सरकार दिल्ली की सफाई करवाने और चमकाने में लगी हुई है। सरकारी पैसे से कनाट प्लेस के निजी इमारतों को भी खूबसूरत बनाने का काम चल रहा है। अनेक फ्लाइओवरों के निर्माण भी हो रहे हैं। मेट्रो का विस्तार किया जा रहा है। दिल्ली को बेहतर और सुन्दर बनाने के इस क्रम में दिल्ली की परिवहन व्यवस्था चरमरा रही है।

दिल्ली की सड़कों पर चैपहिया वाहनों का दबाव पहले से ही बहुत ज्यादा है। उम्मीद की जा रही थी कि मेट्रो के निर्माण के साथ साथ ही सड़कों पर उन चैपहिया वाहनों का दबाव घटेगा। लेकिन वैसा कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है। जिन इलाकों में मेट्रो की गाड़ियों ने दौड़ना शुरू कर दिया है, वहां की सड़के अभी भी पहले की तरह ही जाम का शिकार हो रही हैं।

जाम की समस्या से जूझने के लिए अनेक फ्लाइओवर बना दिए गए। अनेक अभी भी बनाए जा रहे हैं, लेकिन इससे भी समस्या का समाधान नहीं निकला है। फ्लाइओवरों ने सिर्फ जाम के बिन्दु को बदल दिया है। अनेक बार तो फ्लाइओवर पर ही जाम देखे जा सकते हैं।

मेट्रो और फ्लाइओवरों की विफलता के बाद राज्य सरकार ने सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत कर जाम की समस्या को हल करने की बीड़ा उठाया है। वैसे मेट्रो भी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का ही हिस्सा है, लेकिन उसके कारण उनके रास्तों की बसों की भीड़ तो घटी है, लेकिन सड़को पर चैपहिया वाहनों की संख्या नहीं घटी है।

अब बेहतर बस सेवा के रूप में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत करने की नीति अपनाई जा रही है। वातानुकूलित बसें चलाई जा रही हैं। और उम्मीद की जा रही है कि उसके कारण लोग अपनी गाड़ियों का अपने घरों में ही छोड़कर बसों से चलेंगे और सड़कों पर जाम की समस्या से निजात मिल जाएगी।

इस तरह की उम्मीद पालने वाले यह भूल जते हैं कि पहले भी वातानुकूलित बसें चलाई गई थीं, लेकिन वे नहीं चली। उसका किराया ज्यादा होता था, इसलिए उनपर लोग ज्यादा चलते ही नहीं था। बाद में उन बसों का क्या हुआ यह किसी को नहीं पता। वे सभी निजी बसें थी। अब राज्य सरकार डीटीसी बसों के बेड़े में वातानुकूलित बसें चलवा रही हैं और उम्मीद कर रही हैं कि लोग अपने चैपहिया वाहनों को छोड़कर उन वातानुकूलित बसों से चलेंगे।

लेकिन इस नीति की खामी यह है कि सार्वजनिक परिवहन सेवा को बहुत ज्यादा महंगा कर दिया गया है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को महंगा करने के पीछे एक उद्देश्य तो दिल्ली से गरीबों को भगाना है, लेकिन इसके कारण सड़क जाम की समस्या को समाप्त करने का उद्देश्य पराजित हो रहा है। इसका कारण यह है कि बसों से चलने और अपनी गाड़ियों से चलने का खर्च लगभग बराबर होता जा रहा है। यदि परिवार के साथ किसी को यात्रा करनी है, तो अपनी चैपहिया गाड़ी से चलने का खर्च बसों से चलने के खर्च से कम आएगा।

यानी सरकार अपनी नीति बनाते समय सारी बातों का ख्याल नहीं रख रही है। वह महंगी महगी बसें खरीद रही है। किराया बढ़ा रही है और दिल्ली की सड़को को चैपहिया वाहनों के दबाव से मुक्त करने में विफल हो रही है। (संवाद)