यह तो पंजाब की घटना है। दिल्ली में भी केन्द्र सरकार ने एक ऐसा फैसला किया है, जिसका असर पंजाब की राजनीति पर पड़ सकता है। केन्द्र सरकार ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार केन्द्रीय करों में प्रदेशों का हिस्सा 32 फीसदी से बढ़ाकर 42 फीसदी कर दिया है।
इन दो कारणों से सत्तारूढ़ गठबंधन के हौसले बुलंद दिखाई पड़े रहे हैं। और इसके कारण आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब की राजनीति बहुत आसान नहीं रह गई है। गौरतलब है कि दिल्ली के बाद यदि आम आदमी पार्टी की अच्छी उपस्थिति पंजाब में है। पिछले लोकसभा चुनाव में जब आम आदमी पार्टी का एक भी उम्मीदवार दिल्ली में जीत नहीं सका था, तो उस समय पंजाब में आम आदमी पार्टी को 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस समय लोकसभा में आम आदमी पार्टी के 4 सांसद हैं और चारों के चारों पंजाब से ही हैं।
पंजाब में गठबंधन की यह जीत कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसका एक कारण तो यह है कि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच मतभेद बढ़ रहे थे और दूसरा बड़ा कारण दोनों दलों के अंदर भी गुटबाजी लगातार बढ रही थी। गठबंधन इसलिए भी खुश है कि इन चुनावों मंे कांग्रेस की बुरी हार हुई है। यह सच है कि नगर निगमों में तो कांग्रेस को कुछ सीटें मिली भीं, पर नगरपालिकाओं और नगर पंचायतों में उसका सूफड़ा लगभग साफ हो गया।
इस चुनाव को गठबंधन सेमी फाइनल कह रहा है और उसे लगता है कि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों मे उसकी जीत हो ही जाएगी। लेकिन उसका ऐसा सोचना गलत भी हो सकता है। राजनीति में दो साल का अंतराल बहुत बडा होता है। हम देख चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी को शानदार सफलता मिली थी। उसके सातों लोकसभा उम्मीदवार जीत गए थे और विधानसभा की 70 में से 60 सीटों पर उसके उम्मीदवार अन्य उम्मीदवारों से आगे थे।
लेकिन 9 महीने के अंदर ही सबकुछ पलट गया। फरवरी 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी हार हुई। उसे 70 में से मात्र 3 सीटों पर ही जीत हासिल हुई, जबकि पिछले साल अप्रैल महीने में हुए चुनाव में उसे 70 में से 60 सीटों पर बढ़त प्राप्त हुई थी।
समय तो एक बड़ा फैक्टर है ही, स्थानीय चुनावों के नतीजों से लोकसभा अथवा विधानसभा के बारे में कोई निष्कर्ष निकाला नहीं जा सकता। इसका कारण यह है कि स्थानीय निकाय चुनाव पूरी तरह से स्थानीय मसलों पर होते हैं और उसमें हार जीत के लिए उम्मीदवारों का अपना व्यक्तित्व काफी हद तक जिम्मेदार होता है। स्थानीय गुटबाजी और अन्य कारण भी नतीजे निर्धारित करते हैं। प्रदेश सरकार से ज्यादा से ज्यादा रियायतें कौन दिला सकता है, वोट देते समय मतदाता इस पर भी विचार करते हैं।
लेकिन विधानसभा और लोकसभा के चुनावों मंे स्थानीय फैक्टर ज्यादा काम नहीं करते। उसमें अन्य बड़े फैक्टर काम करते हैं, जिनका संबंध प्रदेश या देश से होता है।
कांग्रेस की हार का सिलसिला जारी है और इसके कारण उसमे ंचैतरफा हताशा है। विधानसभा के अगले चुनाव का दारोमदार कुछ हद तक कांग्रेस की बेहतरी की संभावना पर भी निर्भर करता है। इसके अलावे भाजपा और अकाली दल के रिश्ते किस तरह के रहते हैं, यह भी नतीजों को प्रभावित करेगा। नरेन्द्र मोदी का जादू उस समय तक बरकरार रह पाता है या नहीं। यह भी नतीजों को प्रभावित करेगा। (संवाद)
अकाली-भाजपा गठबंधन आया फाॅर्म में
आप के लिए कठिन हुई पंजाब की राजनीति
बी के चम - 2015-03-04 14:49
कभी कभी तात्कालिक प्रभाव की घटनाएं लंबे समय की घटनाओं के महत्व को ढक देती हैं। वैसी ही एक घटना पिछले दिनों पंजाब में घटी हैं। स्थानीय शहरी निकायों के चुनाव थे और उसमें अकाली दल-भाजपा गठबंधन को जबर्दस्त सफलता मिली। नगरपालिकाओं और शहर पंचायतों में उसने शानदार सफलता पाईं। नगर निगम में भी उसे सफलता मिली, लेकिन वहां उसे मिली सफलता कुछ कम चमक वाली थी।