तब सुदर्शन का आदेश मानना पड़ा था।
अब संघ को नरेन्द्र मोदी के अन्य आदेशों को भी मानना पड़ रहा है। संघ के लोगों ने मुस्लिम विरोधी मसलों को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। लव जेहाद पर हंगामा हो रहा था। घर वापसी के नाम पर धर्मांतरण के कार्यक्रम चल रहे थे और बनाए जा रहे थे। बेटी बचाओ और बहु लाओ अभियान चल रहा था, जिसके तहत हिंदू युवकों को मुस्लिम युवतियों से शादी करने का बढ़ावा देने की योजना थी।
लगता है कि ये सब राममंदिर नहीं बनने के कारण संघ कार्यकत्र्ताओं में व्याप्त हताशा के कारण हो रहा था। प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद ही नरेन्द्र मोदी ने एक तरह से साफ कर दिया था कि वे चाहते हैं कि विभाजनकारी मसलों को नहीं उठाया जाय। राम मन्दिर भाजपा और संघ के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मसला रही है। उस पर देरी उनके कार्यकत्र्ताओं और नेताओं को खल रही थी। इसलिए लव जेहाद और घर वापसी जैसे अन्य मसलों को उठाया गया। लेकिन नरेन्द्र मोदी इन मसलों के उठाए जाने का भी विरोध कर रहे हैं। और उससे भी बड़ी बात यह है कि संघ पर दबाव डालकर इन्हें स्थगित करने में भी सफल रहे हैं।
अब समस्या यह है कि भगवाधारी लोग क्या करेंगे? अब संदेश यह जा रहा है कि संघ की ताकत घट रही है और वह मोदी सरकार पर नियंत्रण नहीं कर सकता। इसके कारण संघ से जुड़े कुछ अन्य संगठन भी लोगों के बीच अपना प्रभाव खो सकते हैं। अब भगवाधारियों को लग रहा है कि मोदी सरकार भी कहीं सिकुलर सरकार तो नहीं। (संवाद)
भारत
मोदी ने आरएसएस पर लगाम लगाई
देखना और इंजतार करना ही फिलहाल परिवार का काम
अमूल्य गांगुली - 2015-01-06 12:02
वह समय समाप्त हो रहा है, जब भाजपा के ऊपर आरएसएस का हुक्म चलता था। संघ को पहला झटका उस समय लगा, जब नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी। सरकार बनने के बाद अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष बने। श्री शाह संघ की पसंद नहीं थे, बल्कि नरेन्द्र मोदी की पसंद थे। 2005 के बाद से ही भाजपा के अध्यक्ष पद संघ की पसंद का व्यक्ति बैठा करता था।