राज्यसभा सांसद जुगल किशोर बहुजन समाज पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं। वे मायावती के बहुत करीबी भी माने जाते हैं। उन्हें मायावती ने दिल्ली और बिहार का प्रभारी भी बना रखा है। उन्होंने आरोप लगाया है कि मायावती आरक्षित सीटों पर लोकसभा और विधानसभा का टिकट देने के लिए एक करोड़ से दो करोड़ रुपये की मांग करती है। उन्होंने कहा है कि पार्टी के सभी नेता और समन्वयक जिनमें विधायक भी शामिल हैं, को कहा गया है कि वे इस तरह के पैसे इकट्ठे करें और 15 जनवरी को मायावती के जन्मदिन पर उन्हें उपहार के रूप में पेश करें।
इसके पहले पूर्व सांसद दारा सिंह ने भी उन पर इसी तरह के आरोप लगाए थे। दारा सिंह पिछली लोकसभा में बसपा के नेता थे और उन्हें बसपा का ओबीसी चेहरा माना जाता था। उन्होंने आरोप लगाया था कि मायावती पार्टी के समर्पित कार्यकत्र्ताओं से भी टिकट के लिए पैसे की मांग करती हैं। पिछले साल नवंबर महीने में जब राज्य सभा का चुनाव हो रहा था, तो राज्यसभा सदस्य अखिलेश दास ने भी मायावती पर इसी तरह का आरोप लगाया था।
सलेमपुर से सांसद रहे रामशंकर राजभर ने भी मायावती के खिलाफ विद्रोह कर दिया है। उन्हें भी बसपा सुप्रीमो पर टिकट बेचने का आरोप लगाया है। मायावती के नजदीक रहे बसपा नेतागण इन आरोपो से बेहद परेशान हैं, क्योंकि बसपा नेताओं को पार्टी की ओर से कड़ी हिदायत दी जाती है कि वे मीडिया से दूर रहें और पार्टी के अंदरूनी मामलों को तो मीडिया में हरगिज न ले जायं।
बसपा के नेताओं को आभास हो रहा है कि मायावती का समर्थन आधार कमजोर हो रहा है। उनके अपर कास्ट समर्थक तो उन्हें छोड़ ही चुके हैं, उनका दलित आधार भी उनसे खिसकता जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में दलितों के वोटों का एक हिस्सा भाजपा को भी मिला। पिछले उपचुनावों मंे दलितों का रुझान समाजवादी पार्टी की ओर भी देखा गया। मुलायम सिंह यादव अपने दलितों को अपनी पार्टी के साथ जोड़ने की रणनीति बना रहे हैं।
पिछले दिनों लखनऊ में आरएसएस की तीन दिनों की बैठक हुई, जिनमें फैसला किया गया कि संघ के कार्यकत्र्ता गांवों में दलितों के साथ बैठकर खाना खाएंगे। जाहिर है, संघ और भाजपा नेता दलितों से नाता जोड़ने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं।
दलितों का मुसलमानों के साथ जहां भी मतभेद होता है, भाजपा के नेता दलितों के हिमायती बनकर वहां पहुंच जाते हैं, जबकि मायावती यह काम नहीं कर पाती। इसके कारण भी दलितों का भाजपा की ओर रुझान होता है। पिछले लोकसभा चुनाव में दलितों के एक हिस्से का भाजपा की ओर जाने का एक प्रमुख कारण यही था।
दलित कांग्रेस के परंपरागत जनाधार रहे हैं। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में उस आधार को खो चुकी है। उसे फिर पाने की रणनीति कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी बना रहे हैं।
जिस समय विराधी पार्टियां दलितों को अपनी ओर करने की जबर्दस्त कोशिश कर रही है, उसी समय इस बसपा सुप्रीमो मायावती पर इस तरह का आरोप लगना पार्टी के अशुभ भविष्य का संकेत करता है। अब मायावती न केवल लोगों से कटती जा रही है, बल्कि पार्टी के नेताओं से भी कट रही हैं। मायावती के पास दलित आधार अपने साथ बनाए रखने के लिए कोई रणनीति नहीं है। उनके पास कोई कार्यक्रम नहीं है। इसके कारण उनके दलित समर्थक उनसे नाराज होते जा रहे हैं। इसके कारण आगामी विधानसभा चुनाव में बसपा के तीसरे स्थान पर खिसक जाने की पूरी संभावना बन रही है। तब सत्ता के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच मे ही रह जाएगा। (संवाद)
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उत्तर प्रदेश में बसपा की पिट रही है भद्द
मायावती पर लग रहे हैं गंभीर आरोप
प्रदीप कपूर - 2015-01-10 12:39
लखनऊः बहुजन समाज पार्टी प्रदेश में गंभीर समस्या का सामना कर रही है। एक के बाद एक अनेक नेता पार्टी सुप्रीमो मायावती पर चुनावी टिकट बेचने का आरोप लगा रहे हैं। पहले भी इस तरह के आरोप उनपर लगते थे, लेकिन इस तरह के आरोप मायावती के नजदीकी लोग नहीं लगाया करते थे। अब नजदीकी नेता की इस तरह के आरोप उनपर लगा रहे हैं, जिसके कारण उनकी स्थिति कमजोर होती जा रही है।