मध्यप्रदेश के ग्रामीण विकास विभाग एवं सरकार के लिए इस खुशखबरी से मनरेगा के तहत काम करने वाले लाखों मजदूरों का कोई सरोकार नहीं है, क्योंकि मनरेगा से जुड़ी समस्याओं का समाधान जमीनी स्तर पर नहीं होने से मनरेगा का काम शिथिल पड़ा हुआ है। स्थिति यह है कि छह महीने से साल भर पहले का मजदूरी भुगतान नहीं हो पाया है। प्रति परिवार सालाना औसत मजदूरी दिवस में भारी कमी आई है। इससे पता चलता है कि रोजगार गारंटी से मजदूर विमुख होते जा रहे हैं और वर्तमान केंद्र सरकार की भी यही मंशा है, ताकि इस योजना को सीमित किया जा सके।

इसके पहले भी मध्यप्रदेश को मनरेगा में कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। लगभग हर साल मध्यप्रदेश को रोजगार गारंटी में काम करने के बदले किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिलता रहा है। पर इन पुरस्कारों से अलग मध्यप्रदेश में मनरेगा की जमीनी हकीकत में बहुत ज्यादा सुधार की जरूरत है। जब-जब केंद्रीय टीम ने जमीनी हकीकत को जानने के लिए मध्यप्रदेश का दौरा किया है, तब-तब यहा गंभीर अनियमितताएं एवं भ्रष्टाचार देखने को मिला है।

अभी पिछले साल प्रदेश में मनरेगा के तहत बड़ी संख्या में भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए हैं। प्रदेश में पहली बार केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान (एन.आई.आर.डी.) की निगरानी में सिवनी जिले के पूरे कुरई विकासखंड में विशेष ग्राम सभाओं का आयोजन कर सोशल आॅडिट किया गया था। सिर्फ एक विकासखंड में चले सोशल आॅडिट से पता चला कि यहां लाखों के भ्रष्टाचार एवं भारी अनियमितताएं हुई हैं। पंडरई बुट्टे गांव में तो चार सड़कों पर सिर्फ मिट्टी डाली गई है, पर उन्हें पूरा बता दिया गया है। स्टाॅप डेम पर सिर्फ एक दिन काम किया गया और अधूरे स्टाॅप पड़े डेम को पूरा बता दिया गया।

ऐसी स्थिति कई गांवों में देखने को मिली। यहां स्वैच्छिक संस्था समर्थन ने स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान को सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया को पूरा करने में जमीनी स्तर पर सहयोग किया। एन.आई.आर.डी. के सोशल आॅडिट सलाहकार गुरजीत सिंह का कहना है कि मध्यप्रदेश में सही तरीके से ग्राम सभाएं नहीं हो रही है और राज्य में शिकायतों के निवारण के लिए प्रभावी व्यवस्था नहीं है। यानी स्पष्ट है कि यदि प्रदेश में निगरानी तंत्र एवं शिकायत निवारण तंत्र सही तरीके से कार्य नहीं कर रहा है। रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इसमें सोशल आॅडिट यानी सामाजिक अंकेक्षण का प्रावधान किया गया है। पर पूरे देश में पंचायतें सोशल आॅडिट से बचना चाहती हैं, क्योंकि भ्रष्टाचार के मामले को उजागर करने का यह बेहतर जरिया है।

पिछले दिसंबर में मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री ने एक साल के रिपोर्ट कार्ड को प्रस्तुत करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में रोजगार गारंटी में भ्रष्टाचार बहुत ही कम है। जो भी मामले हैं, वे पहले के हैं, जिन पर कार्रवाई की जा चुकी है या की जा रही है। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश उन राज्यों में से है, जहां मनरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर पंचायत सचिव, सरपंच से लेकर कलेक्टर तक पर आरोप लगे हैं एवं कई को निलंबित भी किया गया है। पर इसका यह अर्थ नहीं है कि रोजगार गारंटी योजना से भ्रष्टाचार खत्म हो गया है। यदि सिवनी के मामले को ही देखा जाए, तो पता चलता है कि सही तरीके से सामाजिक अंकेक्षण किया जाए, तो पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार के हजारों मामले उजागर होंगे।

सामाजिक अंकेक्षण में सिर्फ आर्थिक लेन-देन का ही अंकेक्षण नहीं किया जाता, बल्कि काम, उसकी प्रक्रिया और स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण आदि की भी जांच होती है। पंडरई बुट्टे गांव की मिट्टी डाल दी गई चार सड़कों और वहां के अधूरे पड़े स्टाॅप डेम के आधार पर रिपोर्ट तो यही बनता है कि उस गांव में स्थाई परिसंपत्तियों का निर्माण हुआ है, पर जमीनी हकीकत इससे अलग है। यानी समग्र तरीके से सामाजिक अंकेक्षण किया जाए, तो प्रदेश में निर्मित स्थायी परिसंपत्तियों की वास्तविक स्थिति सामने आएगी। अधूरे पड़े, उपयोग करने से पहले ही बेकार हो चुके और घटिया निर्माण वाले परिसंपत्तियों को किस तरह से स्थायी परिसंपत्तियों में बढ़ोतरी के रूप में देखा जाए, यह विचारणीय सवाल है। (संवाद)