टैक्सी चालक को वहां की स्थानीय भाषा का ज्ञान होना चाहिए। इसका कोई विरोध नहीं करता। विरोध करने की जरूरत भी नहीं, क्योंकि जिसे स्थानीय भाषा का ज्ञान नहीं है, वह वहां टैक्सी चला ही नहीं सकता। टैक्सी चालकों के लिए आवश्यक है कि वे उन लोगों की भाषा समझें, जिन्हें वे एक जगह से दूसरी जगह ले जाएंगे। स्थानीय लोगों की भाषा समझना टैक्सी चलाने वालों की अपनी समस्या है जिसका समाधान निकालने के बाद ही वे टैक्सी चलाने की सोचते हैं। लेकिन जब सरकार इस तरह का आदेश जारी करे कि वही लोग टैकसी चलाने का अधिकार हासिल करेंगे, जो स्थानीय भाषा की जानकारी रखते हैं- सरकार की मंशा पर शक पैदा करता है।

सरकार की घोषणा के बाद लोगों ने अर्थ लगाया कि अब मराठी भाषा का ज्ञान टैक्सी चालको के लिए जरूरी होगा। इसका अर्थ लगाया गया कि महाराष्ट्र के बाहर से आने वाले लोगो को अब टैक्सी का परमिट मिलना असंभव हो जाएगा, क्योंकि उन्हें मराठी भाषा आती नहीं है। राज ठाकरे जैसे राजनीतिज्ञों ने महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश पर तालियां पिटनी शुरू कर दी। उन्होने उस निर्णय को अपने ब्रांड की राजनीति की जीत तक बता दी। मामला कोई अप्रिय मोड़ लेता उसके पहले ही मुख्यमंत्री अशोक चैहान ने यह स्पष्टीकरण जारी कर दिया कि स्थानीय भाषा वहां सिर्फ मराठी ही नहीं है, बल्कि बल्कि हिदी और गुजराती भी स्थानीय भाषाओं की श्रेणी में ही आती है।

मुख्यमंत्री के उस स्पष्टीकरण से मामला कुछ तो संभला है, लेकिन अभी भी अनेक सवाल अनुत्तरित हैं। मुंबई देश की आर्थिक राजनीति है। वह देश की आर्थिक राजधानी है, संविधान में इस बाम का तो कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन भारतीस रिजर्व बैंक का मुख्यालय होने के कारण मु्रबई को यह गौरव अपने आप प्राप्त हो गया है। भारतीय रिजर्व बैंक के मुख्याालय के वहां होने के कारण देश की अधिकांश वित्तीय संस्थाओ और संस्थानों का मुख्यालय भी वहां ही है और उनके कारण मुुबई देश के व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है। यानी मुंबई की समृद्धि सिर्फ महाराष्ट्र के कारण नहीं है, बल्कि इसमें पूरे देश का योगदान है। जब मुंबई पूरे देश का है तो फिर वहां सरकार स्थानीयता की बात कैसे कर सकती है?

मुंबई में हिंदी प्रदेशो और गुजरात के लोग ही नहीं बसे हुए हैं, बल्कि देश के अन्य हिस्से के लोग भी बसे हुए हैं। सभी जगहों के सभी आर्थिक वर्गों के लोग वहां रहते हैं। पंजाब का आदमी भी वहां रहता है। बंगाल से आकर भी वहंा लोग बसे हुए हैं। दक्षिण भारत के लोगों की तादाद भी वहां अच्छी खासी है। वहां से आकर बसे लोगों को हो सकता है न तो लिखित भाषा के रूप में हिंदी आती हो, न मराठी आती हो और न ही गुजराती। सरकार के ताजा निर्णय का असर उन पर पड़ सकता है। जाहिर है महाराष्ट्र सरकार का ताजा फेसला गलत है और शायद असंवैधानिक भी। संविधान में साफ प्रावधान है कि भाषा के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। (संवाद)