किरण बेदी केजरीवाल के सामने हल्की पड़ गई हैं। उनकी सभाओं मे बहुत कम लोग आ रहे हैं। उनके भाषणों पर लोग गर्मजोशी भी नहीं दिखाते। इसके कारण भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व में चिंता की लहर दौड़ गई है और वे एक बार फिर चुनाव जीतने के लिए मोदी के भरोसे हो गए हैं।

किरण बेदी को मुख्यमंत्री बनाने का भाजपा के लिए सबसे खराब नतीजा यह हुआ है कि उसके अपने स्थानीय नेता ही नहीं, बल्कि कार्यकत्र्ता भी नाराज हो गए हैं और उनमें मायूसी छा गई है। किरण बेदी के अलावा 10 अन्य सीटों पर भी वैसे लोगों को टिकट दे दिए गए हैं, जो भाजपा के बाहर से हैं। इसके कारण असंतोष चरम पर पहुंच गया है।

भारतीय जनता पार्टी बाहरी उम्मीदवारों को टिकट देती रही है, लेकिन दिल्ली के कार्यकत्र्ता इसे पचा नहीं पा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि टिकट पाने वाले बाहरी लोगों की संख्या एक या दो नहीं है, बल्कि पूरे 11 हैं, जबकि दिल्ली में विधानसभा की कुल सीटें मात्र 70 ही हैं।

कार्यकत्र्ताओं का कहना है कि नये इलाके में जहां पार्टी अभी पूरी तरह से स्थापित नहीं है, बाहर के लोगों को टिकट देना गलत नहीं है, लेकिन दिल्ली जैसे प्रदेश में जो शुरू से ही भाजपा का गढ़ रहा है और जहां चुनाव लड़ने वाले कार्यकत्र्ताओं की कोई कमी नहीं है, वहां बाहर से लाकर टिकट देना गलत है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने यहां 7 मे से 3 सीटें पार्टी से बाहर के लोगों को दी थी। असंतोष तब भी था, लेकिन मोदी लहर में वह असंतोष भी बह गया था और सारे उम्मीदवार जीत गए थे।

पर विधानसभा चुनाव में कोई मोदी लहर नहीं दिखाई पड़ रही है। यहां लोग दिल्ली की समस्याओं के आधार पर मतदान करने वाले हैं और स्थानीय समस्याओं को हल करने का केजरीवाल का दावा लोगों को ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहा है। भाजपा अपने संगठनात्मक मजबूती के बल पर ही यहां बेहतर करने की उम्मीद रख सकती थी, लेकिन उसके अपने संगठन के लोग ही असंतुष्ट दिखाई पड रहे हैं।

स्थानीय कार्यकत्र्ताओं और नेताओं के असंतोष के कारण भाजपा का चुनाव अभियान जमीनी स्तर पर बहुत कमजोर दिखाई पड़ रहा है। इसकी भरपाई करने के लिए पार्टी ने मंत्रियों और सांसदों को चुनाव अभियान मे झोंक डाला है।

21 केन्द्रीय मंत्री और 120 सांसदों को दिल्ली में चुनाव जिताने का जिम्मा सौंप दिया गया है। बजट निर्माण की तैयारियों में व्यस्त अरुण जेटली भी अपना समय दिल्ली विधानसभा चुनाव मे दे रहे हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी अपनी पार्टी को दिल्ली में जिताने मे व्यस्त हैं। जाति और क्षेत्रवाद का सहारा भारतीय जनता पार्टी चुनाव अभियान म ेंले रही है। यानी जिस इलाके में जिम जाति की आबादी है, उस इलाके में भाजपा के उसी जाति के सांसद और मंत्री चुनाव प्रचार में जा रहे हैं। जिस इलाके में देश के जिस हिस्से के लोग ज्यादा हैं, उस इलाके में देश के उसी हिस्से से आए मंत्री और सांसद लगा दिए गए हैं।

यानी भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत दिल्ली का चुनाव लगाने मे झोंक दी है, लेकिन जमीनी कार्यकत्र्ताओं में उत्साह अभी तक पैदा नहीं हो पाया है। कागज पर सबकुछ ठीकठाक चल रहा है, लेकिन जमीन पर मायूसी का माहौल है। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी का चुनाव प्रचार बहुत ही व्यवस्थित तरीके से चल रहा है। अरविंद केजरीवाल भाजपा के सभी नेताओं पर अकेले भारी पड़ रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की सभाओं ने यदि भाजपा की हवा नहीं बनाई, तो इसके लिए चुनाव में बहुमत हासिल करना लगभग असंभव हो जाएगा। (संवाद)