यदि लालू और नीतीश चाहें, तो जीतन राम मांझी मंत्रिमंडल में भी लालूजी की बेटी उपमुख्यमंत्री बन सकती हैं, लेकिन नीतीश को लगा होगा कि जब लालूजी की बेटी उपमुख्यमंत्री बन सकती हैं, तो वह सौदा एकतरफा क्यों हो। इसलिए उन्होंने अपने आपको मुख्यमंत्री बनाने के लिए पेश कर दिया और लालूजी का समर्थन भी हासिल कर लिया। कहते हैं कि उन्हें मुलायम सिंह का समर्थन भी हासिल हो गया। मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति से परेशान रहते हैं। दलितों के प्रति अपनी भावना का इजहार वह प्रोन्नति में उनके आरक्षण का विरोध करके दिखा चुके हैं।
लालू और मुलायम का समर्थन पाकर नीतीश जी सीएम बनने के लिए उतावले हो गए और यह बात फैलाई कि मांझी का भाजपा के साथ बातचीत हो चुकी है और विधानसभा चुनाव के ठीक पहले वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे। जब जनता दल परिवार को बहुत नुकसान होगा और उन नुकसान से बचने के लिए अच्छा यही है कि अभी ही मांझी को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया जाय। पता नहीं, इस बात में सच्चाई है या नहीं, लेकिन नीतीश को जानने वाले कहते हैं कि गलत धारणा फैलाकर इस तरह राजनीति करने के मास्टर रहे हैं नीतीश कुमार। मांझी को मुख्यमंत्री बनाते समय कहा गया था कि अगले विधानसभा चुनाव तक के लिए उन्हें सीएम बनाया गया है। लेकिन उस वक्तव्य को नीतीश कुमार और उनके समर्थकों द्वारा भुला दिया गया। मांझी ने भी कभी यह नहीं दावा किया कि आगामी विधानसभा चुनाव के बाद भी वही मुख्यमंत्री रहेंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री के लिए नीतीश का ही नाम लिया। हां, वह दलितों को एकजुट होने, शिक्षित होने और नशा न करने की सलाह देते रहे और कहा कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो बिहार में आने वाले समय में भी मुख्यमंत्री दलित बन सकता है। जिस वर्ग से मांझी जी आए हैं, उनकी चेतना बढ़ाने के लिए यदि वे इस तरह का बयान देते हैं, तो इसमें कोई गलत भी नहीं है। सच कहा जाय, तो वंचित समाज को इस तरह की नसीहत दिए जाने की सख्त जरूरत है। लालू यादव भी चारा घोटाले के मुकदमे में फंसने के पहले गरीबों और दलितों के मुहल्ले में जाकर उनके बच्चों को स्नान करवाते थे और उनसे एक प्रार्थना करवाते थे, जिसका नाम था लालू प्रार्थना। उसमें कहा जाता था, ’ चूहा पकड़ने वालों, गाय चराने वालों, बकरी चराने वालों, सुअर चराने वालों! पढ़ाई लिखाई करो’। वह लालू का अंदाज था। मांझीजी अपने अंदाज में बिहार की दलित जनता में चेतना पैदा कर रहे थे। लेकिन वह नीतीश व अन्य सामंतों व नवसामंतों को अच्छा नहीं लग रहा था।
मांझी को हटाकर नीतीश यदि खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते भी हों, तो उन्हें कायदे से आगे बढ़ना चाहिए था, लेकिन उन्होंने कायदे कानूनों की धज्जियां उड़ानी शुरू कर दी। उन्हें या उनके दल के अध्यक्ष को जीतन राम मांझी से कहना चाहिए था कि विधायक दल की बैठक कर उसका विश्वास हासिल करें। उस बैठक में मांझी जी का मतदान के द्वारा हटाया जा सकता था। लेकिन मांझी को बैठक बुलाने के लिए नहीं कहा गया। विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री विधायक दल की बैठक बुलाते हैं और उन्होंने बुलाया भी है। उस बैठक में बहुमत द्वारा उन्हें हटाने की कोशिश की जानी चाहिए थी, लेकिन उस बैठक के दिन का भी इंतजार नहीं किया गया। अवैध तरीके से विधायक दल की बैठक बुलाई गई और उसमें एक नये नेता का चुनाव कर लिया गया। नीतीश जी को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए था कि मांझी विधायक दल के नेता होने के नाते बिहार के मुख्यमंत्री भी हैं और विधायक दल अपने नेता को तो हटा सकता है, पर मुख्यमंत्री को नहीं। मुख्यमंत्री तभी हटेंगे, जब वे खुद इस्तीफा दे दें। यदि वे इस्तीफा नहीं देते हैं तो उन्हें सिर्फ विधानसभा में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर ही हटाया जा सकता है।
जब मांझी ने सीएम पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, तो उनको हटाने के लिए विधानसभा के सत्र का इंतजार किया जाना चाहिए था। गौरतलब हो कि इस संकट के पहले ही विधानसभा के सत्र की तिथि तय हो गई थी। उसकी बैठक में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर उन्हें हटाने की कोशिश की जा सकती थी। लेकिन उस दिन का भी इंतजार नहीं किया और नीतीश अपनी टोली के साथ राज्यपाल के दरवाजे पर जा पहुंचे और मुख्यमंत्री पद पर शपथ पाने का अपना दावा पेश कर दिय। लेकिन जब मुख्यमंत्री का पद खाली ही नहीं, तो राज्यपाल उनको उस पद पर शपथ कैसे दिला सकते? राज्यपाल के सामने समर्थक विधायकों का परेड कराने का भी कोई मतलब नहीं, क्योकि बोमई केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राज्यपाल के अधिकार सीमित कर दिए हैं और राज्यपाल खुद विधायक गणना करके किसी सीएम को हटा नहीं सकते। उस फैसले के अनुसार विधानसभा में की गई विधायक गणना के द्वारा ही सीएम को हटाया जा सकता है। राज्यपाल ही नहीं, राष्ट्रपति के सामने भी नीतीश विधायकों की परेड करवा चुके हैं। यह अराजकता नहीं तो और क्या है, जबकि व्यवस्था के अनुसार विधानसभा में ही किसी मुख्यमंत्री को हटाया जा सकता है।
बिहार बिधानसभा के स्पीकर नीतीश को सदन का नेता घोषित कर रहे हैं, उसे हम असांवैधानिक कह सकते हैं। नीतीश तो विधानसभा के सदन में बैठने की योग्यता भी नहीं रखते, क्योंकि उसमें विधायक या विधायकों के प्रति जवाबदेह गैरविधायक मंत्री ही बैठ सकते हैं। नीतीश न तो विधानसभा के सदस्य है और न ही मंत्री, इसलिए ज्यादा से ज्यादा वे विधानसभा की दर्शक दीर्घा में बैठ सकते हैं। जो व्यक्ति सदन में बैठ नहीं सकता, उसे सदन का नेता बनाया जाना भी अराजकता की ओर कदम बढाना ही है।इसके लिए भी नीतीश के सीएम बनने का लोभ भी जिम्मेदार है। (संवाद)
भारत: बिहार
अराजक हो रहे हैं नीतीश कुमार
व्यवस्था की उड़ाई जा रही है धज्जियां
उपेन्द प्रसाद - 2015-02-12 13:24
नीतीश कुमार की छवि मीडिया में एक जेंटिलमैन राजनीतिज्ञ की रही है। लेकिन मुख्यमंत्री बनने की लालसा में आज वे जो कुछ कर रहे हैं, उससे उनकी छवि एक अराजनैतिक नेता की बन रही है, जिसके लिए नियम और कायदे कोई मायने नहीं रखते और जिसे किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से उनका तकरार भी इन्हीं कारणों से हुआ। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी हैं और नीतीश चाहते थे कि सरकार उनकी चले और श्री मांझी उनके इशारों पर नाचते रहें। यह भी व्यवस्था के खिलाफ नीतीश का दुराग्रह ही था। इतना ही नहीं, वे चाहते थे कि मांझी उनके लिखे हुए भाषण ही पढ़ें। यह सब संभव नहीं हो सका। और उसके बाद नीतीश कुमार मांझी जी को हटाकर मुख्यमंत्री बनने के लिए सक्रिय हो गए। इसमें उन्हें लालू यादव का भी सहयोग मिल गया, जो शायद अपनी बेटी को उपमुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं।