बराक ने यह बात उस समय कही, जब उनके साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस समय मौजूद नहीं थे और न ही सरकार का कोई अन्य मंत्री वहां था। भिन्न भिन्न क्षेत्रों के करीब 1500 लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही थी। उनके उस कथन पर अनेक लोगों की भौहें तन गई हैं। तीन दिनों तक तो वे भारत में सबके डार्लिंग बने रहे। उस बीच उन्होंने भारत को नसीहत देने वाली कोई बात नहीं कही। अब धर्मनिरपेक्षता की बात उठाने पर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या ओबामा भारतीय जनता पार्टी के उन लोगों के बारे में बोल रहे थे, जो धार्मिक विवाद खड़ा करते दिखाई पड़ रहे हैं।

अमेरिकी अखबार ’’ न्यूयाॅर्क टाइम्स’’ ने कहा है कि ओबामा का यह संदेश आंशिक रूप से अपने नये दोस्त नरेन्द्र मोदी को संबोधित भी था, जो भेदभाव फैला रहे अपने लोगों के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने नरेन्द्र मोदी से दोस्ती तो की है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह दोस्ती बिना किसी शर्त की है।

जो अमेरिका को जानते हैं, उन्हें पता है कि अमेरिकी किस तरह से बात करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के लिए तैयारियां बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं और क्या क्या बोलना है, उसके बारे में भी योजनाएं पहले से ही तैयार हो जाती हैं। राष्ट्रपति के एक एक शब्द का मतलब होता है और कोई भी बात बिना किसी संदर्भ के नहीं होती। यही कारण है कि ओबामा ने जाते जाते जो कहा, वह हमारे देश के सत्तारूढ़ पार्टी के लिए बहुत मीठा नहीं था।

ओबामा के इस बयान की एक खास पृष्ठभूमि भी है। आज मोदी सरकार आलोचना का सामना कर रही है कि वह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ संघ और भाजपा के कुछ नेताओ द्वारा चलाए जा रहे अभियान के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही है। कुछ समय पहले तक गुजरात दंगों के कारण अमेरिका ने नरेन्द्र मोदी को वीजा जारी करने पर रोक लगा रखी थी। यही कारण है कि ओबामा को एक बार फिर नरेन्द्र मोदी को याद दिलाना पड़ा कि धार्मिक असहिष्णुता के प्रति उनके देश का क्या रुख है।

इतना ही नहीं ओबामा का अपना जनाधार भी अमेरिका में है और भारत में रहकर उसे भी उन्हें संबोधित करना पड़ता है। धर्मनिरपेक्षता की बात करके वे उन्हें आश्वस्त करना चाह रहे थे कि नरेन्द्र मोदी से दोस्ती करके उन्होंने अपने पुराने उसूलों से समझौता नहीं किया है।

इसके द्वारा उन्होंने भारत के अल्पसंख्यकों और खासकर ईसाइयों को भी संदेश दिया है कि उनके साथ हैं। पिछली बार जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी थी, तो ओडिसा में एक ईसाई मिशनरी को जिन्दा जला दिया गया था। मोदी सरकार बनने के बाद भी ईसाई गिरिजाघरों में हिंसा की कुछ बारदातें देखने को मिली है। इसके कारण अमेरिका की ईसाई बहुत आबादी भारत को लेकर चिंतित है। घर वापसी के कार्यक्रम भी चिंता के कारण बने हुए हैं। इसके तहत ईसाइयों और मुसलमानों को फिर से हिंदू बनाया जा रहा है। इसलिए अमेरिका के ईसाई समूहों को ओबामा से उम्मीद थी कि भारत यात्रा के दौरान वे इस मसले को उठाएंगे।

इस सिलसिले में ओबामा ने अपने ईसाई धर्म की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि वे और उनकी पत्नी मिशेल ईसाई हैं, लेकिन उनके ईसाई होने पर भी लोग सवाल उठाते रहते हैं, मानों ईसाई न होना कोई गलत बात है।

ओबामा के उस कथन पर राजनीति करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि सोनिया गांधी ने ओबामा से हुई अपनी बातचीत में कहा था कि मोदी की सरकार बनने के बाद देश में धार्मिक विभाजन बढ़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने ओबामा के उस बयान को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया है और उसका कहना है कि इस मसले को कुछ लोग ज्यादा ही तूल दे रहे हैं। (संवाद)