बीएसई में 4700 से अधिक कंपनियां सूचीबद्ध हैं जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा शेयर बाजार बनाती हैं । हालांकि सभी शेयरों में सक्रिय कारोबार नहीं होता । उनसे भी थोड़े से शेयरों से ही बाजार और अर्थव्यवस्था के रूख के बारे में पता चलता है ।

संवेदी सूचकांक की स्थापना के समय मुंबई शेयर बाजार ने कहा था, न्न बाजार के सामान्य रूख को प्रदर्शित करने के लिए इक्विटी मूल्यों के सूचकांक की कमी काफी समय से निवेशकों और समाचार पत्रों द्वारा महसूस की जा रही थी, क्योंकि वे अपना सूचकांक तैयार नहीं कर पाते थे ।

संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) क्या है?
सेंसेक्स मूल्य आधारित सूचकांक है और इसकी गणना विमुक्त प्रवाह पूंजीकरण प्रक्रिया के आधार पर होती है । यह प्रक्रिया एक कंपनी के जारी कुल शेयरों के बाजार -पूंजीकरण की पूर्व की प्रक्रिया से अलग है । इसमें कंपनी की केवल उन शेयरों का उपयोग किया जाता है जो कारोबार के लिए पूरी तरह उपलब्ध है । इस विमुक्त प्रवाह प्रक्रिया में प्रोमोटर, सरकार और सांस्थानिक निवेशकों के शेयर शामिल नहीं है । यह प्रक्रिया , बाजार के रूख की सही तस्वीर पेश करने के लिए 1 सितंबर 2003 को लागू की गयी थी ।

सेंसेक्स की गणना में 30 कंपनियों के विमुक्त प्रवाह पूंजीकरण को सूचकांक विभाजक से विभाजित कर दिया जाता है । यह विभाजक ही सेंसेक्स के मूल आधार वर्ष से संबद्ध होता है । यह सूचकांक को तुलनात्मक बनाता है तथा कारपोरेट गतिविधियों से अथवा शेयर बदलने इत्यादि से सूचकांक में होने वाले फेरबदल के लिए परिवर्तन बिंदु भी है ।

सेंसेक्स ने 1986 से एक लंबी यात्रा तय की है और वह फिलहाल 35 गुणा बढ ग़या है । कारोबार के पहले दिन 1 अप्रैल 1986 को सेंसेक्स 549.43 अंक पर बंद हुआ था । यह अपने रजत जयंती वर्ष में 17467 अंक पर खुला ।

सेंसेक्स का स्वरूप
सूचकांक का स्वरूप भी कई बार बदल गया है शुरू की 30 मूल कंपनियों में से 11 ही अभी इसका हिस्सा बनी हुई है ।

1986 में संसेक्स में एसीसी, बाम्बे डाइंग, बल्लारपुर इंडस्ट्रीज, सीएट टायर्स, सेंचुरी स्पीनिंग, फूड स्पेशलिटीज़ (अब नेस्ले), ग्रेट इस्टर्न शिपिंग, जीएसएफसी, ग्लैक्सो, ग्वालियर रेयॉन (अब ग्रासिम), हिन्दुस्तान एल्युमिनियम (अब हिंडाल्को), हिन्दुस्तान लीवर (अब हिन्दुस्तान यूनीलीव), हिन्दुस्तान मोटर्स, इंडियन होटल्स, इंडियन रेयॉन , आईटीसी, किर्लोस्कर कुम्मिन्स, लार्सन एंड टूब्राो, महिंद्रा एंड महिंद्रा, मुकंद, पीस इलेक्ट्रानिक्स (अब फिलीप्स), प्रीमियर ऑटोमोबाइल, रिलांयस इंडस्ट्रीज, सीमेंस, टेल्को (अब टाटा मोटर्स), टाटा पावर, टाटा स्टील, वोल्टाज और जेनिथ कंपनियां शामिल थीं।

फिलहाल इसमें एसीसी, भेल, भारती एयरटेल, डीएलएफ, ग्रासिम, एचडीएफसी, एचडीएफसी बैंक, हीरो होंडा, हिंडाल्को, हिन्दुस्तान यूनीलीवर, आईसीआईसीआई बैंक, इंफोसिस, जयप्रकाश एसोसिएट्स, लार्सन एंड टूब्राो, महिंद्रा एवं महिंद्रा, मारूति उद्योग, एनटीपीसी, ओएनजीसी, रिलायंस कम्युनिकेशन, रिलायंस इंडस्ट्रीज, रिलायंस इफ्रास्ट्रक्चर, भारतीय स्टेट बैंक, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, सनफार्मा, टीसीएस, टाटा मोटर्स,टाटा पावर, टाटा स्टील और विप्रो कंपनियां शामिल हैं ।

भारतीय निगमित क्षेत्र ने जो नया आयाम प्राप्त किया है उससे उसकी परिवर्तित स्थिति का स्पष्ट संकेत मिलता है । भारत की तीन बड़ी आईटी-आईटीईएस कंपनिओं टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो की उपस्थिति से सूचना प्रौद्योगिकी जगत में उसकी पहले से पहुंच रेखांकित होता है । विनिवेश नीति के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र की पांच कंपनियों के प्रवेश ने छिपी संपदा को सबके सामने रख दिया है । तीन रिलायंस कंपनियों की उपस्थिति से निगमों के विभाजन का झलक मिलता है, वहीं भारती एयरटेल, जयप्रकाश एसोसियेट्स और स्टेरलाइट की पहुंच से नई निगमित हस्तियों का आगमन हुआ है और हाल के पिछले वर्षों की नामी कंपनियों जैसे बाम्बे डायिंग, सेंचुरी, हिन्दुस्तान मोटर्स, प्रीमियर आटोमोबाइल्स और ग्रेट इस्टर्न शिपिंग आदि को संवेदी सूचकांक से हटना पड़ा है ।

अतीत और वर्तमान की सेंसेक्स कंपनियों पर सरसरी तौर पर निगाह डालने से भारतीय अर्थव्यवस्था के सूर्योदय और सूर्यास्त क्षेत्रों का स्पष्ट चित्र देखने को मिलता है। नई संरचना से भी मुंबई मुख्यालय वाली कंपनियों की भारी उपस्थिति में ह्यास आया जो 1996 में 75 प्रतिशत से अधिक दर्ज किया गया था।

हाल के वर्षों में सेंसेक्स
सेंसेक्स को चार अंकों को पार करने में दो वर्षों से अधिक लगे । 25 जुलाई 1990 को पहली बार सेंसेक्स 1001 अंकों पर बंद हुआ । 1991 में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण के उपायों की जो घोषणा की थी, उससे आर्थिक गतिशीलता आने लगी थी । 1992-93 में भारतीय बाजार के लिए उपयोगी बजट से आयात-निर्यात की आशाएं बढी़ जिससे मार्च 1992 तक सेंसेक्स में 4000 अंकों का उछाल आया । परिवर्तन का यह दौर हर्षद मेहता घोटाला प्रकरण से पहले आया था । वर्ष 2000 में सूचना प्रौद्योगिकी की अभूतपूर्व प्रगति के साथ-साथ सेंसेक्स 6000 अंक को पार कर गया । वर्ष 2006 के आसपास विदेशी निवेशक भी सक्रिय हो गए जिसके परिणामस्वरूप 8 सितम्बर, 2005 को सेंसेक्स 8000 अंक को पार कर गया । 7 फरवरी 2006 बाम्बे सेंसेक्स का स्वर्णिम दिन रहा और इसने 10,000 का आंकड़ा पार कर गया । सेंसेक्स फिर दुगुना हो गया और 29 अक्तूबर, 2007 को 20,000 का आंकड़ा भी पार कर गया । यह 8 जनवरी, 2008 को 21,078 की ऊंचाई तक पहुंच गया ।

इसी बीच वैश्विक मंदी की प्रक्रिया शुरू हुई और विदेशी निवेशकों ने अपने निवेश ( शेयर) को बेचना शुरू कर दिया ।

सूचकांकों का महत्त्व
प्राय: यह कहा जाता है कि शेयर बाजार देश के आर्थिक स्वास्थ्य को ठीक रखने और उसकी प्रगति बनाये रखने में प्रमुख भूमिका निभाता है । यह डोव जोन्स के 1884 के निर्माण से शुरू होता है । अब दुनिया में कई शेयर बाजार सूचकांक हैं । इनमें से उल्लेखनीय हैं - एस एंड पी ग्लोबल, डोव जोन्स, एफटीएसई, हांगसेंग एंड निक्केइ। निवेशकों में इनकी अत्यधिक लोकप्रियता के बावजूद इनकी अनेक अवसरों पर बहुत अधिक आलोचना भी हुई है । गड़बड़ घोटाले, निगमित भ्रष्टाचारों, कृत्रिम रूप से शेयरों के अत्यधिक मूल्य दिखाने, शोध फर्मों के कत्र्तव्य और हितों में टकराव आदि अनेक उदाहरण मिलते हैं । इससे बाजार में अस्थिरता पैदा होती है , सूचंकांकों की छवि खराब होती है, क्योंकि तब यह सूचीबद्ध कंपनी के सही स्वास्थ्य का परिचायक नहीं रह जाता।

इसके बावजूद शेयर बाजार और उनके सूचकांकों का अभी बहुत महत्व बना हुआ है । शेयर बाजार अर्थव्यवस्था को जरूरी तरलता उपलब्ध कराते हैं । भारत के दो प्रमुख बाजार बीएसई सेंसेक्स एवं निपऊटी ने भारतीय पूंजी बाजार को विश्व मानचित्र पर उत्कृष्ट स्थान दिलाने में बहुत योगदान किया है । विदेशी संस्थागत निवेशकों की बढत़ी उपस्थिति हमारे बाजार को वैश्विक बाजार से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । #