आम आदमी पार्टी की जीत वस्तुतः अन्ना आंदोलन की जीत है। सच कहा जाय तो नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत भी अन्ना आंदोलन के कारण ही हो सकी थी। ताजा चुनाव के परिणाम यह साबित करते हैं कि अन्ना के आंदोलन अभी भी हमारे देश के लोगों को आंदोलित कर रहा है और उसका असर चुनावी नतीजों पर पड़ रहा है।

अन्ना का आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ छिड़ा आंदोलन था और इस आंदोलन ने उन सारे नेताओं और पार्टियों को चुनावों में सबक सिखा दिया है, जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगा करते थे। नरेन्द्र मोदी पर उस तरह का कोई आरोप नहीं था और उनके साथ एक बड़ा और मजबूत संगठन था। इसके कारण ही प्रधानमंत्री बनने में वे सफल हुए और उनकी पार्टी को अपने बूते बहुूमत मिला। हालांकि यह भी सच है कि नरेन्द्र मोदी के संरक्षण में अनेक भ्रष्ट तत्व की चुनाव जीत गए थे और उनमें से कई तो केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी है।

चुनाव जीतने के बाद यह प्रचारित किया गया और इसे खुद नरेन्द्र मोदी ने प्रचारित किया कि देश की जनता ने उनके विकास के नारे को पसंद किया और विकास का ही उनको जनादेश मिला है। लेकिन यह पिछले लोकसभा चुनाव के जनादेश को गलत तरीके से पढ़े जाने का निष्कर्ष है। विकास तो देश की जनता चाहती ही है, लेकिन देश की जनता के सामने विकास कोई समस्या नहीं है, बकि असली समस्या भ्रष्टाचार है और लोकसभा चुनाव में लोगों का जनादेश भ्रष्टाचार के खिलाफ था। नरेन्द्र मोदी ने भी उस जनादेश को पढ़ने में गलती की। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ मिले जनादेश को सिर्फ विकास के खिलाफ जनादेश मान लिया।

इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने भ्रष्टाचार को अपनी सरकार का मुख्य एजेंडा ही नहीं बनाया है। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करते हैं, लेकिन सिर्फ बातें ही करते हैं। भ्रष्टाचार को वे चुनावी मुद्दा बनाते हैं और सिर्फ मुद्दा ही बनाते हैं। हरियाणा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने ’’ दामादजी’’ के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया। वहां भी उनकी पार्टी की सरकार बन गई, लेकिन अभी तक दामादजी के खिलाफ कोई मुकदमा भी दायर नहीं किया गया है। दिल्ली में काॅमनवेल्थ खेलों में भारी भ्रष्टाचार हुए थे। शुंगुलू कमिटी ने भ्रष्ट लोगांे की ओर इशारा भी किया था। अरविंद केजरीवाल ने अपने 49 दिनों के शासनकाल में कुछ मुकदमे भी दायर किए थे। केन्द्र की सत्ता संभालने के बाद नरेन्द्र मेादी से उम्मीद की जा रही थी कि केजरीवाल द्वारा दायर किए गए मुकदमे को आगे बढ़ाते और कुछ और नये मुकदमे दायर करवाते, लेकिन उन्होंने वैसा कुछ भी नहीं किया।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना हमारे देश के सभी नेताओं का प्रिय शगल रहा है, लेकिन उसके खिलाफ कार्रवाई करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रहती है। अन्ना आंदोलन के समय का एक नारा ’सारे नेता चोर हैं’ इसके कारण बहुत लोकप्रिय हुआ था। नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद भ्रष्ट लोगों के खिलाफ आंखें मूंद ली और यह दंभ भरते रहे कि वे आने वाले भ्रष्टाचार के नहीं होने देने में दिलचस्पी रखते हैं न कि पहले हुए भ्रष्टाचारों के बारे में सोचने विचारने में समय बर्बाद करना चाहते हैं। ऐसा कहते हुए वे भूल गए कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए भ्रष्ट लोगों को दंडित करना जरूरी होता हैं। जब भ्रष्ट लोगांे के खिलाफ तेज हो। उनको सजा मिल और वे जेल में जाएं, तो भ्रष्टाचार करने वाले लोग डरते हैं और यह कम हो जाता है। लेकिन जिन भ्रष्ट लोगों के भ्रष्टाचार के कारण नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने, उनके खिलाफ उन्होंने शायद ही कोई कार्रवाई की हो।

शारदा घोटाला एक अपवाद है, जहां सीबीआई अपना काम बखूबी कर रही है। लेकिन उसके पीछे भारतीय जनता पार्टी के वहां अपना विस्तार करने की कामना भी है। वहां जो सीबीआई कर रही है, वह गलत नहीं है, लेकिन मायावती और मुलायम के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों पर सीबीआई के हाथ पांव ढीले क्यों पड़े हुए हैं? लालू यादव और राबड़ी देवी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले पर सीबीआई को हाई कोर्ट में अपील करने से कौन रोक रहा है? नीतीश कुमार पर भी चारा घोटाले में शामिल होने के पुख्ता सबूत हैं, लेकिन सीबीआई उस मामले की जांच क्यों नहीं कर रही है? ये वे नेता हैं, जो नरेन्द्र मोदी के कट्टर राजनैतिक विरोधी रहे हैं। मोदी जी कह सकते है कि उनके खिलाफ कार्रवाई करने से उनपर आरोप लगेगा कि वे अपने विरोधियों को प्रताड़ित कर रहे है। लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि आप अपने विरोधियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ भी जांच नहीं करा सकते, तो फिर आप अपने मित्रों के खिलाफ जांच कैसे करवा सकते हैं?

दिल्ली में केजरीवाल की जीत उनकी 49 दिनों की सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ की गई कार्रवाई की जीत है। उस समय दिल्ली में भ्रष्टाचार वास्तव में बहुत कम हो गया था। भ्रष्ट अफसर और कर्मचारी घूस लेने और मांगने में डरने लगे थे। केजरीवाल के कुछ निर्णय और की गई कुछ कार्रवाई का यह नतीजा था। उन्होंने बिजली कंपनियों के भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए उनकी आॅडिटिंग के भी आदेश दिए थे। पर उनकी सरकार जाने के बाद सबकुछ पहले जैसा हो गया। राष्ट्रपति शासन के तहत पहले कांग्रेस सरकार ने और बाद में भाजपा सरकार ने केजरीवाल के काम को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। फिर तो दिल्ली के लोगों को यह विश्वास हो गया कि केजरीवाल के जो काम अधूरे रह गए हैं, वे केजरीवाल ही पूरा कर सकते हैं। और फिर उन्होंने उनकी आम आदमी पार्टी को ऐसी जीत दे दी, जो आजतक किसी भी राजनैतिक पार्टी को नसीब नहीं हुई है।

दिल्ली में हार के बाद नरेन्द्र मोदी को अपने जनादेश को फिर से पढ़ना चाहिए। इस हार के चश्मे में उन्हें साफ साफ दिखाई देगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई उनके विकास से ऊपर की प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया, तो उनकी आगे भी हार होती रहेगी, बशर्ते उनके सामने केजरीवाल जैसा कोई शख्सियत खड़ा हो। (संवाद)