पार्टी को झटका उस समय लगा, जब मोदी की रामलीला मैदान में हुई सभा में लोगों की संख्या उम्मीद से बहुत कम थी। जब पार्टी ने दिल्ली के चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल बनाने से बेहतर केजरीवाल बनाम किरण बनाना चाहा। इसी रणनीति के तहत किरण बेदी को भाजपा में शामिल कराया गया और उन्हें पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया। इसके पीछे सोच यह थी कि यदि पार्टी को जीत हासिल हुई, तो इसका श्रेय मोदी के सिर पर डाला जाएगा और यदि हार मिली, तो इसका ठीकरा किरण बेदी के सिर पर फोड़ा जाएगा।
लेकिन भाजपा के दुर्भाग्य से किरण बेदी हिट नहीं हुईं। अब लगभग सभी चुनावी सर्वे आम आदमी पार्टी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी के अंदर बदहवासी का माहौल बन गया है। यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि पार्टी ने दिल्ली के चुनाव को प्रतिष्ठा का विषय बना दिया है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि भाजपा यह चुनाव घोषणा पत्र के आधार पर नहीं लड़ रही है। घोषणा पत्र की जगह उसने बार चुनाव के पहले अपना विजन दस्तावेज पेश किया है। इसमें दिल्ली को विश्व स्तर का महानगर बनाए जाने का वायदा किया गया है। महिलाओं की सुरक्षा की बात को रेखांकित किया गया है। प्रशासन में पारदर्शिता की बात की गई है। गरीबों को घर देने का इरादा जाहिर किया गया है और पानी व बिजली की समस्या के हल का भी वायदा किया गया है।
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात की थी, लेकिन इस बार इस मसले पर पार्टी चुप है।
दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने अपने 70 सूत्री घोषणा पत्र में वायदों की झड़ी लगा दी है। सस्ती बिजली और मुफ्त पानी का वायदा किया गया है। उसने भी महिलाओं की सुरक्षा का वायदा किया है। कांग्रेस लड़ाई में कहीं दिखाई नहीं दे रही है, लेकिन उसने भी अनेक ऐसे वायदे कर डाले हैं, जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता।
2013 और इस बार के चुनाव की पृष्ठभूमि में भारी अंतर है। उस समय कांग्रेस की दिल्ली में सरकार थी। इस समय राष्ट्रपति शासन चल रहा है। इसका मतलब है कि परोक्ष रूप से यहां भाजपा की ही सरकार है।
भाजपा की जीत पर आज प्रश्न चिन्ह लग रहा है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? पिछले दो महीने तक तो भाजपा के लिए सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, पर अब वह ऐसी स्थिति में क्यों आ गई है?इसका एक कारण तो यह है कि भाजपा के सभी विरोधी आम आदमी पार्टी के समर्थन में आ गए हैं। यदि पार्टी स्तर पर ऐसा नहीं हुआ है, तो मतदाता के स्तर पर ऐसा बहुत हद तक हो चुका है।
दूसरा कारण यह है कि मोदी की तरह केजरीवाल भी युवकों को आकर्षित करते हैं और उन्हें लगता है कि दोनों बदलाव ला सकते हैं। उन्हें शायद यह भी लगता है कि मोदी केन्द्र की सरकार मे ही ठीक हैं, जबकि केजरीवाल के हाथ में दिल्ली की प्रदेश सरकार होनी चाहिए। (संवाद)
दिल्ली चुनाव
क्या मोदी पर भारी पडेंगे केजरीवाल
दिल्ली की दूसरी लड़ाई
कल्याणी शंकर - 2015-02-06 12:01
जब पिछले महीने दिल्ली चुनाव की तारीखों का एलान हुआ था तो उम्मीद की जा रही थी कि भारतीय जनता पार्टी जीत हासिल कर लेगी। अभी भी इसकी संभावना समाप्त नहीं हुई है। भाजपा की जीत की उम्मीद इस बात पर आधारित थी कि पिछले साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार दिल्ली की 70 में से 60 सीटों पर आगे थे और उस चुनाव के बाद हुए चार प्रदेशों के विधानसभा चुनावों मे भाजपा की ही जीत हुई थी। पार्टी को लग रहा था कि देश में चल रही मोदी लहर अभी समाप्त नहीं हुई है और इसके कारण ही उसे दिल्ली में भी सफलता मिलने की उम्मीद लगी हुई थी।