हाल ही में उत्तर प्रदेश में विधान परिषद के चुनाव हुए। उस चुनाव में स्थानीय नेतृत्व ने जिस तरह का बर्ताव किया, उससे पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व भी सकते में आ गया। अब नेता अब सवाल उठा रहे हैं कि जब पार्टी के पास 21 विधायकों की कमी थी, तो फिर क्या जरूरत थी कि पार्टी दूसरे उम्मीदवा को परिषद चुनाव में खड़ा करती।

गौरतलब है कि विधानसभा में भाजपा के पास 41 विधायक हैं और एक विधान परिषद उम्मीदवार की जीत के लिए 32 विधायक की जरूरत पड़ती है। दूसरे उम्मीदवार को खड़ा करके भाजपा ने विधायकों की खरीद बिक्री का रास्ता साफ कर दिया। लेकिन भाजपा उम्मीदवार को मात्र 17 मत ही मिले और उसकी हार हो गई।

भाजपा के प्रदेश नेतृत्व पर आरोप लग रहा है कि उसने मामले में भारी गड़बड़ी की। जब उसके पास जीत के लिए जरूरी विधायक थे ही नहीं, तो फिर दूसरा उम्मीदवार उसे खड़ा ही नहीं करना चाहिए था।

इसके पहले भाजपा ने विधानसभा के उपचुनावों में मुह की खाई थी। लोकसभा चुनाव में उसे 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन उपचुनावों में उसे भारी हार का सामना करना पड़ा। उसे अपनी सीटों पर भी पराजय का सामना करना पड़ा। इसके कारण विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या 49 से घटकर 41 हो गई।

वाराणसी कैंट में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में भाजपा की हार हुई थी। उसके कारण भी उसे भारी फजीहत का सामना करना पड़ा था।

वाराणसी में ही नहीं, बल्कि लखनऊ में भी उसकी हार हुई थी। गौरतलब हो कि वाराणसी के सांसद नरेन्द्र मोदी हैं और लखनऊ के सांसद खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह हैं।

वाराणसी और लखनऊ के विधानसभा चुनावों को भारतीय जनता पार्टी ने बहुत ही गंभीरता से लिया था। यही कारण है कि लखनऊ में खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी और राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह ने जोर शोर से प्रचार किया था। इसके बावजूद भाजपा के प्रत्याशी चुनाव हारे।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी दावा करते रहे कि समाजवादी पार्टी के 150 विधायक उनके संपर्क में हैं, लेकिन उस दावे की हवा भी निकल गई। वैसे उस पर शायद ही किसी ने विश्वास किया था। विधान परिषद चुनाव में पार्टी के दूसरे उम्मीदवार को गैर भाजपा दलों में से किसी का एक वोट भी नहीं मिला। इससे पता चल गया कि कितने गैर भाजपाई विधायक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के संपर्क में थे।

अब प्रदेश के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद प्रदेश पार्टी के काम में दिलचस्पी लें और संगठन को नीचे से ऊपर तक दुरुस्त करें।

भाजपा की कमजोरी का फायदा अखिलेश यादव उठा रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत बनाना शुरू भी कर दिया है। अनेक कार्यक्रमों द्वारा वह सरकार की छवि बेहतर बनाने की भी लगातार कोशिश कर रहे हैं। (संवाद)