आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस के नेता उनकी छुट्टी को शबाटिकल छुट्टी बता रहे हैं। शबाटिकल बाइबिल का शब्द है, जिसका मतलब आराम करना होता है। बाइबिल में कहा गया है कि छह दिनों तक दुनिया का निर्माण करने के बाद भगवान ने सातवें दिन यानी रविवार को आराम किया था। अब राहुल गांधी उसी तरह का आराम कर रहे हैं और कांग्रेस का फिर से उद्धार कैसे हो इस पर विचार कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि आराम करने का समय क्या उचित है? कांग्रेस महासचिव दिग्वििजय सिंह ने राहुल गांधी द्वारा आराम की छुट्टी लेने के समय पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसके लिए कोई और समय तय किया जाना चाहिए था।

वैस इस आराम की छुट्टी पर तरह तरह की बातें की जा रही हैं। एक बात के अनुसार राहुल गांधी पार्टी पर पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं। इसका कारण यह है कि वे कांग्रेस के अंदर अपनी खुद की टीम बनाना चाहते हैं। लेकिन इसमें समस्या क्या है? वे गांधी परिवार के हैं और उनके लिए यह बहुत आसान काम है। पर पार्टी के अंदर ऐसे लोग भी हैं, जो चाहते हैं कि सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनी रहें। पिछले अनेक चुनाव कांग्रेस ने राहुल के नेतृत्व में ही लड़े हैं और एक आध को छोड़कर कांग्रेस की उनमें बहुत ही बुरी गति हुई है। ताजा उदाहरण दिल्ली विधानसभा का है। उसमें पार्टी एक सीट भी जीत नहीं सकी और कुल पड़े मतों का 10 फीसदी भी हुए हासिल नहीं हुआ। सच कहा जाय तो दिल्ली मुख्यभूमि भारत का एक मात्र प्रदेश है, जिसमें विधानसभा में कांग्रेस का एक भी नुमाइ्रदा नहीं होगा।

चुनावों में कांग्रेस की हो रही भारी पराजय के कारण अनेक नेता राहुल गांधी के सामथ्र्य को लेकर सशंकित हैं और वे चाहते हैं कि सोनिया गाधी के हाथ में ही पार्टी की बागडोर हो। दिग्विजय सिंह जैसे कुछ नेता भी हैं, जो चाहते है कि राहुल गांधी को जल्द से जल्द कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाय।

कहा तो यह भी जा रहा है कि अध्यक्ष पद पाने के लिए राहुल गांधी ने टकराव का रास्ता अपना लिया है और उनकी यह छुट्टी उसी टकराव का परिणाम है। उनकी समस्या यह है कि पार्टी के कुछ पुराने नेताओं से उनका तालमेल बैठ नहीं पाता है। वे नेता कंप्यूटर पर काम करना नहीं जानते, जबकि राहुल गांधी के सभी लोग कंप्यूटर से जुडे हुए है और ईमेल से एक दूसरे से संवाद करते हैं। इंदिरा गांधी ने भी कांग्रेस के पुराने नेताओं से छुटकारा पा लिया था, लेकिन अपनी दादी की तरह राहुल गांधी राजनीति की बारीकियों को नहीं समझते हैं और वे नहीं जानते हैं कि पुराने नेताओं से किस तरह निबटा जाय।

कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि पुराने कांग्रेसी नेताओं के साथ उनका संघर्ष तेज हो गए है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी की बागडोर राहुल के हाथ मे ही थी। पुराने नेताओं की उसमें नहीं चल रही थी। चुनाव अभियान से लेकर टिकट वितरण तक सभी पर राहुल और उनके लोग ही हावी थे। उसके बाद पार्टी की अभूतपूर्व हार हुई। फिर पुराने नेता एकाएक पार्टी पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके कारण राहुल को परेशानी हो रही है।

कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि राहुल गांधी अब राजनीति से ऊब रहे हैं। वे कभी भी इसके साथ पूर्णकालिक नेता के रूप में नहीं जुड़े रहे। अपनी सुविधा के अनुसार जब तब राजनैतिक निष्क्रियता को प्राप्त होते रहे। एक के बाद एक हार के बाद उन्हें लगने लगा है कि राजनीति करना उनके वश की बात नहीं है। इसलिए वह अब इसे छोड़ना चाहते हैं और वह छुट्टी उसी की शुरुआत है। लेकिन यह अटकलबाजी कुछ ज्यादा ही सच्चाई से दुर लगती है। बहरहाल इतना तो तय है कि यदि राहुल चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस फिर एक ताकत बने, तो उन्हें पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ बनना ही होगा। (संवाद)